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फादर्स-डे: अहसास के रिश्ते पिता जैसे फरिश्ते, इनके हौसलों पर परवाज भर रहे बच्चे

शारीरिक कमजोरी से जीतकर औरों में कर रहे जीवटता का संचार। इनके हौसलों पर परवाज भर रहे 'खास' और दिव्याग बच्चे।

By JagranEdited By: Published: Mon, 18 Jun 2018 10:55 AM (IST)Updated: Mon, 18 Jun 2018 10:59 AM (IST)
फादर्स-डे: अहसास के रिश्ते पिता जैसे फरिश्ते, इनके हौसलों पर परवाज भर रहे बच्चे

लखनऊ(दुर्गा शर्मा)। पिता अनुशासन, प्यार और फटकार है, वह संबल, शक्ति और महान है। पिता रोटी, कपड़ा और मकान है, वह छोटे से परिंदों का बड़ा आसमान है। ये खून नहीं अहसास के रिश्ते हैं। पिता के रूप में जमीं पर उतरे फरिश्ते हैं। अपने और अपनों के लिए तो हर कोई जूझता है। औरों के लिए जो संघर्षशील रहे वही महान है। 17 जून को फादर्स-डे मनाया जाता है। ऐसे में दैनिक जागरण आपको कुछ खास पिताओं से मिलवा रहा है। इन्होंने साबित किया है कि शारीरिक कमजोरी बाधा का नाम नहीं है। दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर जीवन संग्राम को जीता जा सकता है। इनके हौसलों पर आज समाज के 'खास' और दिव्याग बच्चे परवाज भर रहे हैं। इनकी जीवटता औरों को भी जीने की कला सिखा रही है।

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खास बच्चों के लिए विशेष शिक्षा :

नाम : डॉ. अमिताभ मल्होत्र

समस्या : प्रमस्तिष्क पक्षाघात

काम : स्पार्क इंडिया के फाउंडर चेयरपर्सन और डायरेक्टर रायबरेली में जन्म हुआ। डॉक्टर पिता के बेटे को प्रमस्तिष्क पक्षाघात ने शिकार बना लिया। बालपन तो सामान्य जीवन जीने को लालायित था पर सामाजिक हेय दृष्टि ने पीछा न छोड़ा। फिर भी शिक्षा का दामन थामे रखा। दोनों हाथों में कंपन के बावजूद पढ़ाई जारी रखी। ब्रेन सर्जरी भी हुई। लेफ्ट बॉडी पार्ट में पैरालिसिस हो गया। हाथों में कंपन के कारण पेपर लिखने के लिए एक व्यक्ति चाहिए होता था। आठवीं की परीक्षा थी। ऐन वक्त पर परीक्षा लिखने वाले साथी का सहयोग नहीं मिला। पिता जी की आखों में आसू देखे। मैंने बोला, स्वयं पेपर लिखूंगा। परीक्षा दी और पास हुआ। हाई स्कूल की परीक्षा के दौरान भी यही दिक्कत हुई पर उस बाधा को भी पार किया। वाणिज्य और गणित विषय के साथ आगे की पढ़ाई की। रोजाना महानगर से कैंट तक का सफर तय करते थे। टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज, मुंबई से सोशल वर्क में एमए किया। इलाहाबाद में तीन महीने विकलाग केंद्र में काम किया। फिर नवंबर 1987 से दिसंबर 1994 तक जमशेदपुर में रहकर शोध कार्य किया। फिर लखनऊ आकर सहभागी शिक्षण केंद्र में काम किया। 1996 में स्पार्क इंडिया को स्थापित किया। इसका मुख्य उद्देश्य विभिन्न दिव्यागजन को सशक्त बनाना है, खासकर उन्हें जो प्रमस्तिष्क पक्षाघात से प्रभावित हैं। 2016 में ग्रामीण परिवेश में दिव्यागजन का समावेशीकरण विषय के साथ पीएचडी पूरी की।

शिक्षा के साथ पुनर्वास भी :

2003 में ज्योति किरण स्कूल शुरू किया। शुरुआत में प्रमस्तिष्क पक्षाघात के बच्चे ही पढ़ते थे। अब अन्य दिव्यागता प्रभावित बच्चों को भी लेना शुरू कर दिया है। शिक्षा के साथ-साथ फीजियोथेरेपी, आक्यूपेशनल थेरेपी समेत अन्य तरीकों से दिव्याग और खास बच्चों के पुनर्वासन की दिशा में काम कर रहे हैं। वहीं समावेशी शिक्षा पर भी काम कर रहे हैं। आवासीय ट्रेनिंग भी करते हैं। दो साल के अंदर छह बैच में 180 शारीरिक विकलाग जन को ट्रेनिंग दी। 133 को नौकरी दिलाई।

दिव्याग बच्चों को बना रहे स्वावलंबी:

नाम : सिताशु कुमार

समस्या : मस्कुलर डिस्ट्राफी

काम : पंजाब एंड सिंध बैंक, इंदिरा नगर शाखा में प्रबंधक। शाश्वत जिज्ञासा संस्था के संस्थापक। 14 साल की उम्र में मस्कुलर डिस्ट्राफी (मासपेशिया कमजोर होती जाती हैं) का पता चला। डॉक्टर ने बोला इसका इलाज नहीं है। निराशा हुई पर हिम्मत नहीं हारी। समर्पित होकर पढ़ाई की। बीएससी के साथ सरकारी नौकरी की तैयारी भी चलती रही। 1981 में राजस्व परिषद उप्र में नौकरी लगी। 1986 में बैंकिंग सेक्टर में काम शुरू किया। 1996 में दुर्घटना हुई। पैर में चोट लगी। बेड रेस्ट के दौरान मन रचनात्मकता की ओर गया। कविताएं और लघु कथाएं लिखीं। बाल कविताओं का संग्रह प्रकाशित हो चुका है। इसे ब्रेल में भी निश्शुल्क उपलब्ध करा रहे हैं। 'खास' बेटियों के लिए पैड बैंक :

माहवारी स्वच्छता की दिशा में भी काम कर रहे हैं। महिलाओं की खास टीम बनाई है। स्पेशल चाइल्ड के दो स्कूलों में विजिट कर चुके हैं। गर्मियों की छुट्टियों के बाद यहा 11 साल से ऊपर की लड़कियों के लिए फ्री सेनेटरी पैड बैंक शुरू करेंगे। पीड़ा ने रखी जागरूकता की नींव :

दिव्याग और खास बच्चों की मदद के लिए 2009 में शाश्वत जिज्ञासा संस्था शुरू की। ऐसे बच्चों को रोजगारपरक प्रशिक्षण देते हैं। दो सालों में एनबीआरआइ के साथ मिलकर तीन सौ से ज्यादा बच्चों को प्रशिक्षित कर चुके हैं। सीमैप के साथ मिलकर अगरबत्तिया बनाने समेत अन्य कार्यशालाओं में इन बच्चों को शामिल किया। हस्तनिर्मित वस्तुएं बनाने की ट्रेनिंग भी दी है। जनवरी 2018 में 142 बच्चों को हियरिंग एड उपलब्ध कराए। ट्राई साइकिल, व्हील चेयर और ब्लाइंड स्टिक भी देते हैं। दिव्यागजन को गोद लें :

नाम : अरविंद निगम

पद : इंचार्ज, लिंब सेंटर, केजीएमयू कृत्रिम अंगों के जरिए कई दिव्यागजन को समाज की मुख्य धारा से जोड़ चुके हैं। दिव्यागजन की मदद के उद्देश्य से उनको गोद लेने का संदेश देते हैं। बताते हैं, घर से अस्पताल आते वक्त रास्ते में एक मंदिर पड़ता है। वहा रुक जाया करते थे। एक दिन एक व्यक्ति पर नजर पड़ी। बात की तो पता चला चाट का ठेला लगाता था दुर्घटना में दोनों पैर चले गए। उसने कहा, आर्थिक मदद मिल जाए तो फिर से ठेला शुरू कर सकता है। उसे अस्पताल बुलाया। ट्राई साइकिल देने के साथ ही उसके पुनर्वासन के अन्य उपाय किए। ऐसे तीन और लोग हैं, वार्षिक रूप से जिनकी हर संभव मदद करते हैं।

साथ में मनाएंगे खुशी :

अपने और परिवारीजन के जन्मदिन, शादी की सालगिरह और अन्य अवसरों पर दिव्यागजन के साथ खुशी मनाने का निर्णय किया है। 16 जुलाई से इसकी शुरुआत करेंगे। दिव्यागजन के स्कूल में जाएंगे। उनकी ड्रेस और कॉपी किताब का प्रबंध करेंगे।

तुझमें ही तो बसी है मेरी जान. :

पिता और बेटी का नाता पाक और संवेदनशील है। फादर्स डे के उपलक्ष्य में इसी रिश्ते को संगीत से सजाकर पेश किया गया। यू ट्यूब पर लाच 'तुझमें ही तो बसी है मेरी जान' म्यूजिक वीडियो को लोग पसंद कर रहे हैं। विपिन प्रियंक प्रोडक्शन ने यह म्यूजिक वीडियो तैयार किया है। विपिन अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित इस म्यूजिक वीडियो में एक पिता और उसकी बेटी के बीच के मधुर संबंध को बखूबी दिखाया गया है। बकौल विपिन इस म्यूजिक वीडियो के द्वारा वह दिखाना चाहते हैं कि एक पिता के लिए अपनी बेटी की छोटी सी छोटी चीजें कितनी अहम होती हैं। कैसे एक पिता अपनी बेटी को दुनिया की हर खुशी देने के लिए जद्दोजहद करता है। करीब साढ़े चार मिनट के वीडियो में कार्तिक सिंह ने संगीत दिया है। अखिलेश आनंद ने गाना गाया है। अखिलेश आनंद और मृणाल चौरसिया ने अभिनय किया है। विपिन अग्निहोत्री बताते है कि अगर म्यूजिक वीडियो को लोगों का प्यार मिला तो वह आगे भी इस तरह के प्रयोग करते रहेंगे।


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