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हर घर कुछ कहता है: राजधानी के कुछ मशहूर घरों में दिखता है अतीत का अक्स

लखनऊ के पुराने और एतिहासिक घरों से रूबरू कराते हुए दैनिक जागरण का विशेष संस्करण हर घर कुछ कहता है।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Fri, 15 Nov 2019 12:12 PM (IST)Updated: Fri, 15 Nov 2019 12:12 PM (IST)
हर घर कुछ कहता है: राजधानी के कुछ मशहूर घरों में दिखता है अतीत का अक्स

शहर को जानने के..

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राजा रानी, नवाब और मुगलों की कहानी कुछ पुरानी जरूर हो गई, पर इतनी भी नहीं कि सिर्फ किस्सों में दफन हो जाए। अवध के ताल्लुकेदारों, रजवाड़ों और रॉयल फैमिली की पुरानी यादें यहां आज भी जिंदा हैं। पुराने दौर की रॉयल फैमिली के रहन-सहन, संस्कृति और एंटीक सामानों के साथ राजधानी में कई ऐसी इमारतें हैं, जिसमें अवध की शान-ओ-शौकत, नवाबी नफासत, कला और संस्कृति के साथ ही क्रांतिकारियों की कुर्बानियों की दास्तां दिखती है। जुनैद अहमद की रिपोर्ट..

नवाबी शान-ओ-शौकत बयां करता महमूदाबाद हाउस

कैसरबाग स्थित महमूदाबाद हाउस में आज भी नवाबी शान-ओ-शौकत झलकती है। यहां रह रहे सैयद अली बताते हैं कि अंग्रेजी हुकूमत ने यह रियासत नवाबों को दी थी। कैसरबाग का पूरा इलाका नवाबों की फैमिली के लिए ही था। ऊंचे और बड़े गुंबदनुमा कमरे नवाबी दौर की याद ताजा कराते हैं। कमरों में पुराने जमाने का फर्नीचर आने वाले लोगों को काफी आकर्षित करता है। इस साल महमूदाबाद हाउस में सदी के महानायक अमिताभ बच्चन ने फिल्म गुलाबो-सिताबो की शूटिंग की। इस फिल्म की शूटिंग के लिए करीब 40 दिन तक अमिताभ बच्चन, आयुष्मान खुराना समेत कई सितारे हाउस के अंदर शूटिंग करते रहे।

अवध का इतिहास जानने के लिए पंचवटी आते हैं लोग

वरिष्ठ इतिहासकार योगेश प्रवीन का गौसनगर स्थित घर पंचवटी अपने आप में एक इतिहास है। करीब सवा सौ वर्ष पुराने इस मकान में योगेश प्रवीन की कई पीढ़ियां रह चुकी हैं। देश-विदेश के किसी भी इंसान को अगर अवध के बारे में जानना होता है, तो वह पंचवटी ही आता है। योगेश प्रवीन ने बताया कि हमारी कई पीढ़ियां यहां रह चुकी हैं। हमारे दादा बाबू शीतला प्रसाद के समय से ही यहां विद्वानों का जमावड़ा लगा रहता था। करीब 60 साल पहले घर का बाहरी हिस्सा रेनोवेट कराया गया। घर के अंदर के नीचे और ऊपर वाले दो कमरों में साहित्य, इतिहास के किताबों से लेकर एंटीक वस्तुओं का शानदार कलेक्शन है। इस घर में साहित्य के पुरोधा अमृतलाल नागर से लेकर कई फिल्म सितारे जैसे शशि कपूर, शबाना आजमी, फारूख शेख, श्याम बेनेगल आदि विभूतियां आ चुकी हैं। इस इमारत को संरक्षित करने की जरूरत है। 

विरासत संजो रही कालका बदादीन की ड्योढ़ी

कालका बिन्दादीन ड्योढ़ी शहर में स्थित पंडित बिरजू महाराज की पुश्तैनी हवेली है। जिसे अब संग्रहालय का रूप दे दिया गया है। गुईन रोड पर स्थित कथक का तीर्थ कही जाने वाली कालका ¨बदादीन की ड्योढ़ी में पं. कालका महाराज, पंडित बिन्दादीन महाराज, पंडित अच्छन महाराज, पंडित लच्छू महाराज, पंडित शंभू महाराज रहते थे। पं. बिरजू महाराज के पूर्वज, जिन्होंने लखनऊ घराने की शुरुआत कर इसे समृद्ध किया है। उनके वस्त्र जैसे अचकन, शाल, टोपी, कमीज, शेरवानी, साड़ी, पायजामा, खड़ाऊ, छड़ी, प्रयोग में लाए गए बर्तन, मंदिर के पुराने विग्रह, रामायण की प्रति, फोटोग्राफ, पुराने वाद्य यंत्रों को प्रदर्शित किया किया गया है।

 

लंदन डेली बैंक था हबीबउल्लाह स्टेट

अंग्रेजों के समय में लंदन डेली बैंक को वर्ष 1905 में शेख मोहम्मद हबीबुल्लाह ने खरीदा था। लगभग 3.5 एकड़ का एरिया हजरतगंज जैसे सबसे महंगे इलाके में है। उस समय वहां पर सिर्फ एक इमारत हुआ करती थी, जो मौजूदा में करीब 250 वर्ष पुरानी हो गई है। वर्ष 1910 में शेख मोहम्मद ने वहीं पर एक और इमारत बनवाई। पुरानी इमारत में किचन, डायनिंग और गेस्ट रूम के लिए तैयार किया गया वहीं नई इमारत को रहने के लिए। मौजूदा समय में अमर हबीबुल्लाह उनकी बीवी ज्योत्सना हबीबुल्लाह अपने बच्चों के साथ रहती हैं।

यहां होती थीं जंग-ए-आजादी की बातें

स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के साथ रहे चुके स्वतंत्रता सेनानी डॉ. बैजनाथ सिंह का आवास भी महानगर में है। राजधानी के पॉश इलाके में करीब 14 हजार वर्ग फीट के आवास में वह सभी प्राकृतिक संसाधन उपलब्ध हैं, जो पहले के जमाने में हुआ करता था। आम के पेड़ों की हरियाली के साथ पॉम के पेड़ उनके आवास की पहचान बन गए हैं। डॉ. बैजनाथ के बेटे डॉ.राजेंद्र प्रताप ने बताया कि पिताजी की उम्र करीब 20 साल थी। उस समय जंग-ए-आजादी की बातें चारों और आग की तरह फैली रहती थीं। जौनपुर के मदहरा गांव का रहने वाले थे और वह अक्सर पढ़ाई के सिलसिले में वाराणसी जाया करते थे। मेरी मां के कहने पर उन्होंने 1972 में महानगर में आवास बनवाया। आधुनिक संसाधनों के बजाय प्राकृतिक संसाधनों में विश्वास रखने वाले पिता जी के कदमों पर हम सभी लोग चल रहे हैं। आवास के चारों और हरियाली के लिए जगह छोड़ रखी है। पिता जी कहते हैं कि जीवन रहेगा तभी तो जिंदगी चलेगी। हरियाली के साथ जीवन जीने का मजा ही कुछ और है। घर के फर्नीचर भी अभी पुराने शीशम के मौजूद हैं जो चार दशक से वैसे ही हैं।

 

क्रांतिकारियों का लगता था जमावड़ा

कैसरबाग चौराहे से लाटूशरोड आने वाली सड़क पर मेहंदी बिल्डिंग में पहले कम्युनिस्ट पार्टी का दफ्तर हुआ करता था। वर्ष 1049 में स्वतंत्रता सेनानी रामकृष्ण खत्री इस घर में आए। रामकृष्ण खत्री के बेटे उदय खत्री ने बताया कि वर्ष करीब 1930 में यह इमारत बनी थी। यहां पर स्वतंत्रता सेनानियों, क्रांतिकारियों का जमावड़ा लगा रहता था। आजादी के बाद भी स्वतंत्रता सेनानी इस इमारत में आकर बैठक करते थे। यहां पर गो¨वद चरण कौर, पंडित परमानंद, बटुकेश्वर दत्त, दुर्गा भाभी, सचिन नाथ बक्शी के साथ भगत सिंह के परिजन भी आते थे। उदय खत्री ने क्रांतिकारियों की फोटो और उस जमाने की कई चीजों से इसे सजाकर रखा है।

कैसरबाग पैलेस का हिस्सा है कोटवारा हाउस

हुनर, तहजीब और पुराने दौर के कई दिलचस्प किस्से और कहानियों को सहेजने वाला कैसरबाग स्थित कोटवारा हाउस नवाबी आन-बान-शान के अक्स को सहेज कर रखे हुए है। फिल्मकार मुजफ्फर अली और उनकी डिजाइनर बेगम मीरा अली का यह हाउस बाहर से खंडहर सरीखा लगता है, लेकिन इस इमारत का इंटीरियर काफी प्रभावित करने वाला है। कोटवारा हाउस की काले रंग से रंगी हुई सीढ़ियां। पहले मंजिल के पहुंचने पर आरी वर्क से बनी हुई चिलमन को उठाते ही मध्यम रोशनी में नहाया हुआ वो कमरा नजर आता है, जहां हुनर, तहजीब, मौसिकी के रंग बसे हैं। पुराने दौर के छोटे प्रोजेक्टर हों या फिर बटन वाला टेलीफोन, सब कुछ सलीके से सजा हुआ है। मुजफ्फर अली की बनाई हुई कैलीग्राफी और कई पुरानी तस्वीरों से दीवारों की रौनक दिखेगी। इस कलेक्शन में हाथ से लिखे हुए नक्श, राजा सैयद साजिद हुसैन जब पांच साल के थे, उस वक्त उनकी कलेक्ट की हुई पेपर कटिंग यहां मौजूद हैं। साथ ही मौसिकी की महफिलों की याद दिलाता हुआ साज-ओ-सामान भी देखने को मिलेगा। मुजफ्फर अली ने बताया कि अंग्रेजों के समय में क्राउन ग्रांट एक्ट के तहत मेरे दादा राजा रजा हुसैन को यह हाउस दिया गया था। जिसके बाद से हमारे पिता और मैं इसे संभालता आ रहा हूं। यह पूरा इलाका हैरिटेज जोन है, यहां पर किसी प्रकार का कमर्शियल इस्तमाल नहीं किया जा सकता।


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