Health Index 2019 : टीबी के इलाज में झटके से नीचे आया यूपी, कई बिंदुओं पर पिछड़ी स्वास्थ्य सेवाएं
हेल्थ इंडेक्स-2019 के मुताबिक यूपी में 2015-16 के मुकाबले 2017-18 में जहां नवजातों की सेहत पर खतरा बढ़ा है वहीं सबसे बड़ा झटका टीबी इलाज की सफलता दर में भारी गिरावट से लगा है।
लखनऊ, जेएनएन। स्वास्थ्य विभाग के दावे भले ही आसमान छू रहे हों, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा जारी राज्यों के हेल्थ इंडेक्स-2019 ने चेतावनी की घंटी बजा दी है। यह रिपोर्ट बता रही है कि उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं की सेहत ठीक नहीं है। इंडेक्स के मुताबिक 2015-16 के मुकाबले 2017-18 में जहां नवजातों की सेहत पर खतरा बढ़ा है, वहीं सबसे बड़ा झटका टीबी इलाज की सफलता दर में भारी गिरावट से लगा है।
स्वास्थ्य क्षेत्र में वर्ष 2015-16 के मुकाबले 2017-18 में गिरावट दिखा रहा इंडेक्स एक तरह से प्रदेश में भाजपा सरकार के पहले साल के कार्यकाल की भी रिपोर्ट है। आंकड़े बता रहे हैैं कि 2017-18 में भाजपा सरकार के पहले वर्ष में स्वास्थ्य विभाग कई महत्वपूर्ण मोर्चों पर विफल रहा है। टीबी का इलाज भी इनमें से एक है। केंद्र सहायतित योजना के साथ प्रदेश में भी टीबी नियंत्रण के लिए विभिन्न कार्यक्रम संचालित किए जाते हैैं। इन्हीं कार्यक्रमों की बदौलत प्रदेश में टीबी इलाज की सफलता दर 2015-16 में 87.5 फीसद थी, जो 2017-18 में घटकर 64 फीसद रह गई।
प्रदेश में सभी टीबी मरीजों को तलाशने में हांफ रहा स्वास्थ्य विभाग दो साल के भीतर 23.5 फीसद पीछे आ गया। टीबी के इलाज में इस गिरावट से प्रदेश को तगड़ा झटका लगा है। दो साल के भीतर हेल्थ इंडेक्स में प्रदेश का स्कोर 33.69 से 5.08 अंक घटकर 28.61 पर आने के लिए टीबी इलाज की सफलता में आई गिरावट को प्रमुख तौर पर जिम्मेदार माना जा रहा है।
नवजातों का घटा वजन
नवजातों की मृत्यु दर घटाने के लिए जरूरी है कि जन्म के समय वे स्वस्थ हों और उनका वजन न्यूनतम मानक से अधिक हो, लेकिन गर्भवती महिलाओं के पोषण के लिए विभिन्न योजनाएं संचालित करने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग प्रदेश में नवजातों की सेहत और वजन बनाए रखने में फिसड्डी साबित हुआ है। वर्ष 2015-16 में प्रदेश में जन्म के समय कम वजन (लो बर्थ वेट) के मामले 9.6 फीसद थे। दो साल में कम वजन के साथ जन्म लेने वाले बच्चों की संख्या 1.58 फीसद बढ़ गई। हेल्थ इंडेक्स के मुताबिक 2017-18 में जन्म लेने वाले बच्चों में 11.18 फीसद का वजन मानक से कम था।
खास बात यह कि गिरावट केवल नवजातों की सेहत में ही नहीं, इससे जुड़े सरकारी कामकाज और प्रयासों में भी आई है। इंडेक्स बताता है कि नवजातों के पंजीकरण में भी स्वास्थ्य विभाग ढीला पड़ गया है। 2015-16 में पंजीकरण का औसत 68.3 फीसद था, जो 2017-18 में घटकर 60.7 प्रतिशत रह गया। विशेषज्ञों के मुताबिक पंजीकरण में कमी आना इसलिए भी गंभीर है, क्योंकि पंजीकरण ही नहीं होगा तो पोषण, स्वास्थ्य और योजनाओं का लाभ भी नहीं मिलेगा।
टीकाकरण में भी फिसड्डी
टीकाकरण और संस्थागत प्रसव जैसे महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य से जुड़े कई बिंदुओं पर भी प्रदेश में स्थिति सुधरने की बजाय और बिगड़ी है। हेल्थ इंडेक्स बताता है कि संपूर्ण टीकाकरण कवरेज में जहां 2015-16 के 84.92 फीसद के मुकाबले 2017-18 में 0.14 की गिरावट दर्ज की गई है, वहीं संस्थागत प्रसव में इन दो वर्षों के भीतर 1.82 फीसद की बड़ी कमी सामने आई है। 2015-16 में 52.38 फीसद संस्थागत प्रसव होते थे, जबकि 2017-18 में यह संख्या घटकर 50.56 फीसद रह गई।
अफसरों के फेरबदल पर सवाल
नीति आयोग, विश्व बैैंक और केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा जारी हेल्थ इंडेक्स में स्वास्थ्य विभाग के प्रदेश स्तर के शीर्ष अधिकारियों से लेकर जिलों में सीएमओ तक को बार-बार हटाने पर भी सवाल उठाए गए हैैं। इसे योजनाओं में बाधा के तौर पर देखा जा रहा है। इंडेक्स बताता है कि राज्य स्तर के प्रमुख पदों पर 2015-16 में जो फेरबदल बीते तीन वर्ष के औसत से 19.64 महीने में होता था, वह 2017-18 में केवल 9.67 माह में किया गया। इसी तरह सीएमओ की तैनाती भी इन दो वर्षों में 14.15 माह के औसत से घटकर 10.53 महीने रह गई।
देर से आ रहा पैसा
हेल्थ इंडेक्स का एक और चौंकाने वाला तथ्य यह भी है कि केंद्र और राज्य में जब अलग-अलग दलों की सरकारें थीं तब स्वास्थ्य योजनाओं के लिए केंद्र से राज्य को जल्द धन प्राप्त हो जाता था, जबकि दोनों जगह भाजपा की सरकार बनने के बाद अब इसमें अधिक समय लग रहा है। आंकड़े बताते हैैं कि 2015-16 में जब केंद्र में भाजपा और राज्य में सपा सरकार थी, तब पैसा आने में 93 दिन लगते थे। 2017 में प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद पैसा आने में औसतन 118 दिन लगने लगे।
विरासत में मिली थी ऐसी व्यवस्था : सिद्धार्थनाथ
स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थनाथ सिंह ने हेल्थ इंडेक्स में कमजोर नजर आ रही प्रदेश की तस्वीर के लिए पिछली सपा सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। सिंह ने बुधवार को कहा कि उन्हें यह व्यवस्थाएं विरासत में मिली थीं। टीबी इलाज में सफलता दर कम होने के लिए उन्होंने राज्य क्षय अधिकारी द्वारा दिलचस्पी न लिए जाने को जिम्मेदार ठहराते हुए बताया कि इन अधिकारी को पिछले साल ही हटा दिया गया था। उन्होंने बताया कि वर्ष 2018-19 में राज्य इस कार्यक्रम में 82 फीसद सफलता पर है।
अब हो रहा है सुधार
सिद्धार्थनाथ सिंह ने बताया कि जन्म पंजीकरण सहित अन्य बिंदुओं पर सुधार न करने पर 15 जिलों के अधिकारियों को बदला जा रहा है, जबकि अन्य क्षेत्रों में भी सुधार के प्रयास किए जा रहे हैैं। उन्होंने बताया कि मानव संपदा के क्षेत्र में प्रगति करते हुए 1.3 लाख स्वास्थ्य कर्मियों का डाटा फीड किया गया है। सिंह ने कहा कि जिन 23 मानकों पर इंडेक्स बनाया गया है, उसमें अधिकतर बिंदुओं में प्रदेश में सुधार दिख रहा है। हेल्थ इंडेक्स को लेकर स्वास्थ्य मंत्री की बुधवार सुबह राजभवन में राज्यपाल राम नाईक से भी चर्चा हुई। मंत्री ने नाईक को बताया कि पिछली गड़बड़ियों की वजह से 2017 में स्थिति कमजोर थी, जबकि अब इसमें सुधार हो रहा है।
विपक्ष ने स्वास्थ्य मंत्री से इस्तीफा मांगा
प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं पर नीति आयोग की रिपोर्ट को योगी सरकार के लिए आईना बताते हुए विपक्ष ने स्वास्थ्य मंत्री से इस्तीफा मांगा। समाजवादी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने आरोप लगाया कि नीति आयोग की रिपोर्ट प्रदेश सरकार की कलई खोलने को पर्याप्त हो। सपा शासनकाल में जनता को प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गयी है। सपा कार्यकाल में किए कार्यो पर वाहवाही लूट रही सरकार को जनता कभी माफ नहीं करेगी। स्वास्थ्य मंत्री अपने पद पर बने रहने का नैतिक अधिकार खो चुके है।
प्रदेश कांग्रेस के फ्रंटल संगठन प्रभारी वीरेंद्र मदान ने आरोप लगाया कि योगी सरकार जनता को बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराना तो पुरानी व्यवस्थाएं भी बरकरार नहीं रख सकी। जिसके चलते प्रदेश में हाहाकार जैसे हालात बने हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री व उनके मंत्री अपनी पीठ खुद ठोक रहे है और जनता जरूरी दवाओं के लिए तरस रही है। उन्होंने नैतिकता से आधार पर स्वास्थ्य मंत्री से त्यागपत्र देने को कहा।
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