संरक्षण के साए में ही धरोहरों का क्षरण, 1950 के बाद से जारी है ये मनमानी Lucknow News
प्रमुख सचिव संस्कृति विभाग ने प्रमुख सचिव नगर विकास को पत्र भी लिखा।
लखनऊ [अजय श्रीवास्तव]। धरोहरों को संवारने के नाम पर इनका नाश हो रहा है। स्मार्ट सिटी परियोजना में इन्हें शामिल करने के लिए हुई पड़ताल में यह सच सामने आया है। इस रिपोर्ट ने धरोहरों के संरक्षण के लिए हुए अनाप-शनाप खर्च पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। यह रिपोर्ट मिलने के बाद प्रमुख सचिव संस्कृति विभाग ने 31 जुलाई को प्रमुख सचिव नगर विकास को पत्र भी लिखा है।
स्मार्ट सिटी परियोजना में शहर की धरोहरों को शामिल करने की योजना बनी तो इनके संरक्षण का काम करने वाला इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चर हेरिटेज (इंटेक), दिल्ली इन्हें संवारने को आगे आया। इंटेक ने भी छतर मंजिल, कोठी दर्शन विलास, कोठी गुलिस्ताने इरम, कोठी रौशन-उद-दौला, छतर मंजिल और गोमती नदी के बीच पुरानी ठंडी सड़क का निर्माण और विकास कराने का कॉसेप्ट प्लान दिया। इसका परीक्षण कराने के लिए संस्कृति विभाग ने आइआइटी, बीएचयू, एएसआइ और एकेटीयू के विशेषज्ञों की मदद ली। इस टीम ने जांच करके विस्तृत रिपोर्ट दी। इसमें न सिर्फ इंटेक के कांसेप्ट प्लान में तमाम खामियां मिलीं, बल्कि 1950 के बाद से इनके संरक्षण के नाम पर इन्हें कमजोर किए जाने का भी राजफाश हुआ। यह रिपोर्ट संरक्षण का कार्य करने वाले सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़ी कर रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि धरोहरों को संवारने के नाम पर हुए कार्यों से अतिरिक्त लोड बढ़ा। इससे पहले से कमजोर भवनों के बेसमेंट व छत पर दरार पैदा हो रही हैं। चूने की जगह सीमेंट का इस्तेमाल धरोहर की मौलिकता नष्ट हो रही है। जंग लगे गर्डर में अतिरिक्त सीमेंट कंक्रीट का लेप लगाए जाने से भवनों पर खतरा बढ़ गया।
यहां भी हुई गड़बड़ी
छतर मंजिल, कोठी गुलिस्ताने इरम, कोठी दर्शन विलास, रौशन उद दौला कोठी को विभिन्न विभागों की ओर से उपयोग में लेने से अतिरिक्त निर्माण कार्य हुए। दरवाजे एवं खिड़कियों की मूल संरचना में बदलाव के साथ लाइम प्लास्टर की जगह सीमेंट का प्लास्टर किया गया। मानक विपरीत कार्यों से धरोहरों को नुकसान भी हुआ।
सुझावों की अनदेखी
इन समस्याओं को सुधारने के लिए भी इंटेक की तरफ से कोई सुझाव नहीं दिया गया है, जबकि एकेटीयू की तकनीकी टीम ने पहले आगणन में उक्त समस्याओं को दूर करने के सुझाव दिए थे। इंटेक ने अपने प्रस्ताव में आइआइटीआइ, बीएचयू, एएसआई और एकेटीयू की अनुशंसा की भी अनदेखी की थी। इन नामचीन तकनीकी संस्थाओं ने धरोहरों से अतिरिक्त लोड हटाने को कहा था।
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