सावधान! इमोशनल स्ट्रेस से हो रहा अस्थमा अटैक, Expert की इन बातों का रखें ध्यान Lucknow News
सांस रोगी खुशियों के त्योहार में भावनाओं पर भी रखें काबू। पटाखे जलाते समय भी खुद का भी रखें खास ध्यान।
लखनऊ, जेएनएन। बदलता मौसम, बढ़ता वायु प्रदूषण, खाद्य पदार्थों में मिलावट, वातावरण में पराग कणों की अधिकता सांस रोगियों के लिए घातक है। साथ ही अस्थमा रोगियों के लिए 'इमोशनल स्ट्रेस' अटैक का कारण बन सकता है। लिहाजा, खुशियों के त्योहार में मरीज भावनाओं को काबू में रखें। परिवारजन ऐसे मरीजों की एक्स्ट्रा केयर करें। उन्हें किसी बात पर आहत न होने दें। कारण, जरा भी लापरवाही मरीज के लिए जानलेवा हो सकती है। हैलो डॉक्टर कार्यक्रम में गुरुवार को केजीएमयू के पल्मोनरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन के विभागाध्यक्ष डॉ. वेद प्रकाश मौजूद रहे। उन्होंने पाठकों को बीमारी से बचाव के उपाय बताए।
प्रश्न : 50 वर्ष की मां हैं। घर में किसी को डांटने-फटकारने पर उनकी सांस फूलने लगती है। इसके अलावा जरा काम करने पर भी तेज सांस चलने लगती हैं। (उपेन्द्र, गोंडा)
उत्तर : डांटने, लड़ाई-झगड़े या कोई अप्रत्याशित घटना होने पर सांस फूलना इमोशनल स्ट्रेस का कारक है। मरीज के सामने घर का माहौल अच्छा रखें। बार-बार यह परिस्थिति बनने पर उसे अस्थमा अटैक हो सकता है। इसके अलावा सांस फूलने की समस्या है तो प्लमोनरी फंक्शन टेस्ट कराएं।
प्रश्न : 70 वर्ष का हो गया हूं। मौसम बदलने पर खांसी बढ़ जाती है, क्या करें। (केदारनाथ, फैजाबाद)
उत्तर : आपको बार-बार दिक्कत हो रही है। सांस लेने पर सीटी जैसी आवाज निकल रही है तो सीओपीडी का खतरा है। फेफड़े संबंधी जांच होंगी। धूल-धुआं से बचें।
प्रश्न : सीने में दो-तीन माह से जलन हो रही है। क्या फेफड़े की समस्या हो सकती है। (विनय, गोंडा)
उत्तर : आपको सीने में जलन के साथ खांसी व सांस फूलने की तकलीफ नहीं है। ऐसे में फेफड़े की बीमारी नहीं है। एसिडिटी व जीइआरडी की समस्या हो सकती है। गैस्ट्रो के डॉक्टर को दिखा लें।
प्रश्न : दौड़भाग करने पर सांस फूलने लगती है। तीन-चार माह से ऐसा हो रहा है, क्या करें। (तसलीम, लखीमपुर खीरी)
उत्तर : थोड़ी भी मेहनत से सांस फूल रही। बार-बार सर्दी-जुकाम हो रहा है। अस्थमा का उभार हो सकता है। जांच कराकर इलाज शुरू कराएं। एलर्जी वाले तत्वों से बचें।
प्रश्न : 73 वर्ष का हूं। सीओपीडी की बीमारी है। दवा लेने पर स्थाई राहत नहीं मिल रही। (पीएन विश्कर्मा, गोंडा)
उत्तर : यह क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव डिजीज है। यह पूरी तरह ठीक नहीं होती। मगर, नियमित इलाज से बीमारी पर कंट्रोल करना संभव है। इसके लिए दवाओं को ब्रेक न करें।
प्रश्न : पत्नी को एमडीआर टीबी थी। यह ठीक हो गईं। मगर, सांस फूलने की समस्या बनी हुई है। (संजीव, इंदिरा नगर)
उत्तर : एमडीआर टीबी में फेफड़े के कुछ हिस्से में फाइब्रोसिस हो जाता है। ऐसे में ठीक होने के बाद सांस संबंधी समस्या रहती है। इसके लिए डीप ब्रीथिंग एक्सरसाइज करें। धूल-धुएं से बचाव करें। सेकेंड्री इंफेक्शन से बचाव के लिए वैक्सीनेशन करवाएं।
प्रश्न : बार-बार छीकें आती हैं। सीने में जकडऩ व सांस फूलने लगती है। क्या करें। (संगीता, फैजाबाद)
उत्तर : एलर्जी की समस्या हो सकती है। गरारा करें, भाप लें। साथ ही धूल-धुआं से बचें। समस्या अधिक हो रही है तो एंटीएलर्जी टैबलेट लें।
प्रश्न : सोने के वक्त सांस लेने में तकलीफ होती है। साथ ही कई बार खांसी तेज हो जाती है। (अशोक, गोंडा)
उत्तर : यह एलर्जी व अस्थमा का शुरुआती लक्षण है। ऐसे में एक्स-रे, स्पायरोमेट्री जांच कराएं। एलर्जी वाले तत्वों को पहचानें और उनसे बचाव करें।
प्रश्न : 78 वर्ष का हूं। गत वर्ष अस्थमा का अटैक पड़ा। इस बार बचाव के लिए क्या करें। (वीरेंद्र सिंह, गोमती नगर)
उत्तर : इस उम्र में आप सीओपीडी की गिरफ्त में हो सकते हैं। नियमित इनहेलर लें। दवाओं को अपने मन से ब्रेक न करें। भाप लें और धूल-धुआं से बचें। दीपावली के दरम्यान अधिक सतर्क रहें।
प्रश्न : 78 वर्ष का हूं। सांस की बीमारी है। दिक्कत बढ़ रही है। (जेपी शुक्ला, जानकीपुरम)
उत्तर : आपको 30 वर्ष से समस्या है। यह सीओपीडी हो सकती है। बीमारी कंट्रोल में नहीं है तो ब्लड व फेफड़े संबंधी जांच दोबारा कराएं। दवाओं में बदलाव करना होगा।
प्रश्न : दो माह से बुखार है। खांसी के साथ ब्लड आ रहा है। क्या हो सकता है। (प्रेम कुमार, अयोध्या)
उत्तर : यह टीबी का लक्षण है। बलगम की तुंरत जांच कराएं। चेस्ट विशेषज्ञ को दिखाएं। इसका इलाज मुफ्त उपलब्ध है।
प्रश्न : पत्नी को अस्थमा है। मौसम बदलने पर दिक्कत बढ़ रही है। (नौशाद, नक्खास)
उत्तर : एलर्जी वाले तत्वों से बचें। इनहेलर मत छोड़ें। समय-समय पर डॉक्टर को दिखाएं।
प्रश्न : 70 वर्ष का हूं। सांस का रोगी हूं। होम्योपैथ की दवा ले रहा हूं, राहत नहीं है। (रामप्रसाद, हरदोई)
उत्तर : बीड़ी तुंरत छोड़ दें। खेतों में काम करते वक्त धूल से बचाव करें। जांच कराएं आपको सीओपीडी हो सकती है। नियमित इलाज कराएं।
प्रश्न : 57 वर्ष की मां हैं। सांस रोगी हैं। बार-बार ऑक्सीजन लेवल गड़बड़ा जाता है। (सुमित, मिश्रिख)
उत्तर : मौसम बदला है। डॉक्टर को दिखा लें। इंफेक्शन से बचाव के लिए नीमोकोकल व इंफ्लूएंजा की वैक्सीन लगवाएं। इनहेलर व दवाओं को नियमित लें।
क्या है इमोशनल स्ट्रेस ?
डॉ. वेद प्रकाश के मुताबिक यह भावुक लोग होते हैं। किसी को डांटने, भरोसा टूटने, अच्छा व्यवहार न होने पर अचानक स्ट्रेस का शिकार हो जाते हैं। इमोशनल स्टे्रस में बीपी लो, हार्ट बीट का बढऩा (पैल्पिटेशन), बेहोशी आना व अस्थमा अटैक का खतरा रहता है। ऐसे में अस्थमा रोगियों के लिए घर का परिवेश बेहतर रखना होता है।
सांस रोगी पर दिवाली इफेक्ट
पटाखों से वायुमंडल में लीथियम, आर्सेनिक, लेड, बेरियम साल्ट, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइडड, कार्बन डाई ऑक्साइड, कार्बन मोनो ऑक्साइड समेत हैवी मेटल की मात्रा बढ़ जाती है। इससे सांस रोगियों की मुश्किलें बढ़ जाती हैं। वहीं खाद्य पदार्थों में खतरनाक रंगों की मिलावट से एलर्जी, अस्थमा रोगियों के लिए घातक है। इसे फूड एडल्ट्रेशन कहते हैं।
अस्थमा एक्शन प्लान से टालें खतरा
अस्थमा रोगी को अटैक से बचाने के लिए परिवारजन उसके एक्शन प्लान का ध्यान रखें। मौसम बदलने पर रोगी को डॉक्टर को दिखाएं, मेडिकल इमरजेंसी नंबर रखें, नमक डाल कर गुनगुने पानी से गरारा करें, सामान्य स्थिति में प्रिवेंटर इनहेलर लें, स्थिति गड़बड़ाने पर रिलीवर इनहेलर की डोज दें। दवा का प्रभाव न होने पर एंबुलेंस से मरीज को अस्पताल शिफ्ट कराएं।
धूपबत्ती के बजाए घी के दीपक जलाएं
आउटडोर ही नहीं इन्डोर पॉल्यूशन (प्रदूषण) भी सेहत के लिए चुनौती बढ़ा रहा है। घर में धूल, धुआं, परागकण अस्थमा का रोगी बना रहा है। स्थित यह है कि एक धूपबत्ती से जहां 50 सिगरेट का धुआं निकल रहा है। वहीं घर में एक क्वॉयल जलाने से सौ सिगरेट के बराबर धुआं शरीर में जा रहा है। घरेलू प्रदूषण व्यक्ति के लिए मुसीबत बन गया है। घर में धूपबत्ती, अगरबत्ती के बजाए घी का छोटा दीपक जलाएं। इस दरम्यान खिड़की खोल दें। वहीं क्वॉयल का इस्तेमान न करें। पर्दे, दरी, सोफा पर धूल न जमने दें। डस्टबिन में अधिक दिन कूड़ा रखने से रेडॉन गैस निकलती है। ऐसे में कूड़े का रोजना निस्तारण करें।
30 फीसद बढ़ी सांस की बीमारी
डॉ. वेद प्रकाश के मुताबिक सांस की बीमारी देश में बढ़ रही है। इसका प्रमुख कारण प्रदूषण है। इंडिया चेस्ट रिसर्च फाउंडेशन का गत वर्ष शोध प्रकाशित हुआ। इसमें देश में 30 फीसद सांस संबंधी बीमारी व उससे मृत्यु दर में इजाफा बताया गया। यूपी देश में प्रथम नंबर पर है। सांस की बीमारियों में प्रमुख अस्थमा व सीओपीडी है।
दूर करें भ्रम
- इनहेलर लेने में संकोच न करें, यह फस्र्ट लाइन थेरेपी है
- मम्मी-पापा को अस्थमा है तो जरूरी नहीं कि उनके सभी बच्चों को हो जाए
- अस्थमा में उसी चीज का परहेज करें, जिससे एलर्जी हो। खानपान को लेकर अधिक घबराएं नहीं
सांस रोग व एलर्जी के लक्षण
- सांस लेने में दिक्कत होना
- जल्दी-जल्दी सांस लेना
- लगातार छींके आना
- थकान बनी रहना
- गले में खिचखिच, नाक में खुजली होना
- गले से घरघराहट की आवाज, सीटी जैसा बजना
- सीने में दर्द व जकडऩ होना
- चलने-फिरने में सांस-फूलना,
- घबराहट व तेज सांस चलना
- सोते वक्त उलझन महसूस होना
- लगातार खांसी आना
बचाव के उपाय
- ठंड से बचाव के लिए कई लेयर में कपड़े पहने
- सांस रोगी बाहर निकलते वक्त मॉस्क व रूमाल बांध लें
- बाइक पर हेलमेट लगा लें, ताकि सांस लेते वक्त ठंडी हवा से कुछ हद तक बचाव हो सके
- पार्टियों में आइसक्रीम खाने से बचें
- धूल-धुआं से बचें
- स्मोकिंग बिल्कुल न करें
- स्मोकिंग कर रहे व्यक्ति के पास न खड़े हों
- रोगी घर में अगर बत्ती, धूपबत्ती का धुआं न करें
- तीक्ष्ण गंध वाले उत्पादों के प्रयोग से बचें
- कुत्ता, बिल्ली, तोता घर में न पालें
- घर की नियमित सफाई करें
- बिस्तर को प्रत्येक सप्ताह धूप में डालें
- रोगी के कमरे में नमी बिल्कुल न रहे
- सोने वाले कमरे में अधिक सामान न हो, वहीं वेंटीलेशन की व्यवस्था बेहतर हो
- घर में कोयले की अंगीठी जलाकर न तापें। हीटर का भी कम प्रयोग करें
- सुबह टहलने के समय में बदलाव करें, साथ ही पूरे बदन को ढककर ही बाहर जाएं
- हरी साग-सब्जी व मौसमी फलों का सेवन करें
- मसालेदार व तैलीय खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें
- पर्याप्त मात्रा में पानी का सेवन करें। संभव हो तो उसे गुनगुना कर लें
पटाखा जलाने में हर कोई रखें ध्यान
- पटाखा या अन्य आतिशबाजी खुले जगह में छोडऩा चाहिए।
- फुस्स हो चुके पटाखों को दोबारा न जलाएं
- पटाखा फुस्स होने पर उस पर पैर न पटकें, बल्कि उस पर पानी डाल दें
- बच्चों को पटाखे बड़ों के निगरानी में छुड़वाएं
- पटाखे छुड़ाते वक्त सूती कपड़े पहनें, कपड़े अधिक ढीले न हों
- पटाखे जेब में न रखें, बल्कि पटाखे की टोकरी भी छोडऩे वाले स्थान से दूर रखें
- धातु या शीशे के किसी भी चीज में पटाखा ने छुड़ाएं
- पटाखे के डिब्बे पर लिखे दिशा-निर्देशों का ध्यान रखें
- पटाखे छोड़ते वक्त ज्वलनशील वस्तुओं का ध्यान रखें
- पटाखा या राकेट छोड़ते वक्त उसके ऊपर से डिब्बा न रखें
- फुलझड़ी व रोशनी वाले पटाखे छोड़ते वक्त चेहरा व हाथ जलने से बचाएं
- फुस्स हो चुके अनार के ऊपर से न निकलें न ही उसके लुढ़काकर फेंके
- राकेट छोड़ते वक्त उसकी दिशा सीधे ऊपर की ओर हो
- पटाखा या अनार हाथ में पकड़कर न छुड़ाएं
- पटाखा को दूर से माचिस लगाएं
- पटाखा छोड़ते वक्त बाल्टी में पानी व बालू पास में रख लें
- जलने पर करें प्राथमिक उपचार
- जले हुए स्थान से तुरंत कपड़ा हटाएं
- जले हुए अंग पर साफ पानी डालें
- इसके बाद साफ कपड़े से पोछ दें
- एंटीसेप्टिक क्रीम का लेप लगा लें
- यदि 10 फीसद से अधिक शरीर जला हो या फिर बड़े-बेड़े फफोले या घाव बन गया हो तो ऐसी दशा में तुरंत नजदीकी अस्पताल पहुंचे
-ऐसी स्थिति में बगैर चिकित्सक बेवजह कोई दवा या इंजेक्शन न लें