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    यूपी के सियासी मैदान में अखिलेश की 'अदृश्य शक्ति' और 'तुरुप के पत्ते' की चर्चा

    By Ashish MishraEdited By:
    Updated: Sat, 08 Oct 2016 03:51 PM (IST)

    'हम एक नंबर पर थे, अब पता नहीं। मैं अदृश्य शक्तियों से लड़ रहा हूं।उससे समाजवादी गलियारे के साथ विपक्षी दलों में भी हलचल मच गई है।

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    लखनऊ (जेएनएन)।-ताश के खेल में जीत उसकी होती है, जिसके पास तुरुप का इक्का होता है, इसका इंतजार कीजिए। -हम पहले एक नंबर पर थे, अब पता नहीं। मैं, अदृश्य शक्तियों से लड़ रहा हूं।
    ये जुमले मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के हैं। जिसे उन्होंने समाजवादी परिवार के सत्ता संग्राम पर विराम के बाद सियासी बिसात पर चली जा रही कूटनीतिक चालों के दौर में इस्तेमाल किए हैं। ऐसे में सियासी निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं। विकास व स्वच्छ राजनीति के कायल अखिलेश दो सालों से विपक्ष पर तंजिया शैली में वार करते रहे हैं मगर सितंबर में परिवार के संग्राम के दौरान संगठन की 'कमान उनसे वापस ली गई। कई समर्थक निष्कासित हो गए। कुछ को सपा दफ्तर छोडऩे को मजबूर कर दिया गया।

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    ऐसे में तीन अक्टूबर को जब उनसे पत्नी की हत्या में आरोपित अमनमणि त्रिपाठी को सपा का टिकट देने पर सवाल हुआ तो उन्होंने कहा कि 'मैंने सारे अधिकार छोड़ दिये हैं। मगर यह जोड़ा भी कि 'इंतजार कीजिए, तुरुप का पत्ता सामने आने दीजिये, जिसके पास इक्का होता है, वही जीतता है। जनता तय करेगी किसे सरकार में लाना है। अगले दिन मेट्रो ट्रेन का शिलान्यास करने कानपुर पहुंचे तो यह कहकर चौंकाया कि, 'सीएम का चेहरा तो मैं ही हूं। इन जुमलों को अखिलेश यादव का सियासी बिसात पर सतर्कता से फेंका गया पांसा माना गया मगर गुरुवार को इटावा में उन्होने जिस अंदाज में कहा कि पहले 'हम एक नंबर पर थे, अब पता नहीं।

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    मैं अदृश्य शक्तियों से लड़ रहा हूं।उससे समाजवादी गलियारे के साथ विपक्षी दलों में भी हलचल मच गई है। राजनीतिक विश्लेषक उनके जुमलों का निहितार्थ ही नहीं निकाल पा रहे हैं। कुछ लोग इसे अधिकार छिनने से उपजी हताशा वाला बयान मान रहे हैं पर कुछ विश्लेषक इसे पलटवार के संकेत के रूप में देख रहे हैं। ऐसे लोगों का मानना है कि तुरुप के पत्ते वाले बयान को हल्के में नहीं लिया जा सकता। ऐसे में तुरुप का पता क्या हो सकता है? कहा जा सकता है कि अखिलेश अपनी पंसद से इतर के प्रत्याशियों के क्षेत्र में चुनाव प्रचार नहीं करने का दो टूक फैसला सुना सकते हैं।

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    बर्खास्त युवा ब्रिगेड की वापसी की शर्त रख सकते हैं। दरअसल, सपा मुखिया मुलायम सिंह सिर्फ मंडलीय रैली करेंगे। ऐसे में अखिलेश एकमात्र स्टार प्रचार होंगे। वह ही कुछ क्षेत्रों में नहीं गए तो पार्टी प्रत्याशी की मुश्किल बढ़ेगी। एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि मुख्यमंत्री अपनी नाराजगी जाहिर कर ही रहे हैं। यह संदेश भी दे रहे हैं बेदाग राजनीति की उनकी मंशा पर पार्टी के बुजुर्गों ने पलीता लगा दिया है।

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