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उत्तर प्रदेश में भूजल स्तर पहुंचा सौ फीट नीचे, अब परंपराएं भरेंगी धरा की कोख

लखनऊ में भूजल का दोहन इतना बढ़ा कि भूमि की सतह के नीचे भूजल की एक्वाफायर लेयर समाप्त होने की सीमा पर पहुंच रही है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 03 Dec 2018 11:40 AM (IST)Updated: Tue, 04 Dec 2018 08:47 AM (IST)
उत्तर प्रदेश में भूजल स्तर पहुंचा सौ फीट नीचे, अब परंपराएं भरेंगी धरा की कोख
उत्तर प्रदेश में भूजल स्तर पहुंचा सौ फीट नीचे, अब परंपराएं भरेंगी धरा की कोख

लखनऊ, [अजय श्रीवास्तव]। उत्तर प्रदेश में सूख रही धरती की कोख को भरने में पुरानी और अनूठी परंपराओं का सहारा लिया जाएगा। इसमें पौढ़ी के ‘पाणी राखो’ और उत्तराखंड के मैत्री (विवाहित बेटी के परिजन) जैसे आंदोलन को आधार बनाया जाएगा।

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गिरते जलस्तर को कम करने के लिए सरकार यह पहल करने जा रही है। पानी को लेकर आई भयावह रिपोर्ट के बाद ही सरकार ने एक सप्ताह पहले यह निर्देश जारी किया है कि पानी से जुड़ी सभी पुरानी परंपराओं का ब्योरा जुटाया जाए, जिससे भूजल बचाने के लिए परंपराओं के माध्यम से हर किसी को जोड़ा जाए। सरकार को दी गई इस रिपोर्ट में कृषि विभाग, वन विभाग सिंचाई विभाग, नगर विकास विभाग, राजस्व विभाग, भू-गर्भ जल विभाग, जलनिगम को भी सुझाव दिए गए हैं। सरकार ने गिरते भूजल के कारणों और उसमें सुधार को लेकर एक रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट में सभी विभागों के बारे में कार्ययोजनाएं बनाई और जल प्रशिक्षित प्रबंधन विशेषज्ञों के सुझावों को शामिल किया गया।

इन आंदोलनों का सरकार ने दिया उदाहरण

पाणी राखो

पौढ़ी के दूधतोली इलाके में सच्चिदानंद भारती ने वर्षा जल संचयन के लिए चाल-खाल (तालाब) की पुरानी परंपरा को आंदोलन की तरह आगे बढ़ाया गया था। यह आंदोलन पाणी राखो के नाम से मशहूर हो गया था।

भरी धूप में तालाबों की खोदाई

महोबा में 500 किसानों और झांसी, ललितपुर, चित्रकूट, जालौन और बांदा में 250-250 किसानों ने भरी धूप में तालाबों को खोद डाला था। इस तालाबों में पानी भरेगा तो एक एकड़ खेत में हर तालाब दो बार तराई करने की क्षमता रख रखेगा।

जल की धाराएं

रेमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता राजेंद्र सिंह ने अपने स्वयं सेवी संगठन तरुण भारत संघ के माध्यम से राजस्थान के सूखे इलाकों में जल की धाराएं पैदा कर दी थी। अब रेगिस्तान में भी किसान विभिन्न तरह की फसलें पैदा कर रहे हैं।

मैत्री आंदोलन

पानी के संरक्षण के साथ-साथ पानी और पेड़ों के संवर्धन की अनूठी नई परंपरा भी उत्तराखंड में 1995 में मैत्री आंदोलन से शुरू हुई थी। मैत्री का अर्थ विवाहित बेटी के परिजन होते हैं। मैत्री आंदोलन जीव विज्ञान के प्रवक्ता रहे कल्याण सिंह रावत ने शादी-विवाह में नव दंपती को यादगार में पेड़ लगाने की प्रेरणा दी थी। कई जगह दूल्हे-दुल्हन के घर-गांव के आसपास व पानी स्रोत के आसपास पेड़ लगाए गए। यह आंदोलन इतना बढ़ा था कि देश विदेश में चर्चा में आ गया था।

अलर्ट कर रही है रिपोर्ट

  • प्रत्येक वर्ष चार सेंटीमीटर यानी 1.6 इंच जलस्तर कम हो रहा है
  • उत्तर प्रदेश में भूजल सौ फीट नीचे चला गया है
  • लखनऊ में भूजल का दोहन इतना बढ़ा कि भूमि की सतह के नीचे भूजल की एक्वाफायर लेयर समाप्त होने की सीमा पर पहुंच रही है

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