किसान संगठनों व विपक्ष ने खरीफ फसलों के घोषित समर्थन मूल्य को बताया किसानों के साथ धोखा
भारतीय किसान यूनियन प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि वैश्विक महामारी के दौर में सच्चे कोरोना योद्धा की तरह पसीना बहाने वाले किसानों के साथ भद्दा मजाक किया गया है।
लखनऊ [राज्य ब्यूरो]। केंद्र सरकार द्वारा सोमवार को घोषित खरीफ सीजन की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य को किसानों से धोखा करार देते हुए विभिन्न किसान संगठनों और विपक्षी दलों ने गत पांच वर्ष में सबसे कम बढ़ोतरी बताया है। कृषि उत्पादों के समर्थन मूल्य निर्धारण का एक फार्मूला निश्चित करने की मांग भी की।
भारतीय किसान यूनियन प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि वैश्विक महामारी के दौर में सच्चे कोरोना योद्धा की तरह पसीना बहाने वाले किसानों के साथ भद्दा मजाक किया गया है। कृषि विश्वविद्यालयों की फसल लागत के बराबर भी समर्थन मूल्य घोषित नहीं किया है। उन्होंने कहा कि धान का समर्थन मूल्य वर्ष 2016-17 में 4.3 प्रतिशत, 2017-18 में 5.4 प्रतिशत, 2018-19 में 12.9 प्रतिशत, 2019-20 में 3.71 प्रतिशत बढाया गया था। वर्ष 2020-21 में गत पांच वर्षों की सबसे कम 2.92 प्रतिशत वृद्धि की गयी है। इससे किसान को प्रत्येक क्विंटल पर 715 रुपये का नुकसान है। इसी तरह ज्वारा, बाजरा, अरहर, मूंग व चना, सूरजमुखी में भी नुकसान है।
राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष वीएम सिंह का कहना है कि सरकार ने किसानों की राय जाने बगैर ही एक तरफा समर्थन मूल्य निर्धारित कर दिए। सरकार को मूल्य वृद्धि का एक फार्मूला निश्चित करना चाहिए ताकि मेहनत करने वाला किसान खुद का ठगा महसूस न करें।
भारतीय किसान आंदोलन के संयोजक कुलदीप कुमार ने आरोप लगाया कि सरकार किसानों के बजाए पूंजीपतियों के हितों का अधिक ध्यान रखती है। राष्ट्रीय लोकदल प्रवक्ता अनिल दुबे ने आरोप लगाया कि किसानों की आय को दोगुना करने का दावा करने वाली भाजपा किसानों को तबाह करने में लगी है। भारत की कम्युनिस्ट पार्टी माकर्सवादी के राज्य सचिव हीरालाल यादव ने कहा कि धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य कम से कम 2583 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए था जबकि सरकार ने 1868 रुपये घोषित किया है। समाजवादी प्रगतिशील पार्टी लोहिया के अध्यक्ष शिवपाल यादव ने भी न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषणा का छलावा बताया है।