नई शिक्षा नीति में संस्कृत का होगा विकास: उप मुख्यमंत्री
लखनऊ के उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम् की ओर से नई शिक्षा नीति एवं संस्कृत विषय पर हुई ऑनलाइन गोष्ठी।
लखनऊ, जेएनएन। नई शिक्षानीति के अनुसार हम शिक्षा के सभी स्तरों पर संस्कृत को स्थान देंगे। फाउंडेशन और मिडिल लेवल पर संस्कृत में पठन-पाठन का माहौल विकसित हो ऐसा प्रयास किया जाएगा। आधुनिक विषयों के साथ संस्कृत की भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी। देव भाषा संस्कृत की उपयोगिता के साथ ही व्यवस्थित और रोजगारोन्मुखी बनाने की भी आवश्यकता है जो इस शिक्षा नीति से संभव होगा। देव भाषा संस्कृत का विकास सरकार की प्राथमिकता मेें शामिल है। उप्र संस्कृत संस्थानम् की ओर से शनिवार को आयोजित ऑनलाइन गोष्ठी में उप मुख्यमंत्री डॉ.दिनेश शर्मा बतौर मुख्य अतिथि बोल रहे थे।
“नई शिक्षानीति एवं संस्कृत” विषय पर राष्ट्रीय ऑनलाइन गोष्ठी में उप मुख्यमंत्री ने कहाकि देव भाषा संस्कृत भारतीय भाषाओं का प्रतिनिधित्व करती है। अन्य भाषाओं और उनके साहित्य को समृद्ध बनाने के लिए संस्कृत पर लोग आश्रित होंगे, ऐसे में संस्कृत के विद्वानों, अध्येताओं की भूमिका बढ़ेगी। उन्हें अभी से तैयार होना होगा। योग, आयुर्वेद ने आज पूरे विश्व को संस्कृत अध्ययन की ओर आकर्षित किया है जो सर्व विदित है। बतौर विशिष्ट अतिथि शामिल हुए बेसिक शिक्षा राज्यमंत्री डॉ. सतीश द्विवेदी ने शिक्षानीति को सर्वस्पर्शी व सर्वव्यापी बताया। मुख्यवक्ता शामिल हुए पद्मश्री चमूकृष्णशास्त्री संस्कृत के स्तरोन्नयन के लिए संस्कृत शिक्षकों ,विद्यालयों,महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों की भूमिका पर विस्तार से प्रकाश डाला। उप्र संस्कृत संस्थानम् के अध्यक्ष वाचस्पति मिश्रा ने कहाकि नई शिक्षा नीति संस्कृत के विकास के साथ ही सांस्कृतिक मर्यादाओं को भी विकसित करने वाली है। अंग्रेजी के साथ संस्कृत भाषा को भी उपयुक्त स्थान देने के लिए प्रदेश सरकार के प्रयास भी सराहनीय है। वेद पुराण और कर्मकांड के साथ यह भाषा विज्ञान में भी अपनी पहचान बना चुकी है। गोष्ठी में प्रो.राजाराम शुक्ल,प्रो.गोपबंधु शास्त्री,प्रो. विजय कुमार जैन, प्रो.मदन मोहन झा,प्रो. श्रेयांश द्विवेदी, प्रो. श्री निवास,प्रो. रामकुमार पांडेय, प्रो. मुरलीमनोहर पाठक,राम कृपाल तिवारी के अलावा डॉ. नवलता,डाॅ.अरविंद कुमार तिवारी, दिनेश कुमार मिश्रा, सुधीष्ट कुमार मिश्र, जगदानंद झा ,डॉ. कुशल देव, धीरज मैठाणी व रत्नेश त्रिपाठी समेत कई विद्वानों ने विचार व्यक्त किए।