पौधों को पुत्री बनाकर पर्यावरण संरक्षण में जुटे चंद्र भूषण तिवारी, जिसे पौधा देते उसे बना लेते हैं समधी
आचार्य चन्द्र भूषण तिवारी को प्रकृति से इस कदर प्रेम है कि सरकारी नौकरी तक छोड़ दी। वह अब तक करीब साढ़े नौ लाख पौधे लगा चुके हैं। जगह-जगह पौधरोपण के साथ ही लोगों को पौधे बांटकर उनकी देखभाल का संकल्प भी वे दिलाते हैं।
लखनऊ [शोभित श्रीवास्तव]। यह पौधा नहीं, मेरी पुत्री है। बड़े ही लाड़-प्यार में पली है। कोमल है, नाजुक कली है। जानवर देखते ही डर जाती है। गर्मी में इसे बहुत प्यास लगती है। दो साल पाल देंगे तो ये आपकी पीढ़ियां पालेगी। मेरी बेटी जिंदा रहती है तो फल, फूल और छाया देती है। कभी कोई शिकायत नहीं करती। मर जाने के बाद चौखट, पल्ला बनकर घर की रखवाली करती है। मेरी बेटी मरघट तक साथ देगी, इसे अपना लीजिए। अपने घर-आंगन में बसा लीजिए। मुझे अपना समधी बना लीजिए। कुछ इस तरह की भावनात्मक अपील पर्यावरण प्रेमी आचार्य चंद्र भूषण तिवारी जिन्हें पौधा देते हुए उनसे करते हैं। पौधों को पुत्री बनाकर वे पर्यावरण संरक्षण में जुटे हुए हैं।
उत्तर प्रदेश के देवरिया में जन्मे और लखनऊ को अपनी कर्मस्थली बनाने वाले आचार्य चन्द्र भूषण तिवारी का प्रकृति से प्रेम इस कदर बढ़ा उन्होंने केंद्रीय विद्यालय में शिक्षक की नौकरी छोड़ दी। चन्द्र भूषण बताते हैं कि 26 जनवरी 2006 को 11 लाख पौधे रोपने का संकल्प लिया था, अब तक करीब साढ़े नौ लाख पौधे लगा भी चुके हैं। जहां भी दम तोड़ते पौधे नजर आते हैं, उनकी सेवा में जुट जाता हूं। जगह-जगह पौधरोपण के साथ ही लोगों को पौधे बांटकर उनकी देखभाल का संकल्प भी वे दिलाते हैं।
आचार्य चन्द्र भूषण तिवारी बताते हैं कि फलदार पौधे इसलिए ज्यादा लगाते है ताकि बड़े होकर पौधे लोगों की भूख मिटाने के भी काम आएं। गरीब निराश्रितों की सहायता करना, झुग्गी झोपड़ी में रह रहे बच्चों को प्रकृति के प्रति शिक्षित करना मुझे सबसे अधिक भाता है। उन्होंने बताया कि पर्यावरण योग चालीसा, उपकार गीतमाला, प्रकृति रक्षा गीत जैसे साहित्यों को लिखकर लोगों को सजग व सफल बनाने का प्रयास कर रहा हूं। गरीब बच्चों को शिक्षित कर संस्कारी बनाने में उन्हें सर्वाधिक सुकून मिलता है।
पेड़ों के काटने से आहत चन्द्र भूषण ने हरी-हरा व्रत कथा पुस्तक लिखी है। इतना ही नहीं सत्यनारायण व्रत कथा की तरह वे घर-घर जाकर हरी-हरा व्रत कथा सुनाते हैं। इसके जरिए लोगों को पेड़ों की आध्यात्मिक महिमा से भी परिचित कराते हैं। उन्होंने बताया कि पेड़ों के अलग-अलग अंगों में देवताओं का वास होता है, इस मान्यता को भी सभी को समझाते हैं। पौधों की महिमा का बखान करने के लिए दर्जनों गीत भी लिखे हैं। बताया कि लघु पुस्तिकाओं के जरिए पर्यावरण गीतों का संग्रह प्रकाशित कर वितरण भी करते हैं।
आचार्य चंद्रभूषण को तत्कालीन राज्यपाल बीएल जोशी ने राजभवन बुलाकर न सिर्फ सम्मानित किया था, बल्कि अभियान के लिए आर्थिक सहयोग भी दिया था। इसके अलावा प्रदेश की दर्जनों प्रतिष्ठित संस्थाओं की ओर से उन्हें सम्मान से नवाजा जा चुका है। पर्यावरण के क्षेत्र में उनको अब तक दो दर्जन से अधिक सम्मान मिल चुके हैं।
बच्चों से अपील, बोतल का बचा पानी पौधों में डालें : चन्द्र भूषण तिवारी बच्चों से अपील करते हैं कि जब भी वे स्कूल से लौटे तो अपनी बोतल का बचा हुआ पानी इधर-उधर फेंकने के बजाय पौधों में डाल दें। इससे एक पौधे को जीवन मिल जाएगा। उन्होंने कहा कि सुबह जो लोग डेयरी में दूध लेने जाते हैं वे भी अपनी-अपनी दूध की बाल्टियों में पानी भरकर ले जाएं। जहां भी सूखे पौधे दिखें उसको सींच दें। उन्होंने कहा कि मेरी अपील ड्राइवरों से भी है वे भी अपनी बोतल का पानी एक पौधे में जरूर डाल दें।
उद्देश्य पवित्र हो तो आसान हो जाती है राह : चन्द्र भूषण कहते हैं कि उद्देश्य यदि पवित्र होता है तो राह आसान हो जाती है। शुरुआत में मुझे भी दिक्कतें आईं थी लेकिन बाद में समाज का भरपूर सहयोग मिला। कोरोना संक्रमण ने भी आमजनों का लगाव प्रकृति के प्रति बढ़ा दिया है। अब लोग अपने आप नर्सरी में जाकर पौधे खरीद कर अपने आस-पास लगाने लगे हैं।