दो ड्रग इंस्पेक्टर के भरोसे राजधानी के अस्पताल
जागरण संवाददाता, लखनऊ: राजधानी में चल रहे सरकारी और निजी अस्पतालों की दवाओं की जांच मा˜
जागरण संवाददाता, लखनऊ: राजधानी में चल रहे सरकारी और निजी अस्पतालों की दवाओं की जांच मात्र दो ड्रग इंस्पेक्टर के भरोसे है। यही नहीं अस्पतालों के साथ-साथ राजधानी में चल रहे होल सेल और रिटेल मेडिकल स्टोरों की समय-समय जांच करने की जिम्मेदारी इन्हीं दो ड्रग इंस्पेक्टर के कंधों पर है। हाल यह है कि जब भी कहीं छापेमारी करनी होती है बाहर से टीम बुलानी पड़ती है। ऐसे में राजधानी के अस्पतालों में दवाओं की मॉनिट¨रग भगवान भरोसे है।
मेडिकल हब होने के बाद भी राजधानी में जड़ है सरकारी तंत्र
राजधानी में आठ बडे़ अस्पताल और 52 अर्बन प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र समेत आठ सामुदायिक स्वास्थ्य हैं। साथ ही 500 से ऊपर नर्सिग होम और लगभग इतने ही मेडिकल स्टोर मौजूद हैं। राजधानी पूरी तरह से मेडिकल हब बन चुका है। इसके बावजूद भी खाद्य एवं औषधि प्रशासन की ओर से ड्रग इंस्पेक्टर के दो ही पद हैं। ऐसे में अस्पतालों और मेडिकल स्टोर में लोगों को दी जाने वाली दवाओं की गुणवत्ता की कोई गारंटी नहीं है।
महीनों लग जाते हैं जांच में
ड्रग इंस्पेक्टरों की टीम जब भी किसी मेडिकल स्टोर या अस्पताल में छापेमारी करती है। इसकी रिपोर्ट आने में भी महीनों लग जाते हैं। अलीगंज स्थित राजकीय विश्लेषक में दवाओं के नमूनों की जांच होती है। यहां पूरे प्रदेश से दवाओं के नमूने जांच के लिए आते हैं। जिसकी वजह से सैंपलों की जांच में देरी होती है। सभी जिलों से 10 से 20 सैंपल लाये गये तो एक दिन में दो से ढाई हजार सैंपल हो जाते हैं। इसमें भी प्राथमिकता के आधार पर ही दवाओं के नमूने जांचे जाते हैं। जनवरी माह में ही एक निजी अस्पताल में मैनीटॉल की बोतल में नुकीले प्लास्टिक जैसे टुकड़े मिले थे। जिसकी जांच रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है।
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शिकायतों पर होता है काम
ड्रग इंस्पेक्टर रमा शंकर ने बताया कि यहां दो ही पद हैं। ऐसे में अस्पतालों में दवाओं की बेहतर मॉनिट¨रग नहीं हो पाती है। कार्यभार अधिक होने की वजह से एक या दो माह बाद ही किसी सरकारी अस्पताल में दवाओं का निरीक्षण हो पाता है। वहीं शिकायतों पर भी जांच करने का दबाव रहता है।
सीएचसी-पीएचसी में भी नहीं होती है मॉनिट¨रग
राजधानी में 52 अर्बन पीएचसी और आठ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। इन सभी जगह मुख्य औषधि भंडार से दवाएं सप्लाई की जाती है। यहां भी दवाओं के रखरखाव की एफएसडीए मॉनिट¨रग नहीं करता है। वैक्सीन को छोड़कर अस्पताल में सप्लाई होने वाली दवाओं के रखने के लिए सही जगह भी नहीं है। अलीगंज सीएचसी को छोड़कर टुडिया गंज, ऐशबाग, चंदरनगर, सिल्वर जुबली सीएचसी में दवाओं के स्टोरेज मानकों के अनुरूप नहीं है।
मुख्य औषधि भंडार में नहीं है समुचित व्यवस्था
राजधानी में मुख्य औषधि भंडार से सीएचसी-पीएचसी में दवाओं की सप्लाई होती है। अलीगंज स्थित मेन स्टोर में भी दवाओं के भंडारण के लिए एसी की व्यवस्था नहीं है। दवाएं खुले में रखी जाती हैं। यहां से इन्हीं दवाओं को सीएचसी-पीएचसी में भेज दिया जाता है।
अस्पतालों में कुछ ही जगह सेंट्रलाइज्ड एसी
राजधानी के बडे संस्थानों को छोड़ दें तो कहीं भी दवा भंडारण के मानकों का पालन नहीं हो रहा है। लोहिया अस्पताल और सिविल को छोड़कर कहीं भी औषधि भंडारण के लिए सेंट्रलाइज्ड एसी नहीं है। बलरामपुर अस्पताल में वैक्सीन और फ्ल्यूड के लिए एसी की व्यवस्था है। नये स्टोरेज में यह भी नहीं है। वहीं लोकबंधु राजनारायण अस्पताल और रानी लक्ष्मीबाई संयुक्त अस्पताल में भी दवाओं के स्टोरेज के लिए सेंट्रलाइज्ड एसी की व्यवस्था नहीं है।
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दो माह पूर्व सैंपल में मिली थी गड़बड़ी
एफएसडीए की ओर से लगभग दो माह पूर्व बलरामपुर अस्पताल के दवा स्टोर में छापा मारा गया था। जिसमें कुछ दवाएं मिस ब्रांड पाई गई थी। बाद में अस्पताल प्रशासन को नोटिस भी दिया गया था।
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क्या हैं मानक
-दवाओं के स्टोरेज के लिए कमरा हो
- दवाओं के गत्ते को पिलेट्स के ऊपर ही रखा जाए
-दवाएं ऐसी जगह स्टोर हों जहां आस-पास नमी या गंदगी न हो
- स्टोर का तापमान 25 डिग्री से ज्यादा न हो
- स्टोरेज सिस्टम के लिए सेंट्रलाइज्ड एसी हो
- कोल्ड चेन मेनटेन रखी जाय
- दवाओं का पूरा रिकॉर्ड मेनटेन हो।
वर्जन
अधिकतर दवाएं आरसी में शामिल होती हैं। इसके बाद भी अगर कोई दवा हमें ठीक नहीं लगती है तो उसे चेक करते हैं, एफएसडीए को सूचना देते हैं। साथ ही जो दवाएं कोल्ड चेन में रखी जानी होती हैं उन्हें वहीं रखा जाता है।
सीएमओ, डॉ. नरेंद्र अग्रवाल