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    आजाद हिंद बैंक ने छापा था एक लाख का नोट, 10 देशों में थी मान्यता

    By Nawal MishraEdited By:
    Updated: Sun, 31 May 2015 09:55 PM (IST)

    आजाद भारत में छह दशक के सफर के बाद सरकार महज एक हजार रुपये तक का नोट बाजार में ला सकी है। इसके उलट नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद सरकार के जमाने ...और पढ़ें

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    वाराणसी (राकेश पाण्डेय)। आजाद भारत में छह दशक के सफर के बाद सरकार महज एक हजार रुपये तक का नोट बाजार में ला सकी है। इसके उलट नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद सरकार के जमाने में एक लाख रुपये का नोट आ चुका था। इस बात की तस्दीक नेताजी के चालक रहे कर्नल निजामुद्दीन भी करते हैं। एक लाख रुपये का नोट जारी करने वाले आजाद हिंद बैंक को तब के दस देशों का समर्थन प्राप्त था।

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    आजाद हिंद बैंक की स्थापना वर्ष 1943 में ही हो गई थी। आजाद हिंद सरकार व फौज को समर्थन देने वाले दस देशों वर्मा, क्रोसिया, जर्मनी, नानकिंग (वर्तमान में चीन), मंचूको, इटली, थाइलैंड, फिलीपिंस व आयरलैंड ने बैंक और इसकी करेंसी को भी मान्यता दी थी। बैंक की ओर से दस रुपये के सिक्के से लेकर एक लाख रुपये के नोट तक जारी किए गए थे। इसके पूर्व तक आजाद हिंद बैंक की ओर से जारी 5000 के नोट की ही जानकारी सार्वजनिक थी। पांच हजार का एक नोट बीएचयू के भारत कला भवन में भी सुरक्षित रखा है, जबकि शनिवार को एक लाख के नोट की तस्वीर नेताजी की प्रपौत्री राज्यश्री चौधरी ने विशाल भारत संस्थान को उपलब्ध कराया है।

    बता दें कि पांच जून से संस्थान की ओर से नेताजी की खोज को लेकर राष्ट्रव्यापी अभियान का आगाज किया जा रहा है। इसमें देश-दुनिया से सुभाषवादियों को आमंत्रित किया गया है। अभियान के केंद्र बिंदु होंगे कर्नल निजामुद्दीन। इन दिनों अस्वस्थ हाल में बनारस में रह रहे कर्नल बताते हैं कि नेताजी ने जब रंगून के जुबली हाल में भाषण दिया था तो उन्हें सुनने के लिए एशिया भर से काफी लोग जुटे थे। तब नेताजी को लोगों ने सोने-चांदी के आभूषणों से भरी 27 बोरियों से तौला था। उन बोरियों को कर्नल व कुछ साथियों ने खुद ढोकर आजाद हिंद सरकार के राजकोष में जमा किया था। सुभाषवादियों का दावा है कि आजाद ङ्क्षहद बैंक में करीब 70 हजार करोड़ रुपये जमा थे। इस बैंक ने बर्मा को दस लाख रुपये कर्ज देने का भी प्रस्ताव पारित किया था। आरोप यह भी है कि नेताजी की हत्या या गुमनामी के पीछे इतनी बड़ी रकम भी बड़ी वजह थी, जिसे बाद में भारतीय और इंग्लैंड राजनेताओं ने बंदरबांट कर ली होगी।

    विशाल भारत संस्थान के संस्थापक अध्यक्ष राजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि सरकार, फौज और बैंक की स्थापना करने वाले नेताजी को आजाद भारत का पहला राष्ट्रपति घोषित करने की मांग जनवरी में आयोजित एक कार्यक्रम में की गई थी। नेताजी की इस सरकार का अपना रेडियो था, अपना अखबार था और इतनी बड़ी फौज थी जो कई देशों में फैली हुई थी।