पटाखे फूटने से पहले ही फूल रही राजधानी की सांस
जेएनएन लखनऊ। एनजीटी की सख्ती पर मचे शोर के बीच राजधानी की सांस पटाखे फूटने से पहले ही फूल
जेएनएन, लखनऊ। एनजीटी की सख्ती पर मचे शोर के बीच राजधानी की सांस पटाखे फूटने से पहले ही फूल रही हैं। नियम विरुद्ध अंधाधुंध निर्माण, टूटी सड़कों से उड़ती धूल, सफाई की लचर व्यवस्था और धुआं उगलते वाहन पूरे साल हवा दूषित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। यही कारण है, सर्दियां आते ही पराली व मौसम की नमी आग में घी का काम करती है। नतीजा, 29 अक्टूबर से लगातार एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआइ) 300 से अधिक रिकॉर्ड किया जा रहा है। छह नवंबर को तो प्रदूषण 447 के अत्यंत गंभीर स्तर में पहुंच गया और लखनऊ देश का तीसरा सबसे प्रदूषित शहर बना। उसके बाद से ही लगातार एक्यूआइ 300 से 400 के बीच ठहरा है। आंकड़े साफ बता रहे हैं, जिम्मेदारों की अनदेखी से राजधानी में वायु प्रदूषण दीपावली पूर्व ही सिर चढ़कर बोल रहा है।
अब सवाल उठता है कि दीपावली आते ही प्रदूषण को लेकर हाय-तौबा क्यों मचना शुरू हो जाती है। दरअसल, हम ऐसे ही प्रदूषित वातावरण में पूरे साल सांस लेते हैं लेकिन, एक्यूआइ का अक्टूबर-नवंबर में सर्दी की शुरुआत के साथ ही बढ़ना मौसमी कारण है। मौसम विशेषज्ञों के अनुसार, बारिश के बाद एंटीसाइक्लोनिक स्थितियां उत्पन्न होती हैं। हवा शांत हो जाती है। साथ ही तापमान में कमी आने से इनवर्जन की स्थिति बनती है। सरल भाषा में समझें तो गर्मियों में हम धरती की सतह से जितना ऊपर जाते हैं, तापमान कम होता जाता है। इसके उलट सर्दी में धरती से हम जितना ऊपर जाते हैं, तापमान उतना ही बढ़ने लगता है। इसके चलते वायुमंडल में एक लेयर सी बन जाती है। इसके चलते वायुमंडल में मौजूद धूल व प्रदूषित कण हवा के साथ डिस्पर्स नहीं हो पाते। एयर क्वालिटी इंडेक्स अत्यंत गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है। हां, हवा के गति पकड़ते ही प्रदूषण का स्तर भी कम होने लगता है। 87 से 77 फीसद तक प्रदूषण के लिए धूल जिम्मेदार वायु प्रदूषण के लिए धूल, वाहन से धुआं उत्सर्जन, उद्योग, ईंट-भट्टे, थर्मल इकाइयां, खनन, मार्बल कटिग आदि जिम्मेदार होते हैं। राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आइआइटी कानपुर से कराए अध्ययन में पाया कि राजधानी में पीएम 10 के लिए 87 प्रतिशत और पीएम 2.5 के लिए 77 प्रतिशत तक तमाम कारणों से उड़ती बेतहाशा धूल जिम्मेदार है। वाहन जिम्मेदार, थोड़े के समय के लिए होता पटाखों का प्रदूषण भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइआइटीआर) के पर्यावरण विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एससी बर्मन कहते हैं कि लखनऊ औद्योगिक नगरी नहीं है। तालकटोरा, चिनहट व सरोजनी नगर औद्योगिक क्षेत्र में कुछ इकाइयां जरूर हैं लेकिन, इनका वायु प्रदूषण में बहुत ज्यादा योगदान नहीं है। वाहनों का धुआं व धूल ही पूरे साल प्रदूषण फैलाती है। वह कहते हैं, जहां तक दीपावली का प्रश्न है तो पटाखों से होने वाला प्रदूषण थोड़े समय का होता है। पराली भी बढ़ाती है प्रदूषण उत्तर भारत में धान की कटाई का समय भी यही होता है। किसान धान की बची खूंट को आग लगा देते हैं जिससे धुंआ वायुमंडल में फैलता है। यह हवा के रुख के साथ ही शहरों को अपनी गिरफ्त में लेता है और प्रदूषण के साथ-साथ धुंध भी होने लगती है। इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट (आइएआरआइ) की रिपोर्ट के अनुसार, 27 अक्टूबर से 11 नवंबर के मध्य उत्तर प्रदेश में ही केवल 1455 स्थानों पर पराली जलाई गई। हरियाणा, पंजाब और मध्य प्रदेश में तो इस वर्ष भी तमाम कोशिशों के बावजूद हजारों जगह पराली जलाने की घटनाएं हो चुकी हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि प्रदेश को सीमाओं में बांटा जा सकता है लेकिन वायुमंडल को नहीं। इसीलिए पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश में जलाई गई पराली पूरे वातावरण को दीपावली से पहले ही दूषित कर देती है। मौसम देगा प्रदूषण से राहत कुछ दिन में प्रदूषण से राहत मिलेगी। स्काईमेट वेदर के मौसम विज्ञानी महेश पलावत बताते हैं कि पश्चिमी विक्षोभ जम्मू कश्मीर के पास पहुंच चुका है। जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड की ऊंची पहाड़ियों पर बर्फबारी की संभावना है। वहीं, निचले हिस्सों में 14 से 16 नवंबर के बीच बारिश की उम्मीद है। 15 की रात या 16 नवंबर की सुबह लखनऊ में भी हल्की बारिश की संभावना है। इससे प्रदूषण में कमी आएगी। हालांकि, 19-20 नवंबर से बर्फीली पहाड़ियों से आने वाली उत्तर पश्चिमी हवाएं ठंड व ठिठुरन भी बढ़ाएंगी।