चलने-फिरने में चक्कर आए तो न करें देर, ईएनटी विशेषज्ञ को दिखाएं
केजीएमयू में आयोजित डॉ. आरएन मिश्रा मेमोरियल लेक्चर में आइजी नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. हरमैन किंगमा का व्याख्यान।
लखनऊ, जेएनएन। चलने-फिरने में अगर तेज चक्कर आ रहा हो या बैलेंस बनाने में दिक्कत हो तो यह कान से संबंधित बीमारी हो सकती है। तुरंत ईएनटी डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। अक्सर लोग न्यूरो और नेत्र विभाग में इलाज कराते हैं। इसे बाइलेटरल वेस्टीब्यूलर लॉस कहते हैं। अक्सर यह बीमारी ज्यादा उम्र के लोगों में होती है। यह जानकारी आइजी नोबल विजेता एवं नीदरलैंड की मैसट्रियल यूनिवर्सिटी के क्लीनिकल वेस्टीब्यूलॉजी विभाग के डॉ. हरमेन किंगमा ने केजीएमयू के सेल्बी हॉल में आयोजित डॉ. आरएन मिश्रा मेमोरियल लेक्चर में दी।
डॉ. हरमेन ने बताया कि अक्सर कई लोगों को चलने-फिरने में तेज चक्कर आते हैं। सिर घूमने लगता है। चलते समय बैलेंस बनाने में भी दिक्कत आने लगती है। आंखों के आगे चीजें घूमती हुई लगती हैं। इस तरह के मरीज शुरुआती दौर में न्यूरोलॉजी या नेत्ररोग विभाग में इलाज कराते रहते हैं। इन्हें लगता है कि न्यूरोलॉजिकल डिस्ऑर्डर की वजह से यह दिक्कत हो रही है। जबकि, यह बीमारी कान से संबंधित है। कान में लेबरियंथ होता है, जोकि शरीर का बैलेंस बनाने के लिए जिम्मेदार होता है। इसमें डैमेज होने की वजह से शरीर का बैलेंस नहीं होता है।
इंप्लांट और डिवाइस से संभव है इलाज
डॉ. हरमेन ने बताया कि कान में किसी तरह का इंफेक्शन होने पर, वायरल फीवर या सर्जरी, सिर पर चोट लगने से यह बीमारी हो सकती है। कई बार यह बीमारी जन्मजात भी होती है। इसमें बच्चे एक साल बाद भी चलने-फिरने में लड़खड़ाते हैं। उन्होंने बताया कि इस बीमारी में वेस्टीब्यूलर इंप्लांट किया जाता है। इसके अलावा असिस्टिंग डिवाइस भी बनाई गई है, जिसे पेट में बेल्ट की तरह बांधा जाता है। अभी ये दोनों तरह के इलाज प्रयोगात्मक स्टेज में हैं। कार्यक्रम में ईएनटी के विभागाध्यक्ष डॉ. अनुपम मिश्रा और डॉ. वीरेंद्र कुमार समेत कई चिकित्सक मौजूद रहे।