फलता-फूलता अवैध खनन
परवेज अहमद, लखनऊ : खनिज संपदा (बालू, मौरंग पत्थर) के अवैध खनन में जुटे माफिया, पट्टाधारकों, क
परवेज अहमद, लखनऊ : खनिज संपदा के अवैध खनन में जुटे माफिया, पट्टाधारकों, कुछ सरकारी नुमाइंदों की तिकड़ी ने प्रदेश में 'समानांतर सत्ता' कायम कर रखी है।
बांदा, फतेहपुर से लखनऊ। सोनभद्र, मिर्जापुर से सहारनपुर और बागपत, गौतमबुद्धनगर के रास्ते दिल्ली तक इनका खुद का तैयार किया हुआ तंत्र और इनकी अर्थव्यवस्था है। जिससे थानेदार से लेकर कई हाकिम भी उपकृत होते हैं। कई सियासतदां भी इससे 'खाद-पानी' भी पाते हैं।
दरअसल, खनिज संपदा के दोहन की शुरुआत से लेकर उसकी अंतिम बिक्री तक, हर मोड़ पर 'कमाई' का खेल है। शुरुआत पट्टे, परमिट से होती है। पट्टा से पहले विज्ञप्ति निकाली जाती है। पांच एकड़ तक के पट्टों में सामाजिक, शैक्षिक रूप से पिछड़े और इस कार्य में बरसों से लगे निषाद, केवट जाति को प्राथमिकता का नियम है। माफिया का तंत्र यहीं से काम शुरू करता है, वह कुछ 'पिछड़ों' को झांसे में लेकर उनके नाम से पट्टा कराता है। फिर वास्तविक पट्टाधारक से अनुबंध कराकर खनन का कारोबार खुद करता है। तंत्र के दबदबे के चलते वह पांच एकड़ के स्थान पर सैकड़ों एकड़ में धड़ल्ले से अवैध खनन करता है। यह सिर्फ वैध के सहारे अवैध खनन का एक पहलू है। इसके दूसरे पहलू में खनन माफिया आपस में ही 'सिण्डीकेट' बनाकर खनन का क्षेत्र बांट लेते हैं और वहां अवैध खनन करते हैं, जिसमें सरकारी नुमाइंदों की परोक्ष भागीदारी की चर्चाएं आम हैं। ऐसे अवैध खनन में जबहितों के बीच टकराव हो जाता है, तब तब सरकारी नुमाइंदों का दखल शुरू होता है। तब अक्सर कुछ अधिकारियों पर राजनीतिक और धन बल से मजबूत माफिया के पक्ष में खड़े होकर कार्रवाई करने का आरोप लगता है। ऐसे में ही बवेला मचता है।
सूत्रों पर भरोसा करें तो पूर्वाचल के एक क्षेत्र से बाहुबली विधायक इन दिनों बागपत में धड़ल्ले से अवैध खनन करा रहे हैं। जालौन, झांसी में अवैध खनन का धंधा सत्तारूढ़ दल के राजनेताओं की सरपरस्ती में होने के आरोप हैं। बसपा शासनकाल में अवैध खनन के क्षेत्र में जिन माफियाओं की तूती बोलती थी, उन्हीं माफिया का बांदा, हमीरपुर में अब भी वर्चस्व बताया जा रहा है। इस सबमें सरकारी नुमाइंदों की भागीदारी के किस्से आम हैं।
पुलिस महानिरीक्षक कानून व्यवस्था राज कुमार विश्वकर्मा ने कहा कि समय समय पर खनिज माफिया के खिलाफ कार्रवाई के लिए सरकुलर जारी किये गये हैं। नदियों के किनारों के जिलों में अवैध खनन की शिकायतें रहती हैं। कार्रवाई भी होती रहती है।
भूतत्व एवं खनिकर्म राज्यमंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति का कहना है कि सरकार ने गुण्डा वसूली का सिण्डीकेट खत्म करा दिया। अवैध खनन करने वालों के खिलाफ कार्रवाई हो रही है। जिससे कुछ माफिया बौखला गए हैं और सुनियोजित तरीके से सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं। किसी भी दशा में अवैध खनन नहीं होने दिया जाएगा। जनता को सस्ती बालू, मौरंग दिलाने का प्रयास किया जा रहा है। माफिया के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी। भूतत्व एवं खनिकर्म के निदेशक डॉ.भाष्कर उपाध्याय का कहना है कि उन्होंने जिलाधिकारियों को पत्र लिखकर अवैध खनन रोकने का निर्देश दिया है। ज्यादा से ज्यादा पट्टे करने की प्रस्ताव शासन को भेजा गया है, जब पट्टे ज्यादा होंगे तो खुद ही अवैध खनन का काम रुक जाएगा। फिर भी जहां सूचना मिलेगी निदेशालय स्तर से भी कार्रवाई करायी जाएगी।
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ंअर्थशास्त्र
मौरंग की रायल्टी (सरकारी टैक्स) 32 रुपया प्रति घन फुट होती है। सामान्य ट्रक में 600 फुट मौरंग भरी जाती है, जिसके हिसाब से 19 हजार दो सौ रुपए रायल्टी हुई लेकिन प्रशासन सिर्फ 400 फुट मौरंग निकासी का प्रमाण पत्र (एमएम-11) जारी करता है। यानी दो सौ फुट की रायल्टी की सीधी चोरी। यही मौरंग जब बांदा के किसी घाट से निकलकर लखनऊ पहुंचती है, तब उसकी कीमत साठ हजार रुपए हो जाती है। यानी तीन गुना अधिक। लखनऊ मण्डी के कारोबारियों के मुताबिक प्रतिदिन दो सौ गाड़ी मौरंग की लखनऊ शहर में खपत हैं। यानी एक करोड़ 20 लाख प्रतिदिन की मौरंग। ऐसे ही बालू, छोटी-बड़ी गिट्टी की भी खपत है। यह सिर्फ वैध खनन की एक नजीर है, वरना अवैध खनन में कोई रायल्टी देनी ही नहीं होती है। ऐसी खनिज सामग्री 'तंत्र' के बल पर खनन के घाटों से यूपी के मुख्तलिफ बाजारों में पहुंच जाती है।
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कैसे बढ़ती है कीमत
बालू, मौरंग, गिट्टी, पत्थर या अन्य खनिज संपदा लादकर निकले ट्रक को हर थाने, चौकी पर बंधी हुई एक मुश्त रकम देनी होती है। आरटीओ, पीटीएस और वाणिज्य कर के सचल दस्तों का भी 'शुकराना' तय है। इसके अलावा रास्ते में किसी हाकिम ने गाड़ी चेक कर ली तो उसका 'नजराना' अलग से दिया जाता है। ये सारे नजराने, शुकराने खनिज की लागत में जुड़ते जाते हैं, जिसकी सीधा प्रभाव उपभोक्ता की जेब पर पड़ता है।
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बसपाकाल में बना 'सिण्डीकेट'
बसपा की हुकूमत में तत्कालीन आला अधिकारियों ने बालू ठेकेदारों का सिण्डीकेट बना दिया था। सिण्डीकेट के कर्ताधर्ताओं ने जिला मुख्यालयों पर कारिंदों की फौज तैनात कर दी थी, जो खनिज लेकर निकलने वाले ट्रकों से एक हजार से लेकर दो हजार रुपये तक गुण्डा टैक्स वसूलते थे। जिसका हिस्सा सिपाही से लेकर सरकार के आला हुक्मरानों तक में बंटता था। अब सरकारी संरक्षण में ऐसा सिण्डीकेट काम नहीं कर रहा है लेकिन कई जिलों में बाहुबली अपने बूते पर वसूली का सिलसिला जरूर चलाये हुए हैं।
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