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EXCLUSIVE: इंसेफेलाइटिस किसी एक जिले की नहीं बल्कि 38 जिलों की समस्या

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दैनिक जागरण से साक्षात्कार में इंसेफेलाइटिस को किसी एक जिले की नहीं बल्कि 38 जिलों की समस्या के रूप में देखते हैं।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sun, 18 Mar 2018 10:32 PM (IST)Updated: Mon, 19 Mar 2018 11:21 PM (IST)
EXCLUSIVE: इंसेफेलाइटिस किसी एक जिले की नहीं बल्कि 38 जिलों की समस्या
EXCLUSIVE: इंसेफेलाइटिस किसी एक जिले की नहीं बल्कि 38 जिलों की समस्या

लखनऊ (जेएनएन)। मुख्यमंत्री के रूप में आज एक साल पूरा कर चुके योगी आदित्यनाथ पूरे दावे के साथ कहते हैैं कि सरकार ने उत्तर प्रदेश के प्रति धारणाएं बदली हैैं। पहले जहां लोगों का पलायन हो रहा था, वहीं अब निवेश के लिए लोग आना चाहते हैैं।

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योगी आदित्यनाथ उप चुनाव के परिणाम को सरकार के कामकाज का रिजल्ट नहीं मानते और कहते हैैं यह सबक तो है, लेकिन जनादेश नहीं। इंसेफेलाइटिस और हाईकोर्ट बेंच जैसे मामलों पर सरकार के एक साल पूरे होने पर योगी ने दैनिक जागरण के संपादक मंडल से लंबी बातचीत की-

  • क्या आप अब यह दावा करने की स्थिति में हैैं कि इस बार गोरखपुर में एक भी बच्चे की मौत नहीं होगी?

मैंने इस मुद्दे को लेकर सड़क से लेकर संसद तक सर्वाधिक संघर्ष किया है। यह सिर्फ गोरखपुर की ही नहीं प्रदेश के 38 जिलों की समस्या है। इसमें गोरखपुर और बस्ती मंडल के जिलों के अलावा बिहार और नेपाल के तराई के क्षेत्र भी शामिल हैं। वस्तुत: यह बीमारी 1974 से है। 2005 तक यह जापानी इंसेफेलाइटिस के रूप में थी। इसकी मुख्य वजह मच्छर थे। इसके प्रभावी नियंत्रण का सबसे प्रभावी तरीका टीकाकरण था। वह भी तब जब यह फरवरी में लगने लगें। टीकों के लगने के करीब तीन-चार माह जिसे लगते थे उनमें रोग के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है।

उस समय की सरकारों के पास न पर्याप्त टीके थे न टीकों के रखरखाव के लिए बुनियादी सुविधाएं। इसके लिए उन लोगों ने कभी गंभीर प्रयास भी नहीं किये। काफी प्रयास के बाद एक-आध बार टीकाकरण हुआ तो नतीजे अच्छे आये। 2005 के बाद बीमारी ने स्वरूप बदल दिया। अब इसकी वजह एइएस (एक्वार्ड इम्यून सिंड्रोम) नामक विषाणु हैं। यह गंदगी और प्रदूषित पानी में पनपता है। इसके प्रभावी नियंत्रण का तरीका प्रभावित क्षेत्रों में शुद्ध पानी की उपलब्धता और साफ-सफाई ही है। प्रधानमंत्री की अगुआई में चल रहे स्वच्छ भारत मिशन की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। 

सफाई में सरकार की एक सीमा है। खुद भी इसके लिए जागरूक होना होगा। अपनी सोच बदलनी होगी। इसे संस्कार बनाना होगा। अभी क्या हो रहा है। साफ-सुथरी और तत्काल रंगी-पुती सड़कों पर भी लोग पान और गुटके की पीक थूकने से बाज नहीं आते। घर का कूड़ा सड़क पर फेंकने अपना अधिकार समझते हैं।

लोगों की मानसिकता देखिए गोरखपुर के सर्वाधिक प्रभावित कुशीनगर के कुछ क्षेत्रों में हम लोगों आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को साबुन दिलवाए थे। मकसद था कि वह लोगों को सफाई के तरीके के बारे जागरूक करें। लोगों ने उड़ा दिया कि हम दलितों में साबुन बंटवाकर उनका अपमान कर रहे हैं। 


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