हैं तैयार हम : आतंकिस्तान को काबू में करने को तो 'हम सात हिंदुस्तानी' ही काफी
1965 व 1971 के पाकिस्तान युद्ध के बाद 1999 के कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर जो विजय प्राप्त की उसमें देश के सबसे बड़े मध्य कमान ने अहम भूमिका निभाई।
लखनऊ [निशांत यादव]। भारत ने जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में आतंकी हरकत का बदला लेने के लिए मंगलवार को मिराज-2000 का इस्तेमाल किया, पाकिस्तानी विमानों को खदेडऩे के लिए भी ताकत का सिर्फ छोटा से ट्रेलर ही दिखाया लेकिन पाकिस्तान अगर पूरी फिल्म देखने पर अमादा है तो हमारी पूरी सैन्य क्षमता नहीं बल्कि अकेले मध्य कमान के सात हिंदुस्तानी राज्य ही उसे क्लाईमेक्स तक ले जाने में सक्षम हैं।
इतिहास साक्षी है कि 1965 व 1971 के पाकिस्तान युद्ध के बाद 1999 के कारगिल युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर जो विजय प्राप्त की, उसमें देश के सबसे बड़े मध्य कमान ने अहम भूमिका निभाई। 2016 में पाकिस्तान में हुई सर्जिकल स्ट्राइक में भी इसी कमान की एक स्ट्राइक कोर शामिल हुई। सात राज्यों तक फैला यह कमान पश्चिमी व पूर्वी सेक्टर के लिए सेना की रीढ़ है। पाकिस्तान में भारत की एयर स्ट्राइक के बाद देश के अन्य छह ऑपरेशनल कमान की तरह मध्य कमान भी हाई अलर्ट पर आ गया है।
सर्जिकल स्ट्राइक में अहम भूमिका निभाने वाली स्ट्राइक कोर, चीन से मोर्चा लेने वाली माउंटेन डिवीजन के अलावा युद्धक टैंकों वाली आम्र्ड के कई रेजीमेंट इसी कमान का हिस्सा है। देश भर में जवानों के साथ पूर्व सैनिकों और उनके आश्रितों को बेहतर उपचार प्रदान करने वाली सेना मेडिकल कोर भी मध्य कमान का ही एक हिस्सा है।
मध्य कमान
-18 रेजीमेंट हैं सूर्या कमांड के नाम से विख्यात मध्य कमान में।
- 07 राज्य उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, बिहार और उड़ीसा।
- 11 गोरखा राइफल्स और राजपूत रेजीमेंट जैसी दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाली इंफेंट्री हैं।
- 25 छावनी मध्य कमान के सात राज्यों के अंतर्गत ही आती हैं।
- 62 छावनी हैं देशभर में जिसमें सर्वाधिक मध्य कमान।
मध्य कमान में अन्य कमानों की रेजीमेंट
सिख रेजीमेंट, डोगरा रेजीमेंट, जाट रेजीमेंट, पंजाब रेजीमेंट, ग्रेनेडियर्स, सिख लाईट रेजीमेंट, गढ़वाल रेजीमेंट, कुमाऊं रेजीमेंट, बिहार रेजीमेंट, महार रेजीमेंट, जम्मू व कश्मीर राइफल्स, तीन और नौ गोरखा राइफल्स जैसी रेजीमेंट हैं।
ऐसे पड़ी नींव
दरअसल सेना को बड़ी लड़ाई के के लिए बेस की जरूरत होती है। इसके लिए मध्य कमान की नींव सबसे पहले 1942 में द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पड़ी। ब्रिटिश सेना ने सन 1946 में इसे भंग कर दिया और सदर्न कमांड को भारतीय जवानों के प्रशिक्षण के लिए अहम जिम्मेदारी दी गई।
ऐसे अस्तित्व में आया मध्य कमान
सन 1920 में सेना के कमान सिस्टम की शुरुआत हुई। चारों दिशाओं में ईस्टर्न कमान, नार्दर्न कमान, सदर्न और वेस्टर्न कमान स्थापित हुए। सन 1920 से 30 अप्रैल 1963 तक ईस्टर्न कमान का मुख्यालय लखनऊ में ही रहा। सन 1962 में भारत चीन युद्ध की नीति लखनऊ स्थित ईस्टर्न कमान से तय हुई। इस युद्ध के बाद ईस्टर्न कमान को 1963 में कोलकाता शिफ्ट कर दिया गया। सेना के अग्रिम मोर्चे पर बैकअप देने के लिए मध्य भारत में मध्य कमान की स्थापना लखनऊ में एक मई 1963 को की गई।
जांबाजों से लबरेज कमान
-1947 में कश्मीर पर हुए कबाइली हमले में पराक्रम से दुश्मनों को खदेडऩे वाले शहीद मेजर सोमनाथ शर्मा को पहला परमवीर चक्र मिला था। वह तब कमान के अंतर्गत कुमाऊं रेजीमेंट की चौथी बटालियन का हिस्सा थे।
-परमवीर चक्र विजेता क्वार्टर मास्टर अब्दुल हमीद, कैप्टन विक्रम बत्रा, कैप्टन मनोज पांडेय जैसे जांबाज इसी कमान के अंतर्गत स्थित राज्यों से आते हैं। परमवीर चक्र विजेता ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव इसी कमान से हैं।
सामरिक रिश्ते सुधारने में अहम भूमिका
मध्य कमान अमेरिका और रूस सहित मित्र देशों के साथ सामरिक रिश्ते सुधारने में भी अहम भूमिका निभाता है। अमेरिका, रूस, बांग्लादेश और नेपाल की सेनाओं के साथ युद्धाभ्यास मध्य कमान के क्षेत्रों में होता है।