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जहरीली नहीं लीची...बस खाली पेट न खाएं, जाने चमकी बुखार का रहस्‍य lucknow news

आइआइटीआर के पूर्व वैज्ञानिक डॉ. मुकुल दास का अमेरिकी जनरल में प्रकाशित हुआ शोध। खाली पेट खाने से कम हो जाता है ग्लूकोज का स्तर।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Thu, 08 Aug 2019 08:44 PM (IST)Updated: Sun, 11 Aug 2019 08:40 AM (IST)
जहरीली नहीं लीची...बस खाली पेट न खाएं, जाने चमकी बुखार का रहस्‍य lucknow news
जहरीली नहीं लीची...बस खाली पेट न खाएं, जाने चमकी बुखार का रहस्‍य lucknow news

लखनऊ, (रूमा सिन्हा)। सैकड़ों बच्चों का काल बन चुका 'चमकी' बुखार कोई रहस्यमय बुखार नहीं। न ही इसके लिए 'लीची' जिम्मेदार है। लीची एक रसीला स्वास्थ्यवर्धक फल है जिसमें किसी तरह का विषैला तत्व नहीं होता। बस ध्यान इस पर देना है कि लीची को खाली पेट खासतौर पर शाम के समय न खाया जाए।

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जून में बिहार के मुजफ्फरपुर व मालदा में सैकड़ों बच्चों की जान लेने वाले चमकी बुखार के बारे में तरह-तरह के कयासों पर विराम लगाते हुए वैज्ञानिकों ने यह साफ कर दिया है कि लीची में किसी तरह का जहर नहीं होता। बस इसको खाली पेट खाने से शरीर में हाइपोग्लाइसीमिया यानी शरीर में ग्लूकोज की मात्रा अत्यधिक कम हो जाती है। जिसका असर सीधे मस्तिष्क कोशिकाओं पर पड़ता है। बेहोशी आने लगती है और समय पर इलाज न मिलने पर मृत्यु तक हो जाती है। 

भारतीय विषविज्ञान अनुसंधान संस्थान (आइआइटीआर) की फूड टॉक्सीकोलॉजी विभाग के पूर्व हेड डॉ.मुकुल दास का ताजा शोध अमेरिका के 'टॉक्सीकोलॉजी लेटर्स' में प्रकाशित हुआ है। डॉ.दास बताते हैं कि बीते की सालों से यह माना जा रहा था कि मच्छर से होने वाला इंसेफेलाइटिस के चलते बिहार के मुजफ्फरपुर, मालदा में बच्चों की मौत हो रही है। कुछ का मानना था कि लीची में कुछ ऐसा है जिसके चलते बच्चों की मौत हो जाती है। चूंकि इन इलाकों में लीची बड़ी तादाद में पैदा होती है।

पूर्व में हुए शोध वर्ष 1960 में किए गए अध्ययन में पाया था कि लीची के बीज में 'मेटल साइक्लो प्रोपाइल ग्लाइसीन' (एमसीपीजी) कंपाउंड पाया जाता है जो भूखे जानवर में हाइपो ग्लाइसीमिया उत्पन्न करता है। एक अन्य शोध में वेस्टइंडीज के जमाइका में पाया जाने वाला फल एकी फ्रूट जो स्ट्राबेरी फैमिली का है में मिथाइल साइक्लो प्रोपाइल एलेनी (एमसीपीए) मिला। इसे खाने के बाद बच्चे उल्टियां करने के साथ बेसुध होकर मर जाते थे। इसे जमाइकन वोमेटिंग सिंड्रोम (जेवीएस) नाम दिया गया। 

दरअसल, एमसीपीए और एमसीपीजी दोनों में ही शरीर में ग्लूकोज की मात्रा बेहद कम हो जाती है। इसे हाइपो ग्लाइसेमिक इंसिफेलोपैथी कहते हैं। डॉ.दास कहते हैं कि इंसिफेलोपैथी शरीर में अन्य स्रोत जैसी प्रोटीन व लिपिड से मिलने वाले ग्लूकोज को भी रोक देती है। इससे शरीर में ग्लूकोज की मात्रा इस हद तक कम हो जाती हैं कि जान चली जाती है। 

उठाए जाएं यह कदम

  • लोगों को निरंतर जागरूक करें कि बच्चों को शाम को बगैर खाना खाए न सोने दें।
  • हाइपोग्लाइसीमिया की शिकायत सुबह के समय होती है। बच्चे को बेहोशी आ रही हो तो तुरंत ग्लूकोज देकर अस्पताल ले जाएं।
  • सीएचसी व पीएचसी सहित सभी अस्पतालों में स्टाफ ट्रेंड कर ऐसे बच्चों को तत्काल 10 फीसद डेक्सट्रोज चढ़ाने के सलाह दी जाए। 
  •  इंसेफेलाइटिस व हाइपोग्लाइसीमिया की जांच के इंतजाम अस्पतालों में किए जाएं। 
  • इंसेफेलाइटिस में कई दिन तक बुखार आता है जबकि हाइपोग्लाइसीमिया होने पर बुखार आने के बाद बच्चा बेहोश हो जाता है। 
  • शोध में लीची के छिलके व गूदे में पेस्टीसाइड नहीं मिला।

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