Move to Jagran APP

भिखारियों को भीख नहीं देता यह शख्स, जिंदगी बना देता है

राजधानी में ऐसे 27 से अधिक भिक्षुक हैं, जिन्होंने अब अपना कारोबार शुरू कर दिया है। यह सब संभव हुआ है शहर के ही एक युवा शरद पटेल के प्रयासों से।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Tue, 19 Dec 2017 06:08 PM (IST)Updated: Wed, 20 Dec 2017 01:18 PM (IST)
भिखारियों को भीख नहीं देता यह शख्स, जिंदगी बना देता है
भिखारियों को भीख नहीं देता यह शख्स, जिंदगी बना देता है

लखनऊ [जितेंद्र उपाध्याय]। गणेश प्रसाद हाईस्कूल पास हैं। करीब दो दशक तक वह लखनऊ के हनुमान सेतु मंदिर व शनि मंदिर के पास भिक्षा मांगते थे। दो वर्ष उन्होंने भिक्षाटन छोड़कर अपना कारोबार शुरू कर दिया। अब वह पान की दुकान चलाकर स्वरोजगार कर रहे हैं। यही नहीं वह दूसरों को भी भिक्षावृत्ति से दूर रहने के लिए जागरूक करते हैं।

loksabha election banner

गणेश प्रसाद की ही तरह देव कुमार प्रजापति ने भी अब जीवन यापन के लिए भिक्षा मांगने के बजाय पुताई का कार्य शुरू कर दिया है। वहीं प्रकाश अब किसी के आगे हाथ फैलाने के बजाय रिक्शा चलाकर दो जून की रोटी का इंतजाम कर रहे हैं। राजधानी में ऐसे 27 से अधिक भिक्षुक हैं, जिन्होंने अब अपना कारोबार शुरू कर दिया है। यह सब संभव हुआ है शहर के ही एक युवा शरद पटेल के प्रयासों से।

पैर में हवाई चप्पल और कंधे पर कपड़े का झोला टांगकर चलने वाले 28 वर्षीय शरद ने न केवल समाज को भिक्षावृत्ति से मुक्त करने का संकल्प लिया है, बल्कि उन्हें रोजगार से जोड़कर उनकी माली हालत सुधारने का काम भी किया है। शरद बताते हैं कि जब वह हरदोई से पढ़ाई के लिए 2007 में पहली बार राजधानी आए तो चारबाग के नत्था होटल के डिवाइडर पर मैले कुचैले भिखारियों को देखकर उनका दिल पसीज गया। 

क्रिश्चियन कॉलेज में पढ़ाई के दौरान उन्हें जब समय मिलता तो हनुमान सेतु, शनि मंदिर व मनकामेश्वर मंदिर में जाकर भिखारियों को भीख देने वालों पर नजर रखते थे। आर्थिक सुदृढ़ लोगों को पैसे के बजाय उन्हें काम देने की वकालत करने वाले शरद को कई बार अपमान का भी सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नही मानी। बीएससी के बाद प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने लगे और उन्हीं भिखारियों को आत्मनिर्भर बनाने की जुगत में जुटे रहे। 

डॉ.शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विवि, मोहान रोड में एमएसडब्ल्यू की पढ़ाई के दौरान उन्होंने भिखारियों पर शोध कर सरकार को सचेत करने का निर्णय लिया। शरद ने राजधानी में न केवल 1250 भिखारियों को जागरूक किया है, बल्कि 230 भिखारियों की प्रोफाइल तैयार की, जिनमें कई स्नातक हैं तो कई बीमारी की वजह से भिखारी बनने की मजबूर हैं। उनके प्रयास से 27 से अधिक भिखारी भिक्षा छोड़ अब अपना रोजगार कर अभियान को आगे बढ़ा रहे हैं। 

दुबग्गा में चलती है पाठशाला

बदलाव संस्था के माध्यम से शरद ने सड़क के किनारे भीख मांगने वाले 80 बच्चों को भी शिक्षा से जोडऩे की पहल की है। उनके अंदर हीन भावना न आए इसके लिए वह आम बच्चों के साथ ही उन्हें पढ़ाते हैं। कुछ अन्य युवाओं के सहयोग से उनकी यह पाठशाला चलती है। शरद शहर में पैदल घूम-घूमकर ऐसे बच्चों की पढ़ाई के लिए दूसरों से मदद की गुहार लगाते हैं। 

नुक्कड़ नाटक के माध्यम से करते हैं जागरूक 

शरद पटेल भिक्षावृत्ति छोड़ चुके लोगों के साथ मिलकर भिक्षुओं को जागरूक करते हैं। उनके साथ काम करने वाले श्रवण का कहना है कि बचपन में माता-पिता का निधन हो गया। बड़ी बहन ने पति के साथ मिलकर एपी सेन रोड स्थित आवास को हड़प लिया। बहन मुझे शाहजहांपुर अपने घर लेकर चली गई। वहां काम कराते और प्रताडि़त भी करते थे। राजधानी आकर 10 साल से भीख मांग रहा था, लेकिन गत दो वर्ष से अब गर्मी में सड़क के किनारे पानी पिलाने और फिर होटल में काम करने लगा हूं। 

अब मेहनत के लिए बढ़ते हैं हाथ

रिक्शा चालक प्रकाश ने बताया कि चारबाग के सुदामापुरी का रहने वाला हूं और मेरी उम्र करीब 57 साल है। पहले मैं हनुमान सेतु व शनि मंदिर के सामने भिक्षा के लिए हाथ बढ़ाता था, लेकिन अब रिक्शा चलाकर मेहनत से पैसे कमाता हूं।

शरद के साथ मिलकर अपने जैसे भिखारियों को भिक्षा से दूर करने के लिए जागरूक भी करता हूंं। आज इज्जत की जिंदगी जी रहा हूं। घर नहीं है, लेकिन सड़क के किनारे पेड़ के नीचे सोता हूं।

रिक्शा चालक, विजय बहादुर उर्फ भोले ने बताया कि मैं उन्नाव के मोहम्मदीपुर से 10 वर्ष पहले गरीबी के चलते राजधानी आया था। काम की तालाश की, लेकिन काम नहीं मिला। एक साल पहले शनि मंदिर के पास भिक्षा मुक्ति अभियान चलाने वाले शरद से मुलाकात क्या हुई मेरी जिंदगी बदल गई।

उन्होंने खुद की जमानत देकर किराए पर रिक्शा दिलाया और अब मैं रिक्शा चलाता हूं। फुर्सत मिलने पर अभियान के तहत भिक्षावृत्ति से छुटकारे के लिए भिक्षुओं को जागरूक भी करता हूं। 

पुताई का काम करने वाले पंकज साहू ने कहा कि हुसैनगंज का रहने वाला हूं। बड़े भाई ने घर से निकाल दिया था। दो बच्चों के साथ पत्नी मायके चली गई। घर भी नहीं है। दो साल पहले तक भीख मांग कर अपना पेट पलता था, लेकिन डेढ़ साल से अब घरों में पुताई का काम करता हूं।

शरद की जमानत पर काम मिलने लगा और अब भिक्षावृत्ति के अभिशाप को समाज से दूर करने के लिए अभियान से जुड़ा हूं। समाज की पहल पर ही भिक्षावृत्ति से छुटकारा मिल सकेगा। 

बोले अधिकारी- अपराध है भिक्षावृत्ति

जिला समाज कल्याण अधिकारी, केएस मिश्र ने कहा कि सड़क के किनारे, धार्मिक स्थल सहित अन्य सार्वजनिक स्थानों पर भिक्षा मांगना अपराध की श्रेणी में आता है। प्रदेश सरकार के भिक्षावृत्ति निषेध अधिनियम-1975 के तहत पुलिस ऐसे लोगों को गिरफ्तार कर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करे। मजिस्ट्रेट के आदेश पर उसे भिक्षु गृह भेजा जाता है। हालांकि शहर में ठाकुरगंज का भिक्षु गृह बदहाल है। इसकी सूचना कोर्ट को दे दी गई है। तत्कालीन जिलाधिकारी राजशेखर ने मोहान रोड पर नया भिक्षु गृह बनाने का प्रस्ताव भेजा था, लेकिन अभी शासन से अनुमति नहीं मिली।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.