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रात में उखड़ जाती हैं 'इमरजेंसी सेवा' की सांसें

राजधानी लखनऊ के अस्‍पतालों की अव्यवस्था के कारण मरीज प्राइवेट अस्पताल भागने को विवश हैं। वहीं इसके लिए जिम्‍मेदार लोगों के पास एक ही रटा रटाया जवाब है कि व्‍यवस्‍था सुधारी जाएगी।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 16 Oct 2018 08:30 AM (IST)Updated: Tue, 16 Oct 2018 08:30 AM (IST)
रात में उखड़ जाती हैं 'इमरजेंसी सेवा' की सांसें
रात में उखड़ जाती हैं 'इमरजेंसी सेवा' की सांसें

लखनऊ, (जागरण टीम ): राजधानी के अस्पतालों में इमरजेंसी सेवा की सांसें रात में उखडऩे लगती हैं। कहीं खून, अल्ट्रासाउंड व एक्सरे की जांच की व्यवस्था नहीं हैं, तो जहां है भी वहां गंभीर चोटिल मरीजों को घंटों इंतजार करना पड़ता है। यही नहीं, उन्हें डॉक्टर एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल में शिफ्ट कर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। फिर चाहे बात सिविल, बलरामपुर अस्पताल या फिर केजीएमयू की ही क्यों न हो। सभी जगह कमोबेश दर्द के बीच इलाज के लिए जद्दोजहद दिखी। केजीएमयू जैसे बड़े अस्पताल में व्यवस्थाओं का अंदाजा इसी बात से लगा सकते हैं कि मरीजों को इमरजेंसी तक ले जाने के लिए स्ट्रेचर तक नहीं मिली। इस बार ऑन द स्पॉट अभियान में रविवार रात दैनिक जागरण की टीम ने अस्पतालों में इलाज की व्यवस्थाओं का हाल जानने की कोशिश की तो हालात वास्तविकता से परे नजर आए।

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दिनभर स्ट्रेचर पर तड़पाया, रात में डॉक्टर नहीं हैं, बताकर भगाया

रविवार को दोपहर 12 बजे लोहिया अस्पताल से रेफर किए गए पडरौना निवासी 28 वर्षीय दिनेश कुमार शर्मा को दिनभर स्ट्रेचर पर भर्ती रखा गया। रोगी के मल मार्ग से लगातार रक्तस्राव हो रहा था। रात करीब 12:30 बजे डॉक्टर ने तीमारदार से कहा कि इसे ले जाओ, आज यहां कोई डॉक्टर नहीं आया है। रोती- बिलखती मां व पत्नी निजी एंबुलेंस चालक से गिड़गिड़ाने लगी भैया इतना पैसा नहीं है, इसकी जान बचा लो छोटे-छोटे बच्चे हैं। हम खेती बेचकर बाद में पैसा दे देंगे। लेकिन, डॉक्टर नहीं पसीजे। मजबूरी में रोगी को तीमारदार यहां से निजी अस्पताल ले गए।

स्ट्रेचर पर चीखते रहे मरीज, कोई पुरसाहाल नहीं

गोरखपुर में शनिवार को सुबह चार बजे बस पलट गई थी। हादसे में बिहार निवासी बिहारी शाह का एक हाथ व पैर टूट गया था। उसके सिर पर गंभीर चोट आई है, भाई उसे लेकर केजीएमयू पहुंचा। सुबह से इंतजार के बाद उसे शाम को डॉक्टर ने देखा। इसके बाद भाई सीटी स्कैन करवाने के लिए लंबी लाइन में लग गया। जबकि फैजाबाद से आए अयोध्या प्रसाद के पेट में गंभीर दर्द हो रहा था। वह स्ट्रेचर पर दर्द से तड़प रहे थे। उसकी पत्नी व पिता उसे पकड़े हुए थे। करीब तीन घंटे तड़पता रहा। इसी तरह टेंपों की टक्कर से गंभीर रूप से चोटिल निगोहां निवासी शीतला प्रसाद के परिजनों को तीन घंटे इलाज के लिए इंतजार करना पड़ा। ग्राउंड फ्लोर पर बहुत से मरीज स्ट्रेचर पर तड़प रहे थे।

बिना पहिये की स्ट्रेचर पर रोगी को इमरजेंसी ले गए तीमारदार

केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में गोरखपुर से आए सात वर्षीय सुजैन के पेट में ट्यूमर के कारण काफी दर्द था। एंबुलेंस से तीमारदार इमरजेंसी तक ले जाने के लिए काफी देर स्ट्रेचर का इंतजार किया। फिर स्ट्रेचर जो मिला उसका पहिया टूटा था। तीमारदार इसी स्टे्रचर से किसी तरह रोगी को लेकर गए। इसी तरह सीतापुर की शांति भी पेट के दर्द से तड़प रही थी, उसे भी आधा घंटे बाद टूटा स्ट्रेचर मिला। सीतापुर से आई निर्मला देवी ई-रिक्शा पर आधे घंटे तक स्ट्रेचर के लिए तड़पती रहीं। वहीं सआदतगंज से आए रफीक के सांस की नली में खाना फंस गया था। उसे भी काफी देर बाद स्ट्रेचर मिला। मरीजों के तीमारदारों में छिना-झपटी मची हुई थी।

सीटी स्कैन व अल्ट्रासाउंड के लिए घंटों वेटिंग

केजीएमयू के ट्रॉमा सेंटर में रविवार को सीटी स्कैन, अल्ट्रा साउंड व एक्सरे बहुत सुस्त गति से हो रहा था। भीड़ होने के बाद भी सिर्फ एक-एक टेक्नीशियन जूझ रहा था।

जिम्मेदारों का एक सा जवाब

केजीएमयू के मीडिया इंचार्ज प्रो. संतोष कुमार का कहना है कि ट्रॉमा सेंटर में स्ट्रेचर खराब होने और इलाज में लापरवाही की शिकायत पर जिम्मेदारों से जवाब-तलब किया जाएगा। व्यवस्था को सुधारने के लिए एक्शन प्लान बनाकर काम होगा।

लोहिया अस्पताल - अधूरा इलाज कर अस्पताल से भगाया, बच्ची की मौत

बाराबंकी के अंबौर निवासी प्रिया पांच माह की थी। उसे सांस लेने में तकलीफ हो रही थी। ऐसे में मां सीमा व पिता राजू रविवार सुबह प्रिया को लेकर पहुंचे। बेड नंबर तीन पर भर्ती कर उसे ऑक्सीजन सपोर्ट पर रखा गया। राजू व सीमा के मुताबिक बेटी की हालत में सुधार आ रहा था। वहीं रात दस बजे राउंड पर आए डॉक्टर ने अस्पताल में इलाज न होने का हवाला देकर कहीं और ले जाने का फरमान सुना दिया। दंपती का आरोप है कि बच्ची को कहां और किस अस्पताल में लेकर जाएं, यह भी डॉक्टर ने नहीं बताया। एंबुलेंस भी मुहैया नहीं कराई। सीमा के मुताबिक पैसा न होने की वजह से एक अनजान बाइक सवार से मदद की गुहार लगाई। उसकी मदद से बच्ची को लेकर घर चले गए। जहां सुबह चार बजे इलाज के अभाव में मौत हो गई। वहीं गोंडा से गंभीर हालत में रात दस बजे आई प्रसूता को दो घंटे भर्ती नहीं किया गया। ऐसे ही बिहार से आए मरीज शत्रुघन उराव को पेट व किडनी में संक्रमण की समस्या थी। उन्हें दो घंटे तक प्राथमिक उपचार नहीं मिला।

स्ट्रेचर गायब, इंटर्न के सहारे इलाज

स्ट्रेचर के अभाव में चेस्ट पेन से पीडि़त धर्मवीर सिंह को परिजन कंधे के सहारे लेकर इमरजेंसी पहुंचे। यहां भी इंटर्न के भरोसे चल रहा था। स्थिति यह थी कि कमता निवासी असलम छह माह को परिजन लेकर इमरजेंसी पहुंचे। ईएमओ ने पर्चे पर नेबुलाइजेशन को लिखा, मगर इंटर्न पर्चे पर लिखा समझ ही नहीं सके। ऐसे में करीब आधे घंटे बाद उसे इलाज मिल सका। वहीं अस्पताल में रात में अल्ट्रासाउंड की सुविधा नहीं है।

मुझे जानकारी नहीं, मांगेंगे जवाब

लोहिया अस्पताल के निदेशक डॉ. डीएस नेगी का कहना है बच्ची को किसी भी समय वेंटीलेटर की जरूरत पड़ सकती थी, इसके लिए उसे केजीएमयू ले जाने को कहा गया था, मगर परिजन बिना बताए बच्ची को लेकर अस्पताल से चले गए।

 

सिविल अस्पताल : देर से इलाज के कारण थम गईं महिला की सांसें

इमरजेंसी में रविवार रात 10 बजे योजना भवन कॉलोनी निवासी सुभाषिनी पहुंची। उन्हें सांस लेने में तकलीफ थी। मरीज के पति विजय का आरोप है कि इलाज बगैर उसे ट्रॉमा सेंटर रेफर कर दिया। तीमारदारों ने 108 नंबर पर कॉल किया। करीब 20 मिनट तक इमरजेंसी के बाहर एंबुलेंस का इंतजार करते रहे। तभी कैमरे का फ्लैश चमकते देख डॉक्टर बाहर आए और फिर से उसे इमरजेंसी में ले गए। उपचार शुरू हुआ, लेकिन इलाज में देरी से महिला की मौत हो गई। रात करीब 10.30 बजे तेलीबाग के भगवानदास अस्पताल पहुंचे। वाहन से परिजनों ने खुद उतारा और स्ट्रेचर पर लिटाया। इमरजेंसी में ले जाने में वार्ड बॉय ने हेल्प भी नहीं की। अंदर जूनियर डॉक्टर दवाएं लिखते रहे।

लोकबंधु : बेड हैं, फिर भी स्ट्रेचर पर इलाज

यहां रात नौ बजे के बाद इमरजेंसी सेवाएं औंधे मुंह दिखी। इमरजेंसी कक्ष में डॉक्टर तो थे, मगर गंभीर अवस्था में पहुंच रहे मरीजों की ड्रेसिंग बाहरी लोग कर रहे थे। इमरजेंसी कक्ष में पर्याप्त बेड के बाद भी जरूरतमंदों को ट्रॉमा सेंटर रेफर किया जाता रहा। जबकि पांच दिन से एक बुजुर्ग का स्ट्रेचर पर ही इलाज किया जा रहा था।

एंबुलेंस के लिए दलालों की सजती है मंडी

गंभीर रूप से घायल मरीजों के तीमारदारों के लिए वहां सक्रिय दलाल एक बड़ी मुसीबत हैं। सरकारी एंबुलेंस देर से मिलने जैसी समस्या बता निजी एंबुलेंस से मरीजों को निजी अस्पताल भेजा जा रहा था।  ड्यूटी पर बतौर ईएमओ तैनात डॉ हरेंद्र सिंह का कहना था कि प्रयास यही रहता है कि मरीजों को किसी तरह की समस्या न हो।

बलरामपुर : ब्लड प्रेशर बढ़ा है, ट्रॉमा सेंटर ले जाओ

रात करीब पौने दस बजे। वजीरगंज निवासी मो. इशाक को मोहल्ले वाले उन्हें बलरामपुर अस्पताल की इमरजेंसी लाए। गुहार के बाद भी इलाज के बजाय चिकित्सकों ने उन्हें बाहर कर दिया। तभी मीडियाकर्मी देख डॉक्टर बाहर आए और बीपी नाप कर उन्हें भर्ती करने को कहा। पूछने पर चिकित्सक बोले ब्लड प्रेशर बढ़ा है। क्या ब्लड प्रेशर का इलाज यहां नहीं है उस पर चिकित्सक का उत्तर था। ऐसा नहीं है अगर नार्मल न हुआ तो यहां वेंटीलेटर की व्यवस्था नहीं है। इसके बाद डॉक्टरों ने मेमो पर पत्नी मेहरुन्निसा से हस्ताक्षर करवाए। इसके बाद इंजेक्शन लगाया गया और एक घंटे बाद मरीज का इलाज शुरू हुआ। फिर भी सोमवार को पूर्वाह्न रोगी का इंतकाल हो गया।


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