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    Gomti Riverfront Scam : लखनऊ में रिवरफ्रंट घोटाले की जांच जद में दो पूर्व मुख्य सचिव भी, सीबीआई ने उत्तर प्रदेश सरकार से मांगी जांच की इजाजत

    By Dharmendra PandeyEdited By:
    Updated: Sun, 26 Jun 2022 12:48 PM (IST)

    Lucknow Gomti Riverfront Scam आलोक रंजन की अध्यक्षता में टास्क फोर्स का गठन किया गया था। इसमें तत्कालीन प्रमुख सचिव (सिंचाई) दीपक सिंघल सिंचाई विभाग के तत्कालीन प्रमुख अभियंता विभागाध्यक्ष और मुख्य अभियंता भी शामिल थे। गोमती रिवर फ्रंट टास्क फोर्स ने इस दौरान 23 बैठक कीं ।

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    Lucknow Gomti Riverfront Scam: CBI Investigation In Progress

    लखनऊ, जेएनएन। राजधानी लखनऊ में अखिलेश यादव सरकार के कार्यकाल में गोमती रिवरफ्रंट के बड़े घोटाले की आंच दो पूर्व मुख्य सचिव तक आ गई है। लखनऊ में गोमती रिवरफ्रंट घोटाला मामले की जांच कर रही सीबीआइ की टीम ने उत्तर प्रदेश सरकार से दो पूर्व मुख्य सचिवों आलोक रंजन और दीपक सिंघल के खिलाफ जांच की अनुमति मांगी है।

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    लखनऊ के गोमती रिवरफ्रंट घोटाले में जांच की आंच बड़ों तक पहुंचने लगी है। सीबीआई की लखनऊ की एंटी करप्शन ब्रांच ने उत्तर प्रदेश सरकार से तत्कालीन मुख्य सचिव आलोक रंजन और प्रमुख सचिव सिंचाई के बाद मुख्य सचिव बने दीपक सिंघल के खिलाफ जांच की मंजूरी मांगी है। प्रदेश के इस बड़े घोटाले में गिरफ्तार इंजिनियर्स के बयान और दस्तावेज के आधार समाजवादी पार्टी की कार्यकाल के दोनों पावरफुल आईएएस अफसरों की जांच का नंबर आ गया है।

    उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन तथा दीपक सिंघल रिवर फ्रंट के निर्माण को लेकर गठित उच्चस्तरीय अनुश्रवण समिति (टास्क फोर्स) का सबसे अहम हिस्सा थे। आलोक रंजन और दीपक सिंघल के जांच के घेरे में आने की वजह योजना में हुईं गड़बडिय़ों की अनदेखी को बताया जा रहा है। प्रदेश में गोमती रिवर फ्रंट को मंजूरी मिलने के बाद 25 मार्च, 2015 को आलोक रंजन की अध्यक्षता में टास्क फोर्स का गठन किया गया था। इसमें तत्कालीन प्रमुख सचिव (सिंचाई) दीपक सिंघल, सिंचाई विभाग के तत्कालीन प्रमुख अभियंता, विभागाध्यक्ष और मुख्य अभियंता भी शामिल थे।

    गोमती रिवरफ्रंट टास्क फोर्स ने इस दौरान 23 बैठक कीं और दीपक सिंघल ने प्राजेक्ट के 20 से 25 दौरे किए थे। इस दौरान इन्हें कोई गड़बड़ी और अनियमितता नहीं दिखाई दी। कार्य प्रारंभ होने के कम समय में ही योजना से जुड़े हर काम का बजट छह से आठ गुना बढ़ गया, नियमों के विरुद्ध टेंडर होते रहे और मनाही के बावजूद एक काम के बजट का इस्तेमाल दूसरे काम में होता रहा। इसके बावजूद कोई सवाल नहीं उठाए गए और न ही किसी के खिलाफ जांच करवाई गई। राज्य सरकार की जांच समिति ने अपनी रिपोर्ट में इसे समझ से परे बताते हुए कहा था कि इतनी बड़ी परियोजना में कोई चेक्स ऐंड बैलेंसेज का सिस्टम प्रतीत नहीं होता है।

    इंजीनियर्स के बयानों से बढ़ीं मुश्किलें : सीबीआई के साथ ही राज्य सरकार की कमेटी ने जांच के दौरान जिन इंजीनियर्स के बयान लिए गए, उनमें से कुछ ने कहा है कि तय सीमा पार करके अधिक खर्च और भुगतान इसलिए किया गया, क्योंकि काम जल्द खत्म करने के टास्क फोर्स से निर्देश दिए जा रहे थे। तत्कालीन सीएम के ड्रीम प्रॉजेक्ट और काम जल्द खत्म करने की आड़ में कई काम बिल्कुल छोड़ दिए गए। कुछ कार्यों की प्रगति धीमी रखी गई और छूटे कार्यों का बजट दूसरी जगह बिना मंजूरी लगा दिया गया।

    सरकारी पैसों पर विदेश यात्राएं : गोमती रिवरफ्रंट चैनलाइजेशन और रबर डैम की तकनीक के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए आलोक रंजन, दीपक सिंघल और अन्य अधिकारियों ने तत्कालीन सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव के साथ चीन, जापान, स्टॉकहोम, जर्मनी, मलयेशिया, सिंगापुर, साउथ कोरिया और ऑस्ट्रिया जैसे देशों की यात्राएं कीं। जांच के दौरान सिंचाई विभाग के अधिकारी और इंजिनियर इन यात्राओं का ब्योरा नहीं दे सके। 

    गोमती रिवरफ्रंट अखिलेश यादव का ड्रीम प्रोजेक्ट है। यह घोटाला करीब 1400 करोड़ से ज्यादा का माना जा रहा है। 2017 मेंयोगी आदित्यना थसरकार आने के बाद गोमती रिवरफ्रंट घोटाले की जांच शुरू की गई थी। प्रारंभिक जांच के बाद इस मामले को सीबीआई के हवाले कर दिया गया। 30 नवंबर 2017 को सीबीआई ने पहली एफआईआर दर्ज की गई थी। इसमें 189 लोगों को आरोपी बनाया है, जिसमें पब्लिक सर्वेंट और प्राइवेट लोग शामिल हैं। आरोप है कि गोमती रिवर चैनलाइजेशन प्रोजेक्ट और गोमती रिवर फ्रंट डेवेलपमेंट में सिंचाई विभाग की तरफ से अनियमितता बरती गई थी।

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