क्या प्रदेश के थानों में सीसी कैमरे लग गए हैं: हाईकोर्ट
अब लोगों से व्यवहार पर रखी जा सकेगी नजर। आशियाना की रिशी की याचिका पर कोर्ट ने दिया आदेश, 27 को अगली सुनवाई।
लखनऊ (जेएनएन)। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने प्रदेश सरकार से पूछा है कि क्या प्रदेश में प्रत्येक पुलिस स्टेशनों में सीसी कैमरे लग गए हैं, ताकि नजर रखी जा सके कि पुलिस पीड़ितों के साथ किस प्रकार की व्यवहार करती है। कोर्ट ने इस संबंध में अपर महाधिवक्ता वीके साही को पूरी जानकारी लेकर उसे अगली सुनवाई पर उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। यह आदेश जस्टिस एआर मसूदी की बेंच ने एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई के दौरान दिया। मामले की अगली सुनवाई 27 नवंबर को होगी। मामला लखनऊ के आशियाना थाने से जुड़ा है।
याची रिशी कपूर ने अपनी माता सुधा कपूर की ओर से यह याचिका पेश कर उन्हें तत्काल बेंच के सामने पेश व रिहा करने का आदेश देने की मांग की है। इस याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आशियाना थाने के दारोगा अजीत कुमार से रिपोर्ट तलब की है कि वे बताएं कि याची सुधा कपूर को थाने में कस्टडी पर किस प्रकार से रखा जा रहा है व उनसे किस प्रकार का व्यवहार किया जा रहा है। कोई ने दारोगा अजीत कुमार को अगली सुनवाई पर तलब भी किया है।
इसी याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने अपर महाधिवक्ता से थानों पर पीड़ितों के साथ होने वाले पुलिसिया बर्ताव के बारे में पूछा और उनसे यह भी जानकारी मांगी कि क्या सूबे के सभी थानों पर सीसीटीवी कैमरे लग गए हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने दिया था आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने 25 अप्रैल 2015 को ही केंद्र सरकार व सभी प्रदेश सरकारों को आदेश दिया था कि देश के सभी थानों व पूछताछ कक्षों को सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में रखा जाए। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश वरिष्ठ वकीलों की एक कमेटी की अनुशंसा पर यह आदेश सुनाया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भी पहले एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए इस विषय पर राज्य सरकार से जवाब तलब किया था।
हाथ से नहीं, कंप्यूटर पर तैयार करनी होगी मेडिको लीगल रिपोर्ट
डॉक्टरों की खराब लिखावट से परेशान इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने प्रमुख सचिव गृह के साथ ही स्वास्थ्य एवं चिकित्सा सेवाओं के प्रमुख सचिव व डीजी को ओरिजिनल मेडिको लीगल रिपोर्ट की टाइपिंग के लिए हर अस्पताल में कंप्यूटर व प्रिंटर उपलब्ध कराने का आदेश दिया है। कोर्ट ने इसके लिए तीन महीने का समय दिया है। कोर्ट ने कहा कि रिपोर्ट तैयार करने वाले डॉक्टर या उस विभाग के अध्यक्ष कंप्यूटराइज्ड रिपोर्ट को प्रमाणित करेंगे। यह आदेश जस्टिस अजय लांबा व जस्टिस डीके सिंह की बेंच ने दिया।
सुनवाई के दौरान भी कोर्ट ने पाया कि मेडिको लीगल रिपोर्ट इतनी अस्पष्ट है कि न उसे कोर्ट पढ़ पा रही है और न ही दोनों पक्षों के वकील ही उसे समझ पा रहे हैं। कोर्ट ने डॉक्टर के सहयोग से इंजरी रिपार्ट को पढ़ा और केस को निस्तारित किया। कोर्ट ने कहा कि आए दिन डॉक्टरों को मेडिको लीगल रिपोर्ट पढ़ने के लिए बुलाना पड़ता है। यह प्रशासन की दृष्टि से उचित नहीं है। डॉक्टरों को बार-बार बुलाने का औचित्य नहीं है, इससे मरीजों का इलाज बाधित होता है। रिपोर्ट कोई डॉक्टर अपने लिए नहीं लिखता है, अपितु जज व वकील उस रिपोर्ट को पढ़ते हैं, ताकि उसका प्रयोग किया जा सके।