Independence Day 2022: अंग्रेजों को पहली बार लखनऊ के चिनहट में मिली थी शिकस्त, यहां पढ़ें पूरा किस्सा
Independence Day 2022 चिनहट में राष्ट्रीय मत्स्य आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो एक्वाकल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग यूनिट परिसर के पास ही चिनहट क्रांति शहीद स्मारक है। बरगवां पोस्ट इंटौरा के शिवाधार पुत्र चंदी प्रसाद व सैरपुर पूरबगांव के दयाशंकर पुत्र महावीर ने आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
लखनऊ, [दुर्गा शर्मा]। लखनऊ में कई ऐसे स्थल हैं, जो आजादी की लड़ाई की कहानी सुनाते हैं। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ऐसी ही एक जगह के बारे हम आपको बताने जा रहे हैं। चिनहट में मल्हौर रोड पर राष्ट्रीय मत्स्य आनुवांशिक संसाधन ब्यूरो, एक्वाकल्चर रिसर्च एंड ट्रेनिंग यूनिट परिसर के पास ही चिनहट क्रांति शहीद स्मारक है। बरगवां पोस्ट इंटौरा के शिवाधार पुत्र चंदी प्रसाद व सैरपुर पूरबगांव के दयाशंकर पुत्र महावीर ने आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए।
स्वतंत्रता के रजत जयंती वर्ष 1973 में कठौता झील के पास इन शहीदों की स्मृति में एक शिलापट की स्थापना करवाई। इसमें आजादी के लिए अपनी जान देने वाले क्रांतिवीरों के नाम भी दर्ज हैं। 30 जून 1857 को चिनहट की कठौता झील के आसपास मौजूद क्रांतिवीरों ने अंग्रेजी सेना को कड़ी टक्कर दी। चिनहट क्रांति में पहली बार भारतीय सेना ने अंग्रेजों को हराया था।
29 जून 1857 को विद्रोही सेना के आने की सूचना पाते ही हेनरी लारेंस ने कैप्टन एच फारब्स को सिख घुड़सवारों के साथ विद्रोहियों की शक्ति व स्थिति का पता लगाने भेजा। विद्रोहियों ने फारब्स दल पर गोलियां चलाईं, वह पूरे दिन वहां रह कर शाम को लौट आया। हेनरी लारेंस ने अगले दिन उन पर शक्तिशाली आक्रमण करने का निश्चय किया। विद्रोही इतनी कुशलता और गुप्त रूप से आगे बढ़ रहे थे कि लखनऊ में यूरोपियनों को उनकी वास्तविक शक्ति व स्थिति का पता न चल सका।
हालांकि कुछ कारणों से अगले दिन सुबह अंग्रेजी सेना को आगे बढ़ने में विलंब हो गया था। धूप व गर्मी हो गई, अब सेना को आगे बढ़ने का आदेश दिया गया। कुकरैल तक पहुंचने तक विद्रोहियों का पता न चला अत: वापस चलने का विचार किया गया। भीषण गर्मी में थके व प्यासे सैनिक आगे जाने के विचार में न थे। तभी एकाएक चिनहट तक चलने का आदेश दिया गया। नौ बजे के करीब वे इस्माइलगंज के पास पहुंच गए।
यहां पहुंचते ही विद्रोहियों ने ब्रिटिश सेना पर बंदूकों व तोपों से गोलाबारी शुरू कर अपनी उपस्थिति का प्रमाण दे दिया। इस भीषण युद्ध में 182 भारतीय नागरिकों के साथ 118 अंग्रेज सैनिक व 54 यूरोपियन नागरिकों की जानें गईं। चार जुलाई को रेजीडेंसी में हुए हमले के दौरान बुरी तरह घायल हेनरी लारेंस ने भी दम तोड़ दिया।