Tokyo Olympics 2020: भारतीय हाकी टीम के दिग्गज खिलाड़ी ललित उपाध्याय बोले, छह महीने से घर नहीं गया; अब पदक के साथ लौटूंगा
आखिरी मिनट तक हम सब रोमांचित थे। पता नहीं था कि क्या होने वाला है। हर क्वार्टर के साथ मैच स्विंग कर रहा था। आखिरी मिनट जब जर्मनी को पेनाल्टी कार्नर मिला तो सभी नर्वस थे लेकिन टीम को गोलकीपर श्रीजेश पर भरोसा था। यही भरोसा टीम की ताकत बनी।
लखनऊ, जागरण संवाददाता। आखिरी मिनट तक हम सब भी रोमांचित थे। पता नहीं था कि क्या होने वाला है। हर क्वार्टर के साथ मैच स्विंग कर रहा था। आखिरी मिनट जब जर्मनी को पेनाल्टी कार्नर मिला तो सभी नर्वस थे, लेकिन टीम को गोलकीपर श्रीजेश पर भरोसा था। यही भरोसा टीम की ताकत बनी। 1980 मास्को ओलंपिक में पदक मिलने के 40 साल बाद टोक्यो में तिरंगा लहराया तो पोडियम पर हॉकी टीम के सितारों में उत्तर प्रदेश के ललित उपाध्याय भी मेडल पहनने वालों में थे। मैच के बाद टोक्यो से फोन पर ललित ने दैनिक जागरण से कहा कि जीत का श्रेय करोड़ों देशवासियों को है, जिनकों आखिरी मिनट तक उम्मीदें थीं।
वाराणसी के ललित उपाध्याय ओलंपिक जाने वाली हॉकी टीम में उत्तर प्रदेश से एकमात्र खिलाड़ी हैं। टोक्यो में जबर्दस्त प्रदर्शन के पीछे क्या राज है, इस पर ललित का कहना है कि कोई चमत्कार या जादू नहीं है जो अचानक हो गया। कई साल की मेहनत का नतीजा है जो टीम आज आस्ट्रेलिया और जर्मनी जैसी टीमों को हराकर पदक तक पहुंची है। हॉकी इंडिया का बहुत बड़ा योगदान है। जिस तरह से पिछले कुछ वर्षों से इंडिया ने हॉकी को व्यवस्थित और योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ाया है, उसी का परिणाम यह पदक है।
खिलाड़ियों को बेहतर कोचिंग और इंफ्रास्ट्रक्चर मिल रहा है, जिसका असर खेल में दिख रहा है। ललित ने आस्ट्रेलियाई कोच रीड को भी श्रेय दिया। ललित का कहना है कि रीड की शानदार कोचिंग से हमारे खेल की शैली पर काफी फर्क आया है। जीत के बाद अब आगे क्या? इस पर ललित ने कहा कि छह महीने से घर से दूर हैं। ओलंपिक तैयारियों के चलते कैंप में थे, इसलिए अब जल्दी से जल्दी मेडल के साथ घर लौटने और उन लोगों को शुक्रिया कहने की चाहत है, जिन्होंने मुश्किल समय में भरोसा कायम रखा।