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तीज त्योहार से लेकर हर संस्कार में है लोक कला

- ललित कला अकादमी में लोक कला कल और आज पर चल रही दस दिवसीय कार्यशाला - तीसरे दिन भारतीय जनम

By JagranEdited By: Published: Wed, 10 Jan 2018 07:01 PM (IST)Updated: Wed, 10 Jan 2018 07:01 PM (IST)
तीज त्योहार से लेकर हर संस्कार में है लोक कला
तीज त्योहार से लेकर हर संस्कार में है लोक कला

- ललित कला अकादमी में लोक कला कल और आज पर चल रही दस दिवसीय कार्यशाला

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- तीसरे दिन भारतीय जनमानस में लोक कला के प्रचलित तरीकों पर हुई चर्चा

जागरण संवाददाता, लखनऊ : जन्मोत्सव हो या विवाह, पूजन हो या त्योहार..लगभग हर संस्कार में स्त्रियां लोक चित्रों के जरिए अपनों के लिए मंगल कामना करती हैं। साथ ही सामाजिक से लेकर व्यावसायिक जीवन में लोक प्रतीकों का ही इस्तेमाल किया जाता है। लोक कला के ऐसे ही कई आयामों पर बुधवार को चर्चा की गई। इस दौरान भारतीय जनमानस में लोक कला के प्रचलित स्वरूपों पर व्याख्यान दिया गया।

ललित कला अकादमी में 'लोक कला कल और आज' पर चल रही दस दिवसीय संगोष्ठी में तीसरे दिन लोक कला का समकालीन चित्रकला में समावेश समेत इसके कई प्रारूपों पर चर्चा की गई। मुख्य वक्ता डॉ. रामशब्द सिंह ने ग्रामीण नारियों का लोक शिल्प सांझी पर व्याख्यान दिया तो डॉ.नीलम कांत ने लोक कला का समकालीन चित्रकला में समावेश पर चर्चा की। वहीं डॉ. रश्मि सक्सेना ने भारतीय जनमानस में प्रचलित लोक कला का वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बदलता स्वरूप, मधु शर्मा ने लोक कला में प्रतीकों का महात्म्य और प्रो कल्पना चौधरी ने तंजौर लोक कला के बारे में जानकारी दी। धन्यवाद ज्ञापन अकादमी सचिव डॉ. यशवंत सिंह राठौर ने किया।

जीवनशैली में लोक प्रतीक

प्रतीकों के महात्म्य पर मधु शर्मा ने कहा कि पैरों के निशान लक्ष्मी के आगमन के प्रतीक हैं वहीं रंगोली से आनंद और उत्सव का अहसास होता है। आभूषण सुख और संपन्न दिखाते हैं तो चाक और मिंट्टी के बर्तन कुम्हार के प्रतीक हैं। हंस को सौंदर्य से जोड़ते हैं तो शंख विजय घोष सुनाता है। इस तरह जीवन के हर शैली में लोक प्रतीक हैं।

धार्मिक आत्मा और मराठा प्रभाव वाली तंजौर कला

तंजौर कला के बारे में प्रो कल्पना चौधरी ने बताया कि इस कला की आत्मा धार्मिक है और इस पर मराठा प्रभाव है। कला की खासियत है कि इसके केंद्र में ईश्वर होते हैं। आकृति पंप सी और आंखें बादाम के आकार की होती है। इसके बनाने में बाकी कला से ज्यादा समय लगता है।

पश्चिम की सांझी कला

लोक शिल्प सांझी को समझाते हुए डॉ. रामशब्द सिंह ने कहा कि यह ऐसी कला है जिसका वास्ता पश्चिम से है, लेकिन ¨हदू से लेकर मुस्लिम सभी इसे बनाते हैं। गोबर से इस कला को दीवारों पर उकेरा जाता है।


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