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उत्तर प्रदेश में आसान न होगा कांग्रेस का दलित कनेक्ट

उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए दलितों को रिझाने में जुटी कांग्रेस ने आक्रामक तेवर अपनाने के बजाय सवालों के साथ संवाद-संपर्क बढ़ाने की रणनीति अपनायी परन्तु अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Mon, 15 Feb 2016 12:45 PM (IST)Updated: Mon, 15 Feb 2016 12:47 PM (IST)
उत्तर प्रदेश में आसान न होगा कांग्रेस का दलित कनेक्ट

लखनऊ (अवनीश त्यागी)। उत्तर प्रदेश की सत्ता में वापसी के लिए दलितों को रिझाने में जुटी कांग्रेस ने आक्रामक तेवर अपनाने के बजाय सवालों के साथ संवाद-संपर्क बढ़ाने की रणनीति अपनायी परन्तु अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही। डा. भीमराव अंबेडकर के 125 वें जयंती वर्ष में निकाली जा रही भीम ज्योति यात्रा को अपेक्षित कामयाबी न मिल सकी। अब लखनऊ में 18 फरवरी को प्रस्तावित राहुल गांधी के दलित कानक्लेव पर निगाह लगी है।

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कानक्लेव में दलित वर्ग के करीब सात सौ प्रमुख लोगों के बीच उत्तर प्रदेश के लिए दलित एजेंडा तैयार करने के साथ आगामी कार्ययोजना भी फाइनल की जाएगी। प्रदेश में प्रस्तावित क्षेत्रीय सम्मेलनों पर भी चर्चा होगी। इन सम्मेलनों में प्रदेशीय व राष्ट्रीय नेता उपस्थित रहेंगे और दलित घोषणापत्र के लिए सुझाव भी बटोरे जाएंगे। अभियान की कमान सांसद पीएल पुनिया संभाले हैं।

दलित कनेक्ट बढ़ाने के लिए कांग्रेस की कोशिश नई नहीं है। राहुल गांधी के दलित भोज से लेकर पीएल पुनिया को राज्यसभा भेजने के साथ राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की कमान सौंपकर दलित चेहरे के रूप में उभारने से भी बात बनती नहीं दिखी। जिस तरह गत लोकसभा चुनाव में दलित बसपा से छिटक कर भाजपा के साथ गया, उससे कांग्रेस नेतृत्व की बेचैनी बढ़ी है। दलितों में बढ़ते भाजपा प्रेम को रोकने के फिक्र में पार्टी जिलेवार प्रशिक्षित दलित नेताओं की टोली तैयार करने में जुटी है।

पुरानों की उपेक्षा से पनपता असंतोष

पूर्व विधायक दलित कनेक्ट अभियान को कामयाबी न मिल पाने की वजह बताते हैं कि पुराने समर्पित दलित नेताओं को हाशिये पर डालने और विवादित व अन्य दलों से आए लोगों की कार्यशैली से खेमेबाजी बढ़ी। इसके चलते प्रदेश के 34 जिलों में दो चरणों में निकली भीम ज्योति यात्रा असर न छोड़ सकी। यात्रा से आम दलितों को जोड़ पाना तो दूर दलित कार्यकर्ताओं को एक प्लेटफार्म पर लाने का काम भी नहीं हो सका। एक छोटे वाहन पर निकली यात्रा से राष्ट्रीय पार्टी के बड़े अभियान का संदेश भी नहीं जा सका।

दलित जनप्रतिनिधियों ने भी फासला बनाए रखा

प्रदेश में विधानसभा की 403 सीटों में से 84 आरक्षित हैं। 2012 में पार्टी को कुल 13.25 प्रतिशत वोट हासिल हुआ और तीन आरक्षित सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की। वर्ष 2007 में कांग्रेस को मात्र 8.61 फीसद वोट मिले परन्तु आरक्षित चार क्षेत्रों पर कब्जा किया था। कांग्रेस के पास पुराने दलित नेताओं की कमी नहीं परन्तु तरजीह न मिल पाने से हाशिये पर हैं। नये व पुराने के टकराव से कांग्रेस के दलित कनेक्ट में जोश नहीं आने के आरोप से इनकार करते हुए सांसद पीएल पुनिया का कहना है कि दलित कानक्लेव के बाद हालात बदलते दिखेंगे और अभियान लगातार जारी रखा जाएगा।

विधानसभा चुनावों में कांग्रेस

वर्ष लड़े क्षेत्र जीते मत प्रतिशत

2012 355 28 13.26

2007 393 22 8.61

2002 402 25 8.96

1996 126 23 29.13


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