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क्लास रूम का स्थान लेने लगी है डिजिटल टीचिंग: डॉ दिनेश शर्मा

डिप्टी सीएम दिनेश डॉ चंद्र शर्मा की कोविड-19 के मद्देनजर भविष्य की शिक्षा व्यवस्था को लेकर विशेषज्ञों के साथ हुई चर्चा।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Mon, 06 Jul 2020 07:06 PM (IST)Updated: Mon, 06 Jul 2020 07:06 PM (IST)
क्लास रूम का स्थान लेने लगी है डिजिटल टीचिंग: डॉ दिनेश शर्मा
क्लास रूम का स्थान लेने लगी है डिजिटल टीचिंग: डॉ दिनेश शर्मा

लखनऊ, जेएनएन। पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री की ओर से सोमवार को आयोजित कोविड-19 के दौरान कैसा हो शिक्षा का रोडमैप विषय पर इंटरएक्टिव वर्चुअल कान्फ्रेंस में डिप्टी सीएम दिनेश चंद्र शर्मा ने कहा कि क्लासरूम टीचिंग का स्थान अब डिजिटल टीचिंग ने लेना प्रारंभ कर दिया है। हमने बदलते शिक्षा के स्वरूप को स्वीकार किया है। अब छात्र अनुशासित होकर घर से ही ऑनलाइन शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। हालांकि शुरुआत में लगता था कि क्लासरूम टीचिंग का कोई विकल्प नहीं है। मगर अब इसकी राह में आने वाली दिक्कतों को दूर कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषी छात्रों के लिए पाठ्यक्रम का हिंदी में भी कंटेंट उपलब्ध कराया गया है जोकि प्रभा टीवी चैनल पर चल रहा है। अब शीघ्र ही यह पाठ्यक्रम दूरदर्शन पर भी चलाया जाएगा। हालांकि दूरदराज क्षेत्रों में इंटरनेट की उपलब्धता ना होना और नेटवर्क का बाधित होना प्रमुख चुनौती है। इसके साथ ही प्राथमिक शिक्षा में ऑनलाइन क्लासेज की व्यवस्था भी चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इन सब से भी निपट लिया जाएगा।

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उप मुख्यमंत्री ने कहा कि ऑनलाइन क्लासेज को सुचारू सुगम व सुविधाजनक बनाने के लिए हमारे शिक्षा अधिकारियों व शिक्षकों ने बेहतरीन काम किया। अगर कोविड काल में कक्षाएं शुरू की जाती तो इस पर तमाम पैसा खर्च होता और असुरक्षा भी होती। एक बड़ी समस्या इस दौरान यह भी आई कि अभिभावकों ने कहा कोविड-19 जब हमारे बच्चों ने स्कूल के किसी संसाधन का उपभोग भी नहीं किया तो उसकी फीस भला क्यों दी जाए? वहीं दूसरी तरफ स्कूल प्रबंधन की अपनी मजबूरी थी। उनका पक्ष था कि अगर हम फीस नहीं लेंगे तो शिक्षकों को आखिर वेतन कहां से देंगे। इस मसले को सुलझाना भी बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य था, लेकिन इसका भी रास्ता निकाला गया। अभिभावकों को यह राहत दी गई कि उनसे वाहन शुल्क नहीं लिया जाएगा और फीस को एक साथ तीन महीने की देने के बजाय वह एक एक महीने की दे सकेंगे। उन्होंने कहा कि माध्यमिक शिक्षा व उच्च शिक्षा का जब मैंने चार्ज लिया तो सत्र अनियमित थे, नकल व्यवसाय के रूप में बढ़ रही थी। परीक्षाएं डेढ़ -डेढ़ माह तक चलती थी, लेकिन हमने टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके नकल विहीन परीक्षा कराई। इक्कीस दिन में दो करोड़ 82 लाख कापियां जांची गई। यह चुनौती हमने स्वीकार की।

परीक्षाएं अब 12 से 15 दिन में ही होने लगी हैं। इससे संसाधनों का उपभोग भी कम हुआ। इस दौरान एडीशनल चीफ सेक्रेट्री आफ सेकेंडरी एजुकेशन आराधना शुक्ला, एडीशनल चीफ सेक्रेट्री आफ हायर एजुकेशन मोनिका एस गर्ग ने भी अपने विचार रखे। पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के डॉक्टर के के अग्रवाल ने भी भविष्य में शिक्षा का स्वरूप कैसा हो को लेकर अपना सुझाव दिया। प्रोफेसर हिमांशु राय, अशोक गांगुली, मार्टीन बेस्ट, शरद जयपुरिया, अरविंद मोहन, सुनाली रोहरा व मसूद हक इत्यादि विशेषज्ञों ने भी शिक्षा के ऑनलाइन स्वरूप की वकालत की।


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