जुबली कॉलेज में दाखिला मिलने पर खूब बजे थे नगाड़े : डिप्टी सीएम दिनेश शर्मा
राजकीय जुबली इंटर कॉलेज में पहला पुरा-छात्र सम्मेलन धूमधाम से मनाया गया। इस दौरान वर्ष 1943 से अब तक पास आउट विद्यार्थी शामिल हुए। इसमें विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत व सेवानिवृत्त कर्मी आए।
लखनऊ, जेएनएन। जुबली कॉलेज का इतिहास गौरवमयी है। यहां एडमिशन मिलना चुनौतीपूर्ण था। जब मेरा दाखिला हुआ, तो घर पर दो नगाड़े वाले बुलाए गए। मोहल्ले में शोर हो गया, कि पाधा जी के बेटे पप्पू (डॉ. दिनेश शर्मा) का नाम जुबली में लिख गया। यह कहना था डिप्टी सीएम डॉ. दिनेश शर्मा का। 132 वर्ष के जुबली कॉलेज में बुधवार को वर्षों पुराने छात्र जुटे। यहां डिप्टी सीएम, मंत्री, प्रशासनिक अधिकारी, इंजीनियर, डॉक्टर, वकीलों का जमावड़ा हुआ। वहीं कुछ जुबिलियंस ऐसे थे, जिन्होंने आजादी की पहली सुबह कैंपस में ही देखी थी। वह बीते दिनों में खो गए। ऐसे में मौजूद नए छात्र भी विद्यालय के गौरवशाली अतीत से रूबरू हुए।
इस दौरान डॉ. दिनेश शर्मा ने कैंपस के दिनों को याद करते हुए कहा कि मेरे घर का नाम पप्पू है, पिता जी को सभी पाधा जी कहते थे। कक्षा छह में जुबली में दाखिला मिला। उन दिनों यह बड़ी उपलब्धि थी। ऐसे में पिता जी के चेहरे पर अलग चमक दिखी, वह मूछों पर ताव दे रहे थे। मां ने दरवाजे पर दो नगाड़े वाले बुला रखे थे। दाखिला लेकर पहुंचा तो मोहल्ले में जश्न था।
अशरफी का टूटा घंटा, दयाराम का खीरा
डॉ. दिनेश शर्मा ने कई अपने बैच के छात्रों को समारोह में बुलाया था। सभी का खड़े होकर परिचय कराया। वरिष्ठ छात्रों से संस्मरण सुने। इस दौरान अशरफी का टूटा घंटा बजाना, गेट के बाहर दयाराम के खीरे व हरीराम के चूरन की भी याद छात्रों को दिलाई। जुबली में मिले ज्योमेट्री बॉक्स की आज भी पूजा करने की जानकारी दी।
यहीं के ग्राउंड से बना क्रिकेटर
राज्यमंत्री मोहसिन रजा ने कहा कि कक्षा आठ में दाखिला लिया। यहीं के ग्राउंड पर क्रिकेट खेला। इसके बाद क्रिकेटर बन गया।
डिप्टी सीएम बोले
- जो पढ़ाएगा, वहीं जुबली में रहेगा
- जुबली कॉलेज समेत सभी मंडलों में एक मॉडल कॉलेज बनेगा
- जीआइसी कॉलेज में कंप्यूटर लैब, साइंस लैब बेहतर होंगी
- जुबली में शिक्षकों की कमी पूरी होगी
- जो पढ़ाएगा वह जुबली में रहेगा, सिफारिश करवाने पर मिर्जापुर जाएगा
- मई-जून में होंगे ऑनलाइन ट्रांसफर, दौड़भाग नहीं करनी होगी
- 2700 कौशल केंद्र सरकारी कॉलेजों में खुलेंगे
- पांच कक्षों का लोकार्पण, छोटी जुबली को 83 लाख
- जुबली में मेधावी छात्रों के लिए बनेगा छात्रावास
- प्रोफेशनल कोर्स भी शुरू करने पर होगा विचार
यहीं पर फहरा था आजादी का झंडा
तेज नारायण निगम ने वर्ष 1943 से 1953 तक जुबली कॉलेज से पढ़ाई की। उन्होंने बताया कि जब देश आजाद हुआ था, तब वह कक्षा सात में थे। यहां फील्ड में मार्च हुआ। छात्रों ने जश्न मनाया और झंडा फहराया। कॉलेज में झंडारोहण के लिए लगाया गया पाइप अभी भी उसी स्थान पर है।
यहां के बाद क्रिश्चियन कॉलेज में फहराया झंडा
चंद्र किशोर रस्तोगी ने वर्ष 1943 से 1949 तक जुबली कॉलेज में पढ़ाई की। उन्होंने बताया कि देश की आजादी पर कॉलेज में छात्रों ने जश्न मनाया। सभी परिसर में एकजुट हुए। इसके बाद क्रिश्चियन कॉलेज गए, यहां पहले पाकिस्तान का झंडा लगा मिला। उसे उतारकर छात्रों ने तिरंगा फहराया, फिर छात्र विधान सभा की ओर गए।
अब नहीं बर्बाद होने देते अन्न
वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल रस्तोगी ने वर्ष 1955 से 58 तक कॉलेज में पढ़ाई की। उन्होंने कहा कि पहले लंच में मिलने वाला चना थोड़ा खाता था, अ'छा न लगने पर फेंक देता था। एक बार कॉलेज के मित्र शिवबालक ने अनाज उत्पादन में किसानों की मेहनत का हवाला दिया, तब से आज तक थाली तक में अन्न बर्बाद नहीं होने देता हूं।
देर होने पर गेट पार करने की नहीं थी हिम्मत
मो. अख्तर हसनैन दुबई में मल्टीनेशनल एक कंपनी में कंट्री हेड हैं। उन्होंने जुबली में वर्ष 1977 से 82 तक पढ़ाई की। बताया कि लालता प्रसाद शिक्षक बहुत सख्त थे। 10 मिनट भी देर हो जाने पर छात्र गेट के अंदर प्रवेश नहीं करते थे। उन्होंने कहा कि कॉलेज की हर स्तर पर मैं मदद करूंगा।
छत से कूद गया कश्मीरी दोस्त
वीरेंद्र कुमार मौर्य ने 1944 से 46 तक पढ़ाई की। उन्होंने कहा कि एक कश्मीरी छात्र बट्ट की याद आती है। छात्रों ने उसमें जोश भरा तो वह भवन की छत से कूद गया, यह सोचकर आज भी अचंभा लगता है।