Ground Report: लखनऊ में फैला भ्रष्टाचार का धंधा, चार हजार में झोपड़ी, 30 रुपये में बिजली और 4 करोड़ की वसूली
Ground Report On Illegal Jhuggi Jhopdi In Lucknow ये कहानी लखनऊ ही नहीं देश के हर शहर की है। जहां सरकारी सिस्टम की नाक के नीचे झुग्गी झोपड़ियों को अवैध रूप से बसाया जा रहा है। बात राजधानी की करें तो झुग्गियों में बसने वाले आधे से ज्यादा बांग्लादेशी है।
लखनऊ, जागरण टीम। Ground Report On Illegal Jhuggi Jhopdi In Lucknow झोपड़ी चाहिए तो चार हजार लगेंगे...लहजा तल्ख था और अंदाज कारोबारी..लेना हो तो लो, नहीं तो आगे निकलो, यहां मोलभाव नहीं होता। हमारे सामने सैकड़ों झोपड़ियां थीं और इन्हें बसाने वाले ठेकेदार का गुर्गा सुरेश। भरोसा जीतने के लिए उसने आश्वस्त किया- यहां कोई समस्या नहीं, पुलिस और सरकारी अफसरों को हम समझ लेंगे, हां, बिजली पानी का अलग से देना होगा।
लखनऊ का झुग्गी माफिया की जेब में पुलिस और सरकारी अफसर
हमें इसी कालोनी में एक झोपड़ी की दरकार थी, जिसे उस समानांतर व्यवस्था ने बसा रखा था, जो भ्रष्टाचार की नींव पर खड़ी हुई थी और जिसमें लोग हर झोपड़ी की कीमत देकर बसे हुए थे और संरक्षित थे। सो, हमने चार हजार रुपये दिये और एक झोपड़़ी अपने नाम करवा ली। तीन दिनों की मेहनत के बाद हमें सुरेश की बदौलत यह कब्जा मिल पाया और तब पता चला कि असली झुग्गी माफिया कोई सुधीर है और सुरेश है उसका कारिंदा।
दैनिक जागरण की टीम ने चार हजार रुपये में खरीदी झोपड़ी
हम यानी खरीदार के रूप में दैनिक जागरण के चार पत्रकार अम्बिका वाजपेयी, राजीव बाजपेयी, निशांत यादव और सौरभ शुक्ल जो ठेकेदार और मजदूर बनकर एलडीए की सेक्टर सी अलीगंज विस्तार योजना के पार्क में पहले पड़ाव के रूप में यह पड़ताल करने पहुंचे थे कि शहर की अवैध झोपड़पट्टियों के पीछे कौन लोग हैं, उनका अर्थ तंत्र क्या है और इस भ्रष्टाचार को किसकी शह मिली हुई है।
झोपड़ी में रहने वाले 50 प्रतिशत अवैध बांग्लादेशी
यह महज एक झोपड़पट्टी की बात नहीं थी, पूरे प्रदेश में ऐसी सैकड़ों अवैध बस्तियां हैं जो नगर निगम और प्राधिकरणों की जमीन पर बसी हुई हैं और जिनमें रहने वाले लगभग 50 प्रतिशत अवैध बांग्लादेशी हैं और किन कार्यों में जुटे हुए हैं, इसका कोई रिकार्ड नहीं है। हमारी पड़ताल के मायने इस संदर्भ में भी थे कि बीते दिनों पुलिस ने प्रतिबंधित पीएफआइ के एक सदस्य को एक झुग्गी से ही पकड़ा था।
फल-फूल रहा अवैध झोपड़पट्टियों का करोड़ों रुपये का कारोबार
जागरण टीम ने शहर के अलग-अलग इलाकों में इसी तरह स्टिंग कर झोपड़ियां खरीदीं और यह निष्कर्ष सामने आया कि सरकारी कर्मचारियों और ठेकेदारों के गठजोड़ से इन झोपड़पट्टियों में करोड़ों रुपये का कारोबार चल रहा है। इन अवैध बस्तियों को संबंधित विभागों के अधिकारी रोज ही देखते हैं और उदासीन हो आगे बढ़ जाते हैं। किसी के दिमाग में यह कौंधता तक नहीं कि इन्हें बिजली और पानी कैसे मिला हुआ है। पुलिस भी नहीं जानना चाहती कि इनमें कौन-कौन लोग बसे हुए हैं।
आधार कार्ड मांगा तो जवाब मिला कि हम तो बाहर के
इन झोपड़ियों में रहने वाले आधे से अधिक अजनबी चेहरे अपरिचित बोली के कारण स्थानीय लोगों से कतराते हैं। इनमें रोहिंग्या और बांग्लादेशी भी हैं क्योंकि किसी बाहरी व्यक्ति को देखकर इनका सतर्क होना ही बताता है कि यहां सब कुछ ठीक नहीं। एक बस्ती में इनसे आधार कार्ड मांगा तो जवाब मिला कि हम तो बाहर के हैं, कार्ड वहीं है। हमें तो सुधीर दादा ने बसा रखा है...कहीं सुधीर तो कहीं गुलफाम, तो कहीं नसीर यादव टिंबर वाले अवैध शहर बसाते मिले।
कहां जाता है पैसा
- एलडीए
- थाना मड़ियांव
- विद्युत उपकेंद्र इंजीनियरिंग कॉलेज
- नगर निगम जोनल कार्यालय
- जल निगम
50 हजार झोपड़ियों का अर्थ तंत्र
- झोपड़ियों की संख्या- 50 हजार
- एक झोपड़ी की कीमत- चार हजार रुपये
- सभी झोपड़ियों की कीमत- बीस करोड़ रुपये
- एक झोपड़ी का प्रतिमाह किराया औसतन- 800 रुपसे
- सभी झोपड़ियों का प्रतिमा किराया- करीब 4 करोड़
- बिजली एक झोपड़ी प्रतिमाह- 30 रुपये
- सभी झोपड़ियों का बिजली खर्च प्रतिमाह- 15 लाख
- एक झोपड़ी का पानी का किराया प्रति माह- 20 रुपये
- सभी झोपड़ियों का पानी का प्रतिमा किराया करीब- चार करोड़ रुपये
एलडीए की साठ हजार वर्ग फीट जमीन पर कब्जा
सेक्टर सी अलीगंज योजना में करीब साठ हजार वर्ग फीट क्षेत्रफल में झोपड़ियां बनी हुई हैं। इस बड़े पाकेट की प्लानिंंग लखनऊ विकास प्राधिकरण के अफसरों ने अभी तक नहीं की है। इस जमीन की सरकारी कीमत की बात करें तो करीब 49 करोड़ है। वहीं इसका बाजार भाव अरबों में होगा।