कर्बला की शहादत सुन अजादारों की आंखें हुई नम Lucknow News
पुराने लखनऊ में विभिन्न स्थानों पर शिया मौलानाओं ने मजलिस को खिताब किया।
By Divyansh RastogiEdited By: Published: Tue, 03 Sep 2019 08:49 PM (IST)Updated: Tue, 03 Sep 2019 08:49 PM (IST)
लखनऊ, जेएनएन। मुहर्रम के बढऩे के साथ-साथ कर्बला के शहीदों का गम मनाने वालों का हुजूम बढ़ता जा रहा है। मंगलवार को इमाम के चाहने वालों ने मजलिस में शामिल होकर शहीदों का गम मनाया। तीन मुहर्रम को कर्बला की शहादत सुन अजादारों की आंखें नम हो उठी।
चौक स्थित इमामबाड़ा गुफरानमआब में मौलाना कल्बे जवाद ने तीसरी मजलिस को खिताब करते हुए कहा कि हर साल अजादारी को रोकने के लिए फतवे आते हैं। यह काम चौदह सौ साल से हो रहा है। लेकिन यह अजादारी न पहले रूकी न आज रूकी है और न कयामत तक रुकेगी। क्योंकि इस जिक्र के जाकिर हम नहीं बल्कि प्यारे रसूल हैं। अजादारी का मिजाज यह है कि इसे जितना दबाया जाएगा यह उतना ही उभरेगी और फैलेगी। जमाना सदियों से इमाम की अजादारी को मिटाने की कोशिक करता आ रहा है लेकिन इसे खत्म करने की कोशिक करने वाले खत्म हो गए, लेकिन इमाम की अजादरी बढ़ती ही जा रही है।
इमामबाड़ा सैयद तकी साहब में तीसरी मजलिस को खिताब करते हुए मौलाना सैयद सैफ अब्बास साहब ने कहा कि आज उम्मत में जो इख्तिलाफ है उसकी वजह यह है कि मुसलमानों ने गदीर वाला पुरा इस्लाम नही लिया। मुसलमानों ने अगर गदीर वाला इस्लाम लिया होता तो कभी गुमराह ना होते। मौलाना ने जनाबे हुर का यजीदी लश्कर को छोड़ कर इमामे हुसैन की तरफ आना और फिर अपनी जान को इमाम पर कुरबान करने का दिलसोज हालात बयान किया। टिकैतराय तलाब स्थित रौजा जैनबया में मौलाना तकी रजा ने बताया कि इस्लाम में औरत का बुलंद मकाम है, उसकी इज्जत और एहतराम का हुक्म दिया गया है। जिसकी जिंदा मिसाल हजरत मोहम्मद साहब का अपनी बेटी हजरत फातिमा का एहतराम करना बताता है कि औरत लाइक-ए-ताजीम है। मगर कर्बला के मैदान में उनकी नवासी शहजादी हजरत जैनब पर जुल्म और सितम किए गए। इमामबाड़ा आगाबाकर में मौलाना मीसम जैदी ने खिताब करते हुए बताया कि अलैहिस्सलाम ने फरमाया है कि अपने बीमारों का इलाज सदके से करों, जितना ज्यादा सदका निकालोगे तो डॉक्टर को फीस कम दोगे। अगर तुम रास्ता चल रहे हो और कोई पत्थर नजर आये और अगर इसको इस नियत से किनारे कर दो की किसी को चोट न लग जाए तो यह भी सदका है। यह भी तुम्हे बीमारियों से दूर रखेगा।
हजरत उस्मान से सीखें सब्र : कारी हारून
हजरत उस्मान रजि. बहुत सब्र वाले थे। मुसीबतों को निहायत सब्र व सुकून के साथ बर्दाश्त करते थे। शहादत के मौके पर चालीस दिन तक जिस सूझ-बूझ, जब्त का इजहार किया। वह अपने आप में एक उदाहरण है। यह बातें दारुल उलूम के अध्यापक कारी मुहम्मद हारून निजामी ने कहीं। दारुल उलूम निजामिया फरंगी के हाल में दस दिवसीय जलसाहाय 'शुहादाये दीने हक व इस्लाहे माआशरह' के तीसरे दिन हजतम उस्मान गनी की जिदंगी पर रोशनी डाली गई। मंगलवार को इस्लामिक सेंटर ऑफ इंडिया की ओर से आयोजित जलसे में बतौर वक्ता बोल रहे थे। उन्होंने कहाकि खलीफा हजरत उस्मान रजि. के अंदर शर्म व हया बहुत थी। खुद हुजूर नबी करीम इसका लिहाज रखते थे। जलसे का आगाज दारूल उलूम फरंगी महल के अध्यापक मौलाना अब्दुल मुगीस की तिलावत कलाम पाक से हुआ।
जलसे का संचालन मौलाना मुहम्मद सुफियान निजामी ने किया। इसके अलावा दरगाह दादा मियां में जलसे को खिताब करते हुए हजरत मुफ्ती अब्दुल रफी ने फरमाया कि बेशक जो लोग ईमान लाए और जिन्होनें अल्लाह के लिए अपने घर को छोड़ा यही लोग अल्लाह की रहमत के उम्मीदवार हैं। उन्होंने हजरत इमाम हुसैन रजि. की शहादत वो अजीम शहादत है, जिसकी गवाही हमारे नबी करीम की हदीस खुद पेश कर रही है। जलसे की सदारत दरगाह दादा मियां के सज्जादादा नशीन हजरत सूफी मोहम्मद सबाहत हसन शाह ने की। दरगाह शाहमीना शाह में भी मुहर्रम की फजीलतों के बारे में दर्स दिया गया।
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