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Interview of KGMU Toppers : कोविड ड्यूटी के साथ की पढ़ाई तो किसी का काम आया लाइब्रेरी ज्ञान

Interview of KGMU Toppers एमबीबीएस में ऑल ओवर टॉपर आलमबाग निवासी नितिन भारती रहे। दूसरे स्थान पर व लड़िकयों में टॉपर मुजफ्फरनगर निवासी आकांक्षा त्यागी रहीं। मेधावियों ने बताया कि मोबाइल का पढ़ाई के लिए किया उपयोग हर टॉपिक से रहे अपडेट।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Mon, 21 Dec 2020 12:47 PM (IST)Updated: Mon, 21 Dec 2020 05:20 PM (IST)
Interview of KGMU Toppers : कोविड ड्यूटी के साथ की पढ़ाई तो किसी का काम आया लाइब्रेरी ज्ञान
Interview of KGMU Toppers: एमबीबीएस में ऑल ओवर टॉपर आलमबाग निवासी नितिन भारती रहे।

लखनऊ, जेएनएन। Interview of KGMU Toppers: किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (केजीएमयू) में टॉपर बनना आसान नहीं है। इसका राज कड़ी मेहनत है। हॉस्टल, लाइब्रेरी में घंटों पढ़ाई। शाम को वार्ड में ड्यूटी, सुबह फिर क्लास। बीच-बीच में वक्त निकालकर मोबाइल पर मेडिकल से जुड़े टॉपिक सर्च कर खुद को अपडेट करते रहना। इसके साथ ही परीक्षा की घोषणा होते ही 12 से 14 घंटे तक पढ़ाई में जुटे रहे।  

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बचपन का सपना हुआ साकार 

एमबीबीएस में ऑल ओवर टॉपर आलमबाग निवासी नितिन भारती रहे। उन्होंने एमबीबीएस के सभी प्रोफेशनल एक्जाम में सर्वोच्च अंक हासिल किए। उन्हें संस्थान के सर्वोच्च मेडल हीवेट, चांसलर, यूनीवर्सिटी ऑनर्स, समेत 11 गोल्ड मेडल, एक सिल्वर मेडल मिला। नितिन ने एससी कटेगरी के छात्रों में भी सर्वोच्च अंक रहे। ऐसे में उन्हें डॉ. आरएमएल मेहरोत्रा गोल्ड मेडल भी दिया गया। इसके अलावा एक सर्टीफिकेट अवॉर्ड व चार बुक प्राइज अवॉर्ड मिलाकर कुल 17 अवॉर्ड नितिन को मिले।

उन्होंने 10वीं-12वीं सीबीएसई बोर्ड से किया है। नितिन ने बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना पाल लिया था। एमबीबीएस में दाखिला मिला तो हॉस्टल में ही रहने का फैसला किया और पहले दिन से ही कड़ी मेहनत का संकल्प ले लिया। क्लास, लैब, लाइब्रेरी में ज्यादातर वक्त गुजरा। शिक्षकों के लेक्चर मन के साथ ज्वॉइन किए। नोट्स बनाकर लगातार रिवीजन करते रहे। इस दौरान टीवी कभी-कभार घर जाने या फिर कैंटीन में खाना खाते वक्त ही दिखने को मिला। शाम को वार्ड में ड्यूटी के दौरान मरीजों के क्लीनिकल वर्क पर फोकस किया। मोबाइल पर ऑनलाइन पर टॉपिक व प्रोसीजर देखकर खुद को अपडेट किया। कारण, किताब में तो टॉपिक अपडेट होते नहीं, ऐसे में मोबाइल का सहारा पढ़ाई के लिए लेना पढ़ा। मगर, सोशल मीडिया, गेम में बेवजह समय जाया नहीं किया। परीक्षा के वक्त 12 से 14 घंटे तक पढ़ाई की। ऐसे में संस्थान में सर्वोच्च अंक हासिल करने पर खुशी है। 

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 मोबाइल का अधिकतम उपयोग पढ़ाई के लिए किया : बीडीएस में टॉपर 

गोरखपुर के बख्शीपुर निवासी अंजलि मल्ल ने बीडीएस में टॉप किया है। अंजिल मल्ल ने एचडी गुप्ता गोल्ड मेडल, डॉ. गोविला गोल्ड मेडल, डॉ. संतोष जैन गोल्ड मेडल, वेदवती गोल्ड मेडल समेत सात गोल्ड मेडल पर कब्जा जमाकर टॉप किया। वह बताती हैं कि हॉस्टल में रहकर पढ़ाई की। ऐसे में टीवी की सुविधा नहीं थी। वहीं, मोबाइल का अधिकतम उपयोग पढ़ाई के लिए किया। कभी-कभार सोशल मीडिया और घरवालों से बात करने के लिए मोबाइल का इस्तेमाल किया। क्लास के अलावा करीब पांच से छह घंटे पढ़ाई की। कोविड काल में ऑनलाइन पढ़ाई की। अंजलि के मुताबिक, थ्योरी व क्लीनिकल वर्क दोनों पर फोकस करना पड़ता है। अब वह एमडीएस प्रोस्थोडॉन्टिक्स से करेंगी। इसमें इंप्लांट लगाने में दक्षता हासिल करेंगी। 

24 घंटे में सिर्फ एक घंटा दिया फोल को, आई सर्जन बनने का सपना 

वहीं, एमबीबीएस में दूसरे स्थान पर व लड़िकयों में टॉपर मुजफ्फरनगर निवासी आकांक्षा त्यागी रहीं। आकांक्षा को कुल दस अवॉर्ड मिले। इसमें सात गोल्ड मेडल व एक सिल्वर मेडल है। इसके अलावा दो बुक प्रज रहे। वह बताती है कि प्रतिदिन शाम चार बजे तक क्लास करती थीं। 24 घंटे में एक घंटे ही मोबाइल का उपयोग करती थीं। उनका सपना आई सर्जन बनना है। आकांक्षा के ताऊ बाल रोग विशेषज्ञ हैं। वहीं पिता कैमिस्ट हैं। मां अर्चना गृहिणी हैं। उनके परिवार के ज्यादातर सदस्य इंजीनियर हैं। बहन फैशन डिजाइनर है। आकांक्षा सरकारी सेवा में जाना चाहती हैं। उनका बचपन से ही डॉक्टर बनने का सपना था, जो वर्षों बाद पूरा हो रहा है। अभी आगे भी पढ़ाई जारी रखेंगी। उनका कहना है कि अपने लक्ष्य से कभी भटकना नहीं चाहिए। 

टीबी पर बेस्ट थीसिस

डॉ. यश जगधारी, एमडी थीसिस स्कॉलरशिप 30000 रुपये फॉर डॉ. जान्हवी दत्त पांडेय इंस्टीट्यूट

पिता विकास जगधारी और माता मोनिका जगधारी इंश्योरेंस का काम करते हैं। विज्ञान में रुचि और लोगों की सेवा करने के जज्बे ने यश को चिकित्सा क्षेत्र में दाखिल होने के लिए प्रेरित किया। केजीएमयू से ही यूजी और पीजी की पढ़ाई की। टीबी पर शोध कार्य के लिए बेस्ट थीसिस का अॅवार्ड मिला। केजीएमयू के रेस्टपरेटरी विभाग ने पीजीआइ, सीडीआरआइ के साथ मिलकर 53 एक्सटेंसिवली ड्रग रजिस्टेंस (एक्सडीआर) मरीजों पर शोध किया। एमडी कर रहे यश ने विभाग के डॉ. अजय वर्मा के निर्देशन में करीब एक साल तक ये शोध किया। यश के मुताबिक शोध के जरिए पाया कि एक्सडीआर टीबी में दी जाने वाली मरीजों की 50 से 70 फीसद दवाएं काम नहीं कर रही हैं। ऐसे में कुछ और दवाएं जोड़कर मरीजों को देनी पड़ती हैं। एक्सडीआर टीबी के 20 फीसद मरीज अवसाद की चपेट में हैं।

कोविड ड्यूटी के साथ पढ़ाई

राहुल कुमार तिवारी, एमडी रेडियोडायग्नोसिस, पद्मश्री डॉ. सब्या सच्ची सरकार गोल्ड मेडल

बनारस के रहने वाले राहुल कुमार तिवारी बताते हैं, अप्रैल में होने वाली परीक्षा अगस्त में हुई। कोविड ड्यूटी में ज्यादा समय रहते, पढ़ाई के लिए उतना वक्त नहीं मिल पाता। ये वो समय था, जब हमें अपने चिकित्सा क्षेत्र में होने की असल जिम्मेदारी और लोगों की अपेक्षा समझ आई। कोविड ड्यूटी और पढ़ाई दोनों को मैनेज किया और मेहनत रंग लाई।

पिता को देखकर ही डॉक्टर बनना चाहा

निशिथ अग्रवाल, एमडी पीडियाट्रिक्स, पंडित शीतला चरण बाजपेई गोल्ड मेडल

आगरा के रहने वाले निशिथ बताते हैं, पिता डॉ. महेश चंद्र अग्रवाल को देखकर ही डॉक्टर बनना चाहा। उन्होंने हमेशा सीख दी कि मेहनत नहीं करेंगे तो सीखेंगे नहीं। गर्वमेंट मेडिकल कॉलेज, नामदेव महाराष्ट से एमबीबीएस किया। वर्तमान में गर्वमेंट मेडिकल कॉलेज, सहारनपुर में एसआर हैं। निशिथ बताते हैं, कोविड के दौरान आठ से नौ बार ड्यूटी की। एक दिन भी छुट्टी नहीं ली। निशिथ बाल चिकत्सा विभाग की हेड डॉ. शैली अवस्थी और डॉ. माला कुमार को आदर्श मानते हैं।

मैं गांव का पहला डॉक्टर

प्रवीण पांडेय, एमडी साइकियाट्री, चतुर्वेदी चंद्रा सत्य प्रकाश मेमोरियल गोल्ड मेडल

प्रतापगढ़ के रहने वपले प्रवीण अपने गांव पूरे गंगाराम के पहले डॉक्टर हैं। वो बताते हैं, पिता श्याम नारायण पांडेय रेलवे से सेवानिवृत्त हैं। मां जयश्री पांडेय गृहिणी हैं। दादाजी पिता को डॉक्टर बनते देखना चाहते थे, पर आर्थिक विषमताओं से ये संभव नहीं हो सका। फिर पिता ने मेरे लिए वही ख्वाब देखा। मैंने दादा और पिता दोनों का सपना पूरा किया और परिवार के साथ गांव का भी पहला डॉक्टर बन गया। कानपुर से एमबीबीएस किया। प्रवीण सोशल मीडिया को अपनी बात ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने का अच्छा माध्यम भी मानते हैं। वो इसके जरिए तमाम विषयों पर जागरूक करते हैं। प्रवीण को कविताएं लिखने का भी शौक है। प्रवीण अपने बड़े भाई इंजीनियर नवीन पांडेय को रोल मॉडल मानते हैं।

12 घंटे ड्यूटी के बाद की पढ़ाई

शैलजा मिश्रा, एमएस ऑप्थेलमोलॉजी, डॉ. बलजीत भाटिया मेमोरियल गोल्ड मेडल

इंदिरा नगर की रहने वाली शैलजा ने कर्नाटक से एमबीबीएस किया। पिता वीके मिश्रा प्रतापगढ़ में एक एनजीओ के डायरेक्टर रहे हैं। माता सरोज मिश्रा गृहिणी हैं। शैलजा बताती हैं, शुरू से ही चिकित्सा विज्ञान में रुचि रही है, इसलिए पढ़ाई ने कभी तनाव नहीं दिया। कोविड वार्ड में ड्यूटी भी लगी। 12 घंटे की कोविड ड्यूटी के बाद पढ़ाई के लिए समय मिलता।


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