यूपी में आप राहत की सांस ले सकते हैं, अंतिम डकैत गौरी यादव से भी मुक्त हुआ प्रदेश; पढ़िये- INSIDE STORY
Dacoit Gauri Yadav Encounter एसटीएफ के अपर पुलिस महानिदेशक अमिताभ यश कहते हैं कि बुंदेलखंड की धरती अब डकैत मुक्त है। ददुआ के मारे जाने के बाद तमाम नए गिरोह पनपते रहे। इतिहास में पहली बार पहली बार पाठा दस्यु मुक्त दिख रहा है।
लखनऊ, राजू मिश्र। Dacoit Gauri Yadav Encounter आप राहत की सांस ले सकते हैं, उत्तर प्रदेश अब डकैत मुक्त प्रदेश है। दरअसल उत्तर प्रदेश के आखिरी डकैत गौरी यादव को पाठा के बीहड़ों में स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) ने मार गिराया है। लिहाजा 253 गांवों के समूह पाठा के डकैत अब केवल किताबों या फिर फिल्मों में दिखाई देंगे। चित्रकूट की तपोभूमि जहां कभी राम रमे थे, डकैतों ने दशकों से उत्पात मचा रखा था। तमाम डकैत उत्तर प्रदेश में अपराध करते और मध्य प्रदेश की सीमा सटी होने के कारण भाग निकलते थे।
पाठा क्षेत्र में तेंदू के पेड़ बहुतायत हैं। सूखा, कभी अतिवृष्टि तो कभी अकाल यहां की बदकिस्मती है। यहां के बाशिंदों के लिए तेंदू के पत्ते ही रोजी-रोटी का जरिया हैं। तेंदू के पत्ते से बीड़ी बनती है। तेंदू पत्ता ठेकेदार जिन्हें स्थानीय बोली में ‘दादू’, से चौथ वसूली करते यहां दस्यु गिरोह पनपे और शनै: शनै: उनका मनोबल इस कदर बढ़ा कि उन्हें किसी का भय नहीं रहा। पुलिस हो चाहे सरकार, वह किसी को कुछ भी नहीं समझते थे। तब आरोप यह भी लगता रहा कि यहीं के कतिपय जनप्रतिनिधि डाकुओं के प्रश्रयदाता हैं।
वर्ष 1960 में पाठा में डाकू राममूरत सोनी और गया कुर्मी के सबसे पहले सक्रिय होने का विवरण पुलिस की फाइलों में मिलता है। डाकू जगतपाल पासी ने जब तत्कालीन मुख्यमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह के भाई जस्टिस सीपीएन सिंह को मार दिया तब सरकार चेती अन्यथा डाकुओं को पकड़ने और कार्रवाई के नाम पर कथित तौर पर अभियान ही चलाए जाते रहे। जगतपाल पासी के मारे जाने के बाद दस्यु जगत में गया कुर्मी का आतंक पहले से और भी बढ़ा लेकिन, कुछ वर्षो के अंतराल के बाद गया ने सतना जिले के कोलगवां थाने में आत्मसमर्पण करके हथियार डाल दिए। तब गया ने कहा था कि वह बीहड़ की जिंदगी से उकता गया था। कुछ वर्षो बाद गया जब जेल से बाहर आया तो समाजसेवा में जुट गया। बांदा जिले के बबेरू का ब्लाक प्रमुख भी बना। गया कुर्मी के बाद उसी के शिष्य रहे शिवकुमार पटेल उर्फ ददुआ ने बचे-खुचे गिरोह के सदस्यों को लेकर अलग गिरोह खड़ा कर लिया। ददुआ का आतंक उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में कहर बनकर बरपा। रामू का पुरवा का दिल दहला देने वाला नरसंहार लोग आज तक नहीं भूले हैं। डाकुओं का गिरोह जिसे चाहता अपहृत कर लेता और मनमानी फिरौती वसूल करके छोड़ता।
ददुआ के आतंक का चरम यह था कि पुलिस के पास उसकी फोटो तक नहीं थी। ददुआ का आतंक जब चरम पर था, पुलिस ने मुखबिरी के लिए गौरी को भी लगा दिया। धीरे-धीरे पैसों के लोभ और कुछ रुतबे के चलते गौरी को अपराध की दुनिया लुभाने लगी। ददुआ के मारे जाने के बाद गौरी ने अलग गिरोह खड़ा कर लिया। यद्यपि इस दौरान अंबिका पटेल उर्फ ठोकिया, मुन्नी लाल यादव उर्फ खड़ग सिंह, खरदूषण, बलखड़िया जैसे डकैत भी उभरे, लेकिन कुछ ही वर्षो में मार गिराए गए। मारे जाने के समय गौरी पर 45 से भी अधिक मुकदमे दर्ज थे। 31 मार्च को उसके दाहिने हाथ समझे जाने वाले भालचंद्र यादव के मारे जाने से गौरी कमजोर पड़ गया था। गौरी पर पांच लाख रुपये का इनाम था।
बहरहाल गौरी के मारे जाने के साथ ही प्रदेश में अब कोई दस्यु गिरोह नहीं बचा है। इसका पूरा श्रेय है योगी आदित्यनाथ की सरकार को, जिसने साढ़े चार वर्षो में एसटीएफ और पुलिस को अत्याधुनिक संसाधन मुहैया करवाए। वैसे तो डकैतों को मौत के घाट उतारने का सिलसिला वर्ष 2005 में ही शुरू हो गया था जब इटावा से सटे चंबल के बीहड़ में निर्भय गुर्जर मारा गया था। दरअसल ददुआ ने अपने गिरोह को कई हिस्सों में बांट रखा था। छोटा पटेल और सूबेदार पटेल उर्फ राधे एक-एक गिरोह की कमान संभालते थे। ददुआ जब पूरे गिरोह को साथ लेकर निकलता था, तो उसमें लगभग 75 सदस्य होते थे।
एक बार बागी सरदार मलखान सिंह डाकू कह देने पर मुझसे नाराज हो गए थे। बाद में उन्होंने डकैत और बागी का भेद कुछ यूं बताया कि डाकू तो चोर, उचक्के और दुष्कर्मी होते हैं। लेकिन बागी उसूलों के लिए जीते हैं और मरते हैं। उनके अपने सिद्धांत होते हैं। मलखान सिंह ने कहा, ‘बागी रहते हुए हमने हजारों बेटियों के हाथ पीले करवाए, न जाने कितने मंदिर बनवाए और कितने गरीबों की मदद की, इसकी तो कोई संख्या ही याद नहीं। हमारे दौर में अगर कहीं से दुराचार की शिकायत आती थी तो सुबह होने से पहले ही कुकर्मी का सिर हमारे सामने पेश कर दिया जाता था।’ एसटीएफ के अपर पुलिस महानिदेशक अमिताभ यश कहते हैं कि बुंदेलखंड की धरती अब डकैत मुक्त है। फिर भी लगातार सजग रहने और आपरेशन चलाते रहने की जरूरत है, ताकि फिर कोई नया गैंग सिर उठाने का साहस न जुटा सके।