International Women day : हम पहल करेंगे तभी हालात बदलेंगे
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर कुछ ऐसी महिलाओं की कहानी जो हम सबके लिए एक आदर्श है एक सीख है।
लखनऊ, जेएनएन। कल्पना और आलोचना से आकलन तो किया जा सकता है, पर परिस्थितियां बदलती हैं प्रयास से। सिर्फ यह कह भर देने से कि हालात बहुत खराब हैं, हमारी जिम्मेदारी पूरी नहीं हो जाती। प्रयास करने पड़ते हैं, आगे आकर पहल करनी पड़ती है। शहर की कुछ महिलाओं ने इस बात को समझा और पहल की। आस-पास जो भी कुछ अस्वीकार्य लगा उसे बदलना चाहा और जितना भी सामर्थ्य हुआ, कोशिश की। किसी ने निरीह पशुओं की सेवा को ध्येय बनाया तो किसी ने मरीजों की सुध ली, तो कोई शिक्षा से वंचित बच्चों के लिए आगे आया।
चोटिल पशुओं के दर्द पर लगाती हैं मरहम
गोमतीनगर के विशाल खंड में रहने वाली डॉ. मधु चोटिल पशुओं के लिए भी समर्पित हैं। होम्योपैथी की डॉक्टर ने अपने इस समर्पण को परवान चढ़ाते हुए खरगापुर में समर्पण पशु सेवा आश्रम खोला है। वह यहां निश्शुल्क इलाज करती हैं। उनका जन्म आठ मार्च 1967 को हुआ था। डॉ. मधु पिछले 12 वर्षो से इस काम में लगी हुई हैं। सड़क किनारे कोई भी चोटिल कुत्ता या अन्य पशु देखता है तो इनके दर पर लाकर छोड़ देता है।
वह कहती हैं कि करीब 12 वर्ष पहले एक लियो नामक कुत्ता फिट्स से जूझ रहा था। कुत्तों में यह डिस्टेंपर नाम की बीमारी होती है। उसे मैंने दो साल होम्योपैथिक दवा से इलाज कर सही किया। वह कहती हैं कि फर्स्ट एड करने के बाद जब पशु थोड़ा सही हो जाता है तो होम्योपैथी से ही इलाज कर उसे ठीक करती हैं। इसके बाद विशाल खंड तीन में पार्क के पास एक कुत्ते पर उनकी नजर पड़ी उसका ट्यूमर फट गया था और वह कराह रहा था। उसे वह मोती कहकर पुकारती थीं, कई दिनों से वह उनके घर नहीं आया था। उन्होंने अचानक इतनी बिगड़ी हालत देखी तो घर ले आईं और घर में ही तीन महीने इलाज किया।
इसी तरह शेरू को पैरालिसिस हो गया था, उसे भी ठीक किया। वर्ष 2013 में अपनी मित्र शशि सिंह के साथ मिलकर खरगापुर में प्लाट खरीदा और वहां समर्पण पशु सेवा आश्रम खोल दिया। यहां पर इस समय 40 स्ट्रीट डॉग भर्ती हैं इनमें से पांच को पैरालिसिस है। दरअसल ट्रक, बस कार व मोटरसाइकिल से चोटिल होकर इनकी ऐसी दशा हो जाती है। फिलहाल, अब पशु प्रेमी उनके पास आते हैं और अपनी स्वेच्छा से मदद भी करते हैं।
अब मरीजों का खून नहीं होता बर्बाद
केजीएमयू में ट्रांसफ्यूजन मेडिसिन विभाग की अध्यक्ष प्रो. तूलिका चंद्रा मरीजों के हित के लिए सदैव समर्पित रहती हैं। उन्होंने यहां विभागों में टाइप एंड मैचिंग व्यवस्था लागू की है। इससे भर्ती मरीजों के खून का सैंपल विभाग से पैथोलॉजी भेजा जाता है। मरीज के ब्लड ग्रुप के अनुसार यहीं पर जरूरत के अनुसार ब्लड बैंक में खून रखा रहता है। ऐसे में डॉक्टर ऑपरेशन से पहले व बाद में जरूरत के अनुसार खून चढ़ाता है। इससे मरीजों का खून बर्बाद नहीं होता। पहले खून न चढ़ने पर वह बेकार हो जाता था। अब जितनी जरूरत होती है उतना खून ब्लड बैंक से मिल जाता है।
यही नहीं स्वैछिक रक्तदान को नई दिशा देने के लिए कम से कम एक हजार ब्लड डोनेशन कैंप लगवाए। यूपी में 27 ब्लड कम्पोनेंट सपरेशन यूनिट शुरू करवाई। ब्लड का न्यूक्लिक एसिड टेस्ट एचआइवी, हेपेटाइटिस बी व हेपेटाइटिस सी के लिए शुरू करवाया। इससे ब्लड सुरक्षित हुआ। पहले रक्तदाता की यह जांच न होने से दूसरों में संक्रमण का खतरा होता था।
निखार रहीं बच्चों का व्यक्तित्व
मलिन बस्तियों के बच्चे या ऐसे गरीब परिवार जो अपने बच्चों को शिक्षा के जरिए तरक्की की राह पकड़ते देखना चाहते हैं वह स्कूलों में जाकर खुद को माहौल में ढाल नहीं पाते। ऐसे में वह जल्द ही स्कूल जाना बंद कर देते हैं। एनबीआरआइ की पूर्व वैज्ञानिक एवं कोआर्डीनेटर आकांक्षा शिक्षा केंद्र डॉ.नंदिता सिंह बताती हैं कि बच्चों के व्यक्तित्व को निखारने के लिए यह ग्रूमिंग क्लासेस शुरू किए गए हैं। अध्यक्ष रेनू पांडेय के नेतृत्व में इसका संचालन किया जाता है।
डॉ. सिंह बताती हैं कि अर्चना प्रकाश व इला मोहंती के सहयोग से शिक्षा केंद्र को चलाया जाता है। बच्चों को बालू अड्डे व आसपास के मलिन बस्तियों से बुलाया जाता है। इसके अलावा बटलर पैलेस व आसपास काम करने वाले भी अपने बच्चों को भेजते हैं। बच्चों को हिंदी, इंग्लिश, मैथ्स के साथ सामान्य ज्ञान देकर इस काबिल बनाया जाता है, जिससे वह स्कूल जाएं तो वह अपने को उस माहौल में एडजस्ट कर सकें। यहां आने वाले बच्चों को यूनीफार्म, कॉपी-किताब के साथ दोपहर का भोजन भी दिया जाता है। शिक्षा केंद्र का संचालन आकांक्षा से होने वाली आय से किया जाता है।
बेटियों को बनाया स्वावलंबी
विज्ञान व शिक्षा के क्षेत्र में महिलाओं को सशक्त बनाने का अनूठा काम सीमैप की मुख्य वैज्ञानिक डॉ. नीलम सांगवान ने किया। अपने कॅरियर में उन्होंने कई बेटियों को वैज्ञानिक प्रयोगशाला में प्रयोग कर देश का नाम रोशन करने के लिए प्रेरित किया। विज्ञान के क्षेत्र में सिर्फ पांच से दस प्रतिशत महिलाओं के ही कदम रखने को लेकर वह हमेशा चिंतित रहीं।
ऐसे में उन्होंने अपनी प्रयोगशाला में 70 प्रतिशत तक लड़कियों को शोध का मौका दिया। वह यही नहीं रुकीं, इससे आगे एक कदम बढ़ाते हुए गांव की ओर रुख किया और यहां महिलाओं को अगरबत्ती बनाने की विशेष ट्रेनिंग देकर उनकी जिंदगी में नई खुशबू बिखेरने का काम किया। उनका कहना है कि जब महिलाएं स्वावलंबी होंगी तभी देश तेजी से तरक्की करेगा।