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शिक्षा के उजियारे से बेटियों का जीवन रोशन

जीवन के उतार-चढ़ाव को दरकिनार कर हासिल किया मुकाम। बाल विवाह के बाद बड़ी बेटी की अकाल मृत्यु के दर्द को भुला बढ़ाए कदम। शिक्षा को हथियार बना जीती जिंदगी की जंग।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 15 Oct 2018 07:45 AM (IST)Updated: Mon, 15 Oct 2018 07:45 AM (IST)
शिक्षा के उजियारे से बेटियों का जीवन रोशन
शिक्षा के उजियारे से बेटियों का जीवन रोशन

लखनऊ ( दुर्गा शर्मा)। बचपन अभी छूटा भी नहीं था कि वैवाहिक जीवन की बड़ी जिम्मेदारी से नाता जुड़ गया। 15 वर्ष की अल्पायु में मऊरानीपुर (झांसी) से जीवन का सफर इटावा की ओर बढ़ चला। पांच बच्चों संग हर जिम्मेदारी का बखूबी निर्वहन करते-करते समय बीतता गया। 32 साल की उम्र में नियति ने एक मां की परीक्षा ली और बड़ी बेटी को छीन लिया। वह बेटी जिसने मां को शिक्षा से जुडऩे का पाठ पढ़ाया। बेटी तो चली गई पर मां को जीवन का उद्देश्य मिल गया। शिक्षा के उजियारे से बेटियों का जीवन रोशन करने का ध्येय। यह जीवन संघर्ष शहर में शिक्षा जगत का जाना माना नाम पुष्पलता अग्रवाल का है। शिक्षा से सामाजिक सुधार की दिशा में अनुकरणीय योगदान है।

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सोलह वर्ष की आयु में बड़ी बेटी नीरू पंचतत्व में विलीन हो गईं। ऐसे समय में जब अपनों का साथ सबसे जरूरी था, वह नहीं मिला। चार बच्चों की जिम्मेदारी थी। हिम्मत नहीं हारी और इटावा के संयुक्त परिवार के संकीर्ण परिवेश से बाहर निकलकर लखनऊ आने का निर्णय लिया। यह निर्णय जीवन पथ को नई दिशा देने में निर्णायक साबित हुआ। नया माहौल, नया परिवेश और वक्त धीरे धीरे जख्मों पर मरहम लगाने लगे, मगर आंखें हर बच्ची में अपनी खोई हुई बेटी को ढूंढती रहतीं। लखनऊ आकर अपने बच्चों के लिए स्कूल की खोज करते हुए पता चला कि राजाजीपुरम क्षेत्र में कन्याओं का कोई विद्यालय नहीं है। बस मानो राह तो नहीं थी पर मंजिल मिल गई।

सहयोग किसी का नहीं था, आर्थिक अक्षमता अलग। बच्चों की शिक्षा में कोई बाधा ना आए इसके लिए जी तोड़ मेहनत की। एक-एक जेवर के साथ ही मंगलसूत्र तक गिरवी रखने की नौबत आई। आखिरकार मेहनत रंग लाई और नीरू मेमोरियल सोसायटी के अंतर्गत सेंट जोजफ स्कूल के नाम से कन्याओं के विद्यालय की स्थापना की। बस फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। एक के बाद एक शहर में स्कूल की पांच शाखाओं की नींव रखी।

शिक्षा का उपहार सर्वोपरि

पुष्पलता अग्रवाल बताती हैं, स्वावलंबन के लिए शिक्षा जरूरी है। खासकर लड़कियों और महिलाओं के लिए शिक्षा का उपहार ही सर्वोपरि है। परिस्थितियां चाहे जितनी प्रतिकूल हों, उद्देश्य अच्छा और इच्छाशक्ति दृढ़ है तो कुछ भी असंभव नहीं है।

कुछ उल्लेखनीय काम

मलिन बस्ती के बच्चों हेतु स्कूल की शाखाओं में नि:शुल्क सायंकालीन कक्षाएं एवं शिक्षण सामग्री, भोजन, वस्त्र आदि का वितरण।  ग्रामीण क्षेत्रों की निर्धन बालिकाओं के सामूहिक विवाह में सहयोग।  वृद्धों, दैवीय आपदा पीडि़तों की सहायता के साथ ही कारगिल युद्ध के समय आर्थिक मदद। मेधावी छात्रों को प्रतिवर्ष नीरू मेमोरियल छात्रवृत्ति का वितरण।


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