बैंकों में जमा रुपयों के सुरक्षा की जिम्मेदारी आपकी भी, साइबर अपराधियों को ऐसे करें फेल
एटीएम से रुपये निकालते व फोन पर बात के समय रहें सतर्कता।
लखनऊ, (ज्ञान बिहारी मिश्र)। बैंकों में आपकी मेहनत की कमाई जमा है। रुपये आपके हैं तो इसके प्रति जिम्मेदारी भी आपको ही उठानी पड़ेगी। बैंकों के भरोसे बैठकर आप अपनी रकम सुरक्षित नहीं रख सकते। साइबर अपराधियों से बचने के लिए सतर्कता सबसे बड़ा हथियार है। आपको समझना होगा कि बैंक की ओर से कभी भी फोन, ई-मेल अथवा मैसेज से खातों के बारे में जानकारी नहीं मांगी जाती।
कैसे होता कार्ड का डाटा चोरी
जालसाज स्कीमर (डाटा चोरी करने की डिवाइस) एक तरह की चिप का प्रयोग करते हैं, इसे एटीएम के कार्ड रीडर स्लॉट में लगाकर डाटा चोरी कर ली जाती है। कार्ड ट्रेपिंग के जरिए कार्ड की जानकारी कॉपी कर ली जाती है। शोल्डर सर्फिंग के जरिए ठग आपके एटीएम कार्ड का नंबर पढ़ लेते हैं। वहीं मदद का झांसा देकर कार्ड बदल देते हैं। एटीएम में हिडेन कैमरे लगाए जाते हैं। इससे पिन कोड चोरी कर लिया जाता है।
ऐसे करते ऑनलाइन ठगी
ठग किसी वास्तविक वेबसाइट से मिलती जुलती फर्जी वेबसाइट बना लेते हैं। एटीएम के जरिए अगर वेबसाइट से कोई लेनदेन की जाती है तो कार्ड का डाटा चोरी कर लेते हैं। की-स्ट्रोक लॉजिंग तकनीक के जरिए जालसाज लोगों को की-लॉगर साफ्टवेयर का लिंक भेजते हैं। इसे डाउनलोड करने वाले व्यक्ति से ठग की-स्ट्रोक के जरिए नेट बैंकिंग पासवर्ड चोरी कर लेते हैं। वहीं पब्लिक वाई-फाई का प्रयोग कर स्मार्ट फोन से लेनदेन करते समय भी डाटा चोरी कर लिया जाता है। मालवेयर साफ्टवेयर के जरिए कंप्यूटर को नुकसान पहुंचाकर बैंक व एटीएम के सर्वर हैक कर लेते हैं। इसके बाद डाटा चोरी कर लिया जाता है।
समझें, कैसे बचाएं खुद को
बिना गार्ड या खराब कैमरे वाले जीर्ण स्थिति के एटीएम बूथ का इस्तेमाल न करें। दो बार पिन कोड मांगने वाले एटीएम में न जाएं। पिन नंबर डालते समय की बोर्ड ढक लें, ताकि वह कैमरे में कैद न हो पाए। किसी अपरिचित से एटीएम का प्रयोग करने के लिए मदद न मांगें।
ऐसे होगा ऑनलाइन बचाव
ऐसे वेबसाइट का ही प्रयोग करें जो एसएसएल सर्टिफाइड हों। यह ब्राउजर बॉक्स में लॉक साइन से दिखता है। एचटीटीपीएस प्रोटोकॉल वेबसाइट का ही प्रयोग करें। एंटी-वायरस साफ्टवेयर आपके कंप्यूटर को सुरक्षित रखेगा। आप मोबाइल में आइडेंटिटी थेप्ट डिटेक्शन एप इंस्टाल कर सकते हैं, इससे मोबाइल खोने की दशा में आपको डाटा वापस मिल जाएगा। डेबिट कार्ड से ई-कामर्स ट्रांजेक्शन न करें। कार्ड वेरीफिकेशन वेल्यू ( सीवीवी) नंबर को छिपाकर रखें। सोशल साइट्स पर ऑनलाइन एकाउंट का प्रयोग करने के बाद फौरन लॉग आउट कर दें। पासवर्ड बदलते रहें। गोपनीय जानकारी किसी से साझा न करें। बैंक स्टेटमेंट चेक करते रहें। किसी भी सादी रसीद पर हस्ताक्षर न करें।
पांच मिनट में यूपीआइ से ट्रांसफर हो जाती है रकम
यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआइ) एक पेमेंट गेटवे है। वर्तमान समय में साइबर अपराधी यूपीआइ की मदद से पांच मिनट के भीतर लोगों के खातों से रुपये निकाल लेते हैं। साइबर क्राइम के विशेषज्ञ भी ठगों के इस पैटर्न के आगे फेल साबित हो रहे हैं। लखनऊ की साइबर क्राइम सेल ने वर्ष 2019 में करीब 125 लोगों से ठगे गए 30 लाख रुपये वापस दिलवाए।
हालांकि यूपीआइ से रुपये स्थानांतरित होने के बाद से अब पुलिस के हाथ खाली हैं। नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक हर साल यूपी में तकरीबन दोगुना की गति से साइबर अपराध बढ़ रहे हैं। वर्ष 2016 में कुल 2374 साइबर अपराधियों को यूपी पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल में डाला था। वहीं पूरे देश में 7600 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। 2015 में यूपी में यह आंकड़ा 1699 था और 2014 में महज 1223 जालसाज पकड़े गए थे।
दो से तीन दिन में मिलती है जानकारी
यूपीआइ के जरिए ठगी की रकम ट्रांसफर होने के बाद लोग साइबर सेल में शिकायत करते हैं। इस दौरान यूपीआइ से किन-किन खातों में रकम भेजी गई है, इसकी जानकारी लेने में पुलिस को दो से तीन दिन का वक्त लगता है। तब तक जालसाज ठगी की रकम से या तो ऑनलाइन खरीदारी कर चुके होते हैं या फिर उसे खातों से निकाल लेते हैं।
बैंक भी करते हैं हीलाहवाली
पुलिस की ओर से खातों की जानकारी मांगने पर बैंककर्मी भी हीलाहवाली करते हैं। त्वरित मदद का प्रयास कर रही पुलिस को बैंक का सहयोग नहीं मिलता है। इसके कारण ठगों को पर्याप्त वक्त मिल जाता है और वह सारे रुपये हड़प लेते हैं।
आंकड़े क्या कहते हैं
- 125 लोगों को पिछले वर्ष साइबर क्राइम सेल ने वापस दिलाई रकम
- 2019 में लखनऊ पुलिस ने सिर्फ 30 लाख रुपये वापस कराए
- 2014 में महज 1223 जालसाज पकड़े गए थे।
- 2015 में यूपी में पकड़े गए थे 1699 साइबर अपराधी
- 2374 साइबर अपराधी 2016 में यूपी पुलिस के हत्थे चढ़े
- 2016 में 7600 ठग पूरे देश में पकड़े गए थे