Gangster Vikas Dubey: बड़ा सवाल-क्या मध्य प्रदेश जाकर एनकाउंटर से बच गया विकास दुबे
Gangster Vikas Dubey पांच लाख का इनामी गैंगस्टर विकास दुबे नौ जुलाई की सुबह विकास दुबे मध्य प्रदेश के उज्जैन से पकड़ में आया। अब उसकी इस नाटकीय गिरफ्तारी पर बहस जोरों पर है।
लखनऊ, जेएनएन। कानपुर के चौबेपुर में दो-तीन जुलाई की रात दबिश देने गई पुलिस टीम के आठ जांबाजों की हत्या का मुख्य विकास दुबे आरोपित छह दिन तक उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों की पुलिस फोर्स को छकाते हुए गुरुवार को मध्य प्रदेश के उज्जैन में गिरफ्तार हो गया। अब बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि क्या पुलिस एनकाउंटर से बचने के लिए विकास दुबे उज्जैन जाकर पकड़ा गया या फिर अपने गैंग के कमजोर होने के कारण पुलिस के सामने झुक गया है।
जिस कुख्यात अपराधी को लेकर कई राज्यों की पुलिस अलर्ट थी, उसकी गिरफ्तारी उतनी ही नाटकीय ढंग से हुई। मध्य प्रदेश पुलिस उसको दबोचने का दावा कर रही है, मगर घटनाक्रम के वीडियो फुटेज उसके समर्पण करने की पटकथा सुना रहे हैं। इसी कारण से बलिदान देने वाले आठ पुलिसकर्मियों के रिश्तेदार सहित आम लोग कह रहे हैं कि दुबे की गिरफ्तारी नहीं हुई है, उसने पूरी रणनीति के तहत समर्पण किया है। वहां पर स्वयं विकास ने भी कहा कि वह खुद गिरफ्तारी देने ही यहां आया है। मध्य प्रदेश पुलिस ने दुबे के साथ दो वकीलों और शराब कंपनी के मैनेजर के साथ ही चार अन्य को भी हिरासत में लिया है। मैनेजर आनंद गैंगस्टर दुबे का दोस्त बताया जा रहा है। इसी ने विकास को उज्जैन बुलाया था। पुलिस ने इस संबंध में कोई अधिकृत जानकारी नहीं दी है, लेकिन उज्जैन में इसी दोस्त ने विकास को रहने की सुविधा दी थी।
पांच लाख का इनामी गैंगस्टर विकास दुबे नौ जुलाई की सुबह विकास दुबे मध्य प्रदेश के उज्जैन से पकड़ में आया। अब उसकी इस नाटकीय गिरफ्तारी पर बहस जोरों पर है। यूपी के पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह का मानना है कि आमतौर पर समर्पण कोर्ट के समक्ष है, पुलिस के सामने सरेंडर का कोई प्रावधान नहीं है। पुलिस जब किसी को भी पकड़ती है तो उसको गिरफ्तारी ही दिखाती है। जब किसी को पकड़ा जाता है तो उसको गिरफ्तार ही किया जाता है। पुलिस तो जुबान से भी गिरफ्तार कर लेती है। पुलिस आरोपित से अगर कहेगी कि आप गिरफ्तार हैं तो वह गिरफ्तार माना जाता है। इसके बाद अगर पुलिस आरोपित को सिर्फ छू करके छोड़ देगी तो भी वह गिरफ्तार माना जाएगा। इसके साथ ही पुलिस किसी के ऊपर बल प्रयोग करके गिरफ्तार कर सकती है। तीन तरीकों में से किसी भी तरह गिरफ्तारी की जाती है और इसके बाद 24 घंटे के अंदर कानून के तहत आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होता है।
पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह ने कहा कि कुछ पुलिस अफसर ऐसे होते हैं जो मारपीट नहीं करना चाहते तो वो आरोपी से कहते हैं कि हम तुम्हें छुएंगे नहीं, तंग नहीं करेंगे, तुम सरेंडर का एक ड्रामा कर दो। यह भी है तो कानूनी, लेकिन जायज नहीं होता है। सरेंडर होकर भी यह गिरफ्तारी ही होती है, जैसा कि उज्जैन में विकास दुबे के केस में हुआ है। अगर आरोपी सरेंडर करता है तो वह तुरंत जेल भेजा जाता है। मारपीट से बच जाता है और अपने मुकदमे की पैरवी करते हैं। इसमें एनकाउंटर का खतरा न के बराबर होता है। इस मामले में विकास दुबे को सबसे बड़ा फायदा यह मिला कि वह फर्जी मुठभेड़ में मध्य प्रदेश में नहीं मारा गया। ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता है जब किसी दूसरे राज्य की पुलिस अन्य आरोपित का एनकाउंटर करती है। दूसरे राज्य की पुलिस हमेशा जहां का वांछित होता है, उसी को वरीयता देती है। उज्जैन के एसपी ने बताया कि उज्जैन में विकास दुबे के खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया गया है। यहां पर बिना मामला दर्ज किए ही उज्जैन पुलिस ने उसे उत्तर प्रदेश एसटीएफ को सौंप दिया है। ऐसे में विकास दुबे के लिए कानूनी तौर पर एक झटका भी है।
सोची-समझी साजिश के तहत सरेंडर
पूर्व डीजीपी तथा उत्तर प्रदेश अनूसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष बृजलाल मानते हैं कि उज्जैन में यूपी के मोस्ट वांटेड अपराधी विकास दुबे ने जिस नाटकीय अंदाज में खुद को मध्यप्रदेश पुलिस के हवाले किया, वह सोची समझी साजिश के तहत किया गया सरेंडर है। इससे यह भी साफ हो गया है कि विकास दुबे के सरपरस्त अब भी हैं और उसे पूरी मदद कर रहे हैं। पुलिसकर्मी अब भी उस तक सूचनाएं पहुंचा रहे हैं और वह अपने आकाओं के भी संपर्क में हैं। बृजलाल का कहना है कि जिस तरह से विकास दुबे ने उज्जैन में मंदिर पहुंचकर अपनी पहचान उजागर की, उससे साफ है कि वह वहां सुनियोजित साजिश के तहत सरेंडर ही करने गया था। विकास अब भी अपने व्यक्तिगत व राजनैतिक रसूखों का पूरा इस्तेमाल कर रहा है। पूर्व डीजीपी केएल गुप्ता भी मानते हैं कि विकास दुबे को पूरा यकीन था कि यदि वह यूपी पुलिस के हाथ लगा तो वह उसे छोड़ेगी नहीं। विकास पुलिस, वकीलों व अपने सरपरस्तों के पूरे संपर्क में था। यह कुख्यात विकास क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम को बहुत अच्छे ढंग से जानता है। वह पहले भी जघन्य घटनाएं करके बच चुका है। इस बार भी उसका प्रयास वही है।
कमजोर पड़ गया गैंग
विकास दुबे के गुर्गे 50 हजार के इनामी प्रभात मिश्र को एसटीएफ व कानपुर पुलिस की संयुक्त टीम ने गुरुवार सुबह कानपुर के पनकी में मार गिराया। सुबह फरीदाबाद से रिमांड पर लाते वक्त गाड़ी खराब होने पर उसने दारोगा की पिस्टल छीनकर भागने की कोशिश की थी। गोलीबारी के दौरान एसटीएफ के दो सिपाही भी घायल हो गए। इटावा-कानपुर नेशनल हाईवे पर कार लूटकर भागे विकास के दूसरे गुर्गे 50 हजार इनामी बउआ उर्फ प्रवीन दुबे को इटावा पुलिस ने ढेर कर दिया। अब फरार हुए उसके तीन साथियों की तलाश में कांबिंग कराई जा रही है। इससे पहले सात जुलाई को एसटीएफ व हमीरपुर पुलिस के संयुक्त ऑपरेशन में विकास का दाहिना हाथ 50 हजार का इनामी भतीजा अमर दुबे मौदहा में मुठभेड़ में ढेर। 50-50 हजार के इनामी श्यामू बाजपेई, जहान यादव कानपुर में दबोचे गए।
क्या है कानपुर का बिकरु कांड
कानपुर के चौबेपुर थाना क्षेत्र के बिकरू गांव में दो-तीन जुलाई की रात को एक सीओ व तीन एसओ समेत आठ पुलिसकर्मी बलिदान हुए। तीन जुलाई को कानपुर के आइजी मोहित अग्रवाल व एसएसपी दिनेश कुमार पी की अगुआई में पुलिस ने विकास दुबे के मामा प्रेम प्रकाश पांडेय और चचेरे भाई अतुल दुबे को मुठभेड़ में मार गिराया। विकास के दो बीघा जमीन पर बने अभेद्य किलानुमा घर व नीचे बने बंकर को चार जुलाई को ढहाकर हथियार, बम और गोला-बारूद बरामद किए गए। आठ जुलाई को निलंबित चौबेपुर एसओ विनय कुमार तिवारी व हलका इंचार्ज केके शर्मा को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया।