मैं संवादी...आपका पांच साल पुराना साथी, फिर आ रहा हूं आपसे मिलने
समाज के संदर्भ में संस्कृति का अर्थ कई पर सभी नहीं समझ सके इसलिए ऐसे विषय और वक्ताओं को एक सार्थक मंच दिया गया।
लखनऊ, (प्रियम वर्मा)। वो मेरा पहला दिन था, थोड़ा मुश्किल पर मुमकिन था। मैंने कदम उठाया था पर आगे उसे आपने बढ़ाया था। आज पांच साल बाद परिपक्वता की पंक्ति में खड़ा हूं। एक बार फिर आपके बीच दूसरों से अलग पर आपका अपना हूं। अब हमारे मिलन को उल्टी गिनती शुरू हो गई है। साल भर बाद मिलने की घड़ी आ गई है। हमारा दामन आपके साथ को बेकरार है। आइए हमें आपका इंतजार है...
सुर (शास्त्रीय संगीत का दूसरा महत्वपूर्ण स्वर) कह लो संवाद कह लो, मंच कह लो या मंशा...मेरा तो यह जन्मोत्सव है, सरताजों का सरताज अंजानों का भी अपना। माहौल की गरमाहट और सुरों की सुगबुगाहट से अंदाजा हो गया था कि जरूर बात मेरी हो रही है। हां, मैं संवादी। वही आपका पांच साल पुरानी साथी। आयोजन में प्रयोग की नई परिपाटी। असल में लंबी खुमारी के बाद संवादी जबरदस्त तैयारी शुरू हो चुकी है। खास यह है कि न यह आयोजन आम है न ही इसका प्रयोजन। अच्छा चलिए मेरे जन्म का मर्म मैं खुद आपको समझाने की एक कोशिश करता हूं। समाज के संदर्भ में संस्कृति का अर्थ कई पर सभी नहीं समझ सके इसलिए ऐसे विषय और वक्ताओं को एक सार्थक मंच दिया गया। सफलता का तो पता नहीं पर सार्थकता यही है कि बीते सालों में कई उभरते वक्ता देखे हैं तमाम विचार समेटे हैं। हर आम-ओ-खास इसका गवाह है...यह उत्सव है विचारों का असीमित प्रवाह है।
संस्कृति की मुस्कराहट है संवादी
संस्कृति के चेहरे पर जो मुस्कराहट आई है वो ऐसे ही साहित्यिक आयोजनों की देन है। लेखन से लेकर वादन, विभिन्न मंचों पर चर्चा और परिचर्चा देखने और सुनने के बाद यही कहूंगा कि संवादी अनुभव साझा करने और समझ विकसित करने का सटीक और सफल मंच है।
विलायत जाफरी, लेखक
शुरुआत शानदार तो अंत सफल
संवादी का हिस्सा पहले भी रहा हूं। शुरुआत जितनी शानदार होती है अंत उतना ही सफल। हर सत्र महत्वपूर्ण होता है। यहां का माहौल ही संदेश स्पष्ट करता है। संवादी का हिस्सा बना हर व्यक्ति अपने आप में एक विचार है। वाकई कलाप्रेमियों के साथ-साथ यह आमजन के लिए भी त्योहार है।
अजय पांडेय, अधिवक्ता
हर अनुभव अद्भुत अनूठा
यहां मंच से कई जिज्ञासाओं पर जवाब दिए तो दीर्घा में बैठकर सवाल भी किए। हर अनुभव अद्भुत अनूठा रहा है। हर किस्म से मौजूदगी को सफल पाया। इस बार के सभी सत्र आकर्षक हैं। आयोजन का हिस्सा बनकर तीन दिन सार्थक बनाने की कोशिश रहेगी। मी टू वाले सत्र को सुनने और समझने जरूर आऊंगी।
नाइश हसन, सामाजिक कार्यकर्ता
मंच और मौका दोनों देता है
संवादी वाकई उत्सव है। उत्सव संस्कृति का उस पर संवाद का। खास बात यह है कि यहां हम आम-ओ-खास एक ही मंच पर होते हैं। जहां सिर्फ आपकी मौजूदगी ही आपका नजरिया विकसित कर देती है। किसी विषय को समझना हो या मुद्दे पर अपना विचार रखना हो...हर किसी को मौका और मंच देता है यह आयोजन।
धर्मेन्द्र शुक्ला, बिजनेसमैन
विषय का चुनाव ही स्पष्ट करता है सार्थकता
किसी विचार के कई आयाम समझने हों तो संवादी आइए। चर्चा के लिए विषय का चुनाव ही इसकी सार्थकता स्पष्ट करता है। इस बार की बात करें तो विषय, धर्म और पहलुओं की सीमा ही नहीं। हर बार नए और रोचक विषयों से खुद सजता और समाज को संवारता है यह आयोजन।
मौलाना खालिद राशिद फरंगी महली, धर्मगुरु