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Famous Temple of Sultanpur: त्रेतायुग में भगवान राम के आगमन से चर्चित हुआ धोपाप, बहुत रोचक है इसका इत‍िहास

Famous Temple of Sultanpur सुलतानपुर तहसील मुख्यालय से करीब आठ किलोमीटर दूर यह स्थल प्राचीन काल में सांस्कृतिक विरासत का केंद्र रहा है। गंगा दशहरा पर्व पर यहां एक लाख से ज्यादा श्रद्धालु पहुंचते हैं। कहते हैं क‍ि यहीं स्नान करके प्रभु राम ने ब्रह्म दोष से मुक्ति पाई थी।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Sat, 25 Jun 2022 06:00 AM (IST)Updated: Sat, 25 Jun 2022 12:06 PM (IST)
Famous Temple of Sultanpur: त्रेतायुग में भगवान राम के आगमन से चर्चित हुआ धोपाप, बहुत रोचक है इसका इत‍िहास
Dhopap Temple in Sultanpur: धोपाप: जहां सिर्फ स्नान से ही मिलती है पापों से मुक्ति।

सुलतानपुर, [विवेक बरनवाल]। Famous Temple of Sultanpur: जिले के पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व वाला तीर्थ स्थल धोपाप त्रेता युग में भगवान श्रीराम के आगमन प्रसंग से जुड़ा होने के कारण चर्चित है। रावण वध के उपरांत ऋषियों की सलाह पर प्रभु राम ने आदि गंगा गोमती में डुबकी लगाकर पाप से मुक्ति पाई थी, तभी से इस स्थान का नाम धोपाप पड़ गया। प्रत्येक वर्ष गंगा दशहरा पर्व पर एक लाख से ज्यादा श्रद्धालु सिर्फ स्नान के जरिए पापों से मुक्ति की चाह में यहां स्नान, दर्शन, पूजन को आते हैं।

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ऐसा कहा जाता है त्रेता युग में लंका पति रावण के वध के उपरांत मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम को ब्रह्म हत्या के पाप का दोषी माना गया था। उनके कुल गुरु ने अन्य ऋषियों की मदद ली थी। काफी मंथन के बाद ऋषियों की सलाह पर एक पत्ते पर काला कौवा नदी में तैराया गया था। मां गोमती के इस स्थान पर पहुंचकर वह कौवा सफेद हो गया था। लिहाजा, इस स्थान को स्नान के लिए उपयुक्त माना गया।

यहीं स्नान करके प्रभु ने ब्रह्म दोष से मुक्ति पाई थी। जिस घाट पर श्री राम ने स्नान किया था, उसे रामघाट के नाम से जाना जाता है। प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि (गंगा दशहरा) को आसपास ही नहीं बल्कि प्रदेश के दूरदराज के जिलों से श्रद्धालु स्नान करने पहुंचते हैं।

सांस्कृतिक विरासत का केंद्र रहा है धोपाप

तहसील मुख्यालय से करीब आठ किलोमीटर दूर यह स्थल प्राचीन काल में सांस्कृतिक विरासत का केंद्र रहा है। गोमती नदी के किनारे टीले पर मौजूद श्री राम जानकी मंदिर इसका उदाहरण है। प्राचीन कालीन इस मंदिर के बारे में कहीं उल्लेख नहीं किया गया है। फिर भी बताते हैं कि करीब 300 साल पहले ढेमा की रानी स्वरूप कुंवरि ने श्रीराम-जानकी मंदिर का निर्माण कराया था।

यह भी अनुमान है इस स्थान पर प्राचीन मंदिर था। भूतल से लगभग एक सौ फीट ऊंचे टीले पर मंदिर अत्यंत मनोहारी व प्राकृतिक संपदा से भरपूर स्थल पर स्थित है। मंदिर में भगवान राम - माता जानकी - लक्ष्मण - भरत - शत्रुघ्न का भरा - पूरा दरबार मौजूद है। गजेटियर के मुताबिक इसके अलावा मंदिर में राधा-कृष्ण की मूर्ति स्थापित की गई है। गर्भगृह के दरवाजे के दोनों तरफ हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित है।

इसके अलावा मंदिर के चारों दिशाओं में बनी छोटी कोठरियों में भी अनेक देवी- देवताओं के विग्रह स्थापित किए गए हैं। उत्तर- पूर्व कोने पर बने कक्ष में शिव दरबार है । दुर्लभ पत्थर के शिवलिंग के अलावा गणेश की प्रतिमा स्थापित है। जबकि, दक्षिण पश्चिम कोने पर मां दुर्गा तथा चतुर्भुजी विष्णु जी की मूर्तियां स्थापित हैं। दक्षिण - पूर्व के कोने पर गणेश व नंदी पर सवार शिव पार्वती की प्रतिमा है। शिव का एक हाथ नंदी के सिर पर है, उसमें माला प्रदर्शित हो रही है।

वास्तुकला से सुसज्जित है मंदिर प्रांगण : प्रचंड धूप व गर्मी में भी इस मंदिर के भीतर मौसम का प्रभाव काफी कम रहता है। हवा के आवागमन के लिए बनी खिड़कियां भी काफी राहत पहुंचाती हैं। इसके अलावा मंदिर के भीतर - बाहर हुए प्लास्टर सरीखे लेप अभी भी काफी मजबूत दशा में हैं। मंदिर के शिखर पर पहुंचने के लिए भी मजबूत जतन किए गए हैं।


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