45 मिनट में 65 किलोमीटर की दूरी तय कर बनाया कीर्तिमान, मामूली सी चूक डॉल्फिन के लिए हो सकती थी जानलेवा
बाराबंकी में डॉल्फिन का चला रेस्क्यू ऑपरेशन थोड़ी से लापरवाही ले सकती थी डॉल्फिन की जान।
बाराबंकी [निरंकार जायसवाल]। वन विभाग व टर्टल सर्वायवल एलियांज(टीएसए) के इस एेतिहासिक रेस्क्यू में मामूली सी चूक डॉल्फिन के लिए जानलेवा हो सकती थी। लगातार एक सप्ताह से डेरा डालकर निगरानी, सक्रियता और बेहतर सामंजस्य कर टीम ने यह कीर्तिमान स्थापित किया है। करीब 65 किमी का कच्चा, पक्का व रोड का दुर्गम रास्ता करीब 45 मिनट में पूरा कर डॉल्फिन को सुरक्षित किया गया।
कीर्तिमान बनाने का दावा करने वाले प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ) एनके सिंह बताते हैं कि शारदा नदी से डॉल्फिन कैनाल के रास्ते आ जाती हैं। जानकारी के बाद टीमें लगातार निगरानी कर रही थीं। रणनीति के तहत रविवार को चारों डॉल्फिन के रेस्क्यू की तैयारी हुई। पहले से ही वाहन, गद्दे कंबल और ड्रम आदि की व्यवस्था कर ली गई थी। दो-दो करके डॉल्फिन को घाघरा नदी में डाला गया।
कैसे पार हुए 65 किमी : देवा रेंज में जहां चार डॉल्फिन रेस्क्यू पकड़ी गई वहां से घाघरा नदी का वह स्थान जहां उनको डालना था करीब 65 किमी लंबा था। इसे टीम ने करीब 45 मिनट में पूरा किया। टीम ने पूरे वेग के साथ काम किया। पानी से बाहर निकालने से पहले डनलप के गद्दे को नीचे गीलाकरके रख लिया गया था और गीले कंबल से कवर को आनन-फानन डॉल्फिन को घाघरा की ओर लेकर निकाला गया। प्रत्येक वाहन में एक डॉल्फिन के साथ एक दो डॉक्टर और अन्य स्टाॅफ था। जो लगातार ड्रम में भरा पानी उस पर डाल रहे थे। ताकि उसकी जान को खतरा न होने पाए। घाघरा किनारे दौड़कर उन्हें पूरी सतर्कता के साथ पानी में डाल दिया गया।
एक साल में आठ डॉल्फिन : डीएफओ एनके सिंह ने बताया कि एक साल के भीतर देवा, फतेहपुर और रामनगर रेंज में आठ डॉल्फिन को रेस्क्यू किया गया। जो नहर में आ गई थीं। हालांकि, रामनगर रेंज में कुछ माह पूर्व ग्रामीणों की लापरवाही के कारण एक डॉल्फिन की मौत हो गई थी। इसका रामसनेहीघाट में मुकदमा भी दर्ज कराया गया था।