उद्योग बन गए हैं कविता के मंच, 'क्राफ्टेड कवि' गिरा रहे स्तर
कवयित्री डॉ. सरिता शर्मा ने बेबाकी से कहा, 'क्राफ्टेड कवि' गिरा रहे स्तर, कवियों की नई पौध कर रही निराश, महिला रचनाकारों में मौलिकता की कमी
लखनऊ[दुर्गा शर्मा]। नि:स्वार्थ समर्पण को कमजोरी मत समझो, मन के रिश्ते को कच्ची डोरी मत समझो। तुम पढ़ न सके ये कमी तुम्हारी अपनी है, मेरे मन की किताब को कोरी मत समझो।। काव्य पाठ के मंच पर स्त्री विमर्श का पर्याय डॉ. सरिता शर्मा का सृजनात्मक प्रहार विशिष्ट है। कन्या भ्रूण हत्या हो या स्त्रियों की स्वतंत्रता, हर मुद्दे पर उनका अंदाजे बया समाज को आईना दिखाता है। लखनऊ आने पर उनसे विस्तृत बात हुई। उन्होंने बेबाकी के साथ काव्य जगत के हर मुद्दे पर अपनी बात रखी। दैनिक जागरण संवाददाता से हुई बातचीत के अंश.
- पहले और आज की कविता में क्या अंतर देखती हैं?
कविता ईश्वरीय वरदान के बिना नहीं होती। काव्य पाठ के मंचों के मायने होते थे। कोई पैसा सोचकर वहा नहीं जाता था। वे कविता सुनाकर सुकून पाते थे। अब 'क्त्राफ्टेड कवि' हो गए हैं, जिनसे स्तर गिर रहा है। अब कवि कम और 'परफॉर्मर' ज्यादा हैं।
- गिरते स्तर का कारण?
कविता के मंच 'इंडस्ट्री' की तरह आकार ले रहे हैं। व्यावसायिकता हावी हो गई है। जहा धन आ जाता है, वहा चीजें साफ सुथरी नहीं रह जाती हैं। - पहले के कुछ नाम जिन्होंने खासा प्रभावित किया हो?
भारत भूषण, कृष्ण सरोज, सोम ठाकुर और प्रमोद तिवारी आदि कुछ बड़े गीतकार रहे हैं, जिन्होंने व्यावसायिकता या जुमलेबाजी का सहारा नहीं लिया। - नई पीढ़ी में कोई जो कविता के साथ न्याय कर रहा हो?
नई पौध निराश करने वाली है। फिर भी रमेश शर्मा (चित्तौड़) और ज्ञान प्रकाश 'आकुल' जैसे कुछ नाम हैं, जिनमें मौलिकता नजर आती है। - क्या प्रतिभा को उचित स्थान मिल रहा है?
वे मौलिक नहीं हैं, पर खुद को 'अच्छा कवि' कहते हैं। ऐसे लोगों ने अपने-अपने गिरोह बना लिए हैं। कवि सम्मेलनों पर उन्हीं का कब्जा रहता है। लखनऊ और आस-पास के क्षेत्रों में अच्छे कवियों को मंच से दूर रखने का कुचक्त्र हो रहा है। यह कविता की हत्या करने जैसा है। - नवाकुरों के लिए कोई संदेश?
कविता लिखने से सरल कुछ नहीं और सही मायने में उससे कठिन भी कुछ नहीं। मौलिकता के साथ रचना
धर्मिता से जुड़े रहें क्योंकि. भले इतराए जलकुंभी कमल तो हो नहीं जाती,
गजल सी चीज कहने से गजल तो हो नहीं जाती।।
कविता जगत में महिलाओं को कहा देखती हैं?:
खेद है कि 80 प्रतिशत महिलाएं खुद कविताएं नहीं लिखतीं। वह दूसरों की रचनाओं को कंठ और प्रस्तुति देती हैं। बावजूद इसके कीर्ति कौल, सीता सागर और नसीम निखत जैसे नाम संतुष्टि देते हैं। कला, साहित्य और संस्कृति की बुरी स्थिति है। राज्याश्रय किसी जमाने में हुआ करता था। आज सबको अपनी आजीविका के लिए कुछ न कुछ करना होता है। सरकार को कलाकारों को प्राथमिकता पर रखना होगा।
- जन्म: बुलंदशहर (उप्र)। भिलाई नगर (दुर्ग), छत्तीसगढ़ से पढ़ाई। सरिता शर्मा अब नोएडा में रह रही हैं।
- कृतिया: पीर के सातों समंदर (गीत संग्रह), नदी गुनगुनाती रही (गीत), तेरी मीरा जरूर हो जाऊं (मुक्तक), चाद, मुहब्बत और मैं (गजल), हुए आकाश तुम (गीत), चाद सोता रहा (ऑडियो सीडी), गीत बंजारन के (ऑडियो सीडी)
- सम्मान: उप्र सरकार द्वारा यश भारती, बृज कोकिला सम्मान (मथुरा), महादेवी वर्मा न्यास फरुखाबाद की ओर से महादेवी वर्मा पुरस्कार, सुमन सम्मान (उन्नाव), नर्मदा सम्मान (मप्र) आदि।