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देखते हैं...बात निकली है तो कितनी दूर तलक जाएगी

वरिष्ठ रंगकर्मी संगम बहुगुणा ने शॉर्ट फिल्म बनाकर कला जगत में भ्रष्टाचार पर बेबाकी से बात की है। अब देखना ये है कि बात निकली है तो कितनी दूर तलक जाएगी क्या असर दिखाएगी।

By Divyansh RastogiEdited By: Published: Fri, 26 Jun 2020 03:42 PM (IST)Updated: Fri, 26 Jun 2020 03:42 PM (IST)
देखते हैं...बात निकली है तो कितनी दूर तलक जाएगी
देखते हैं...बात निकली है तो कितनी दूर तलक जाएगी

लखनऊ [दुर्गा शर्मा]। कलाकार देश की संस्कृति को बचाकर रखते हैं। जहां की संस्कृति जितनी सशक्त होगी, वो देश उतना ही मजबूत बनेगा। सवाल ये है कि संस्कृति सशक्त कैसे होगी? आर्थिक संकट की मार झेल रहे भूखे कलाकारों से? विड़बना है कि कला के लिए पूरी जिंदगी खपा देने वाले को अंत में महज दो हजार रुपये पेंशन मिलती है। कुछ को तो वो भी नसीब नहीं। संस्कृति विभाग के चक्कर लगाते-लगाते कुछ की सांसों की डोर तक टूट जाती है। भ्रष्टाचार का दीमक कला संस्कृति को खोखला कर रहा। आखिर किसी को तो चुप्पी तोड़नी होगी। सुखद है कि चुप्पी टूटी, वो भी ऐसे समय में जब कलाकारों की पीड़ा को समझा जाना बेहद जरूरी है। वरिष्ठ रंगकर्मी संगम बहुगुणा ने शॉर्ट फिल्म बनाकर कला जगत में भ्रष्टाचार पर बेबाकी से बात की है। अब देखना ये है कि बात निकली है तो कितनी दूर तलक जाएगी, क्या असर दिखाएगी।

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राग कोरोना बंद कीजिए

कोरोना से डरने की नहीं, सतर्क रहकर लड़ने की जरूरत है। वो ये बात समझते भी हैं और सतर्क भी खूब रहते हैं। बावजूद इसके कोरोना है कि उनका पीछा ही नहीं छोड़ रहा। तरह-तरह की शक्लें बनाकर सपने में भी डरा रहा । एक रोज उन्होंने हमसे भी पूछ लिया, क्या आपको भी सपने में कोरोना नजर आ रहा? हमने कहा, बिल्कुल नहीं! मगर ऐसा सवाल क्यों? उन्होंने कोरोना से खौफ की अपनी पूरी कहानी सुना दी। हमने पूछा कोरोना से डरने के अलावा आजकल आप क्या कर रहे? वो बोले, कोरोना गीत लिखने के साथ ही उन्हें गा भी रहा। कोरोना गीतों की रिकॉर्डिंग भी चल रही। इतना भर सुनना था कि हमें कोरोना से डर की उनकी बीमारी का इलाज मिल गया। हमने सलाह दी, कुछ दिन सुबह-शाम राग कोरोना गाना बंद कीजिए। अब वो हमें धन्यवाद कहते हुए चैन की नींद सोते हैं।

काश! ताली वाले इमोजी में साउंड इफेक्ट आ जाए

किसी भी मंचीय प्रस्तुति की सफलता का एकमात्र पैमाना होता है, वो है तालियों की गूंज। तालियों से कलाकार का हौसला बढ़ता है, माहौल में जीवंतता आती है। ये तालियां ही तो होती हैं, जो कलाकार के कद को बढ़ाती हैं। कोरोना काल में कलाकार और प्रस्तुति तो वही हैं, बस मंच बदल गया। बदले मंच के साथ ही तालियों की आवाज भी कहीं गुम हो गई। हर दूसरे दिन ऑनलाइन प्रस्तुतियां हो रहीं। देखने वालों की भी कोई कमी नहीं। लाइक और कमेंट भी मिल रहे, फिर भी कलाकार संतुष्ट नहीं। इसी असंतोष के साथ एक रोज नृत्यांगना मैडम ने हमसे कहा, ऑनलाइन मंच पर दर्शकों की कोई कमी नहीं, विदेश तक भी कलाकार का हुनर पहुंच रहा। खल रही है तो बस तालियों की कमी। हमने पूछा, ताली बजाने वाले इमोजी से काम चलेगा? वो खिलखिलाकर बोलीं, उसमें साउंड इफेक्ट आ जाए तो बढ़िया रहेगा।

मैडम की सोच कमाल, बना रहे ये पवित्र रिश्ता

एक रोज हम हिंदी सेवा में लीन संस्था के कार्यालय गए। प्रकाशन कक्ष में बैठे थे। दिन भर किताब और पत्र लेकर लोग आते जाते रहते। किताब या पत्र लेने से पहले मैडम अपने मातहत से पूछतीं इसका पवित्र रिश्ता कायम हुआ या नहीं। जवाब मिलता जी! हो गया है। उसके बाद वो पत्र और किताब को अपनी सुपुर्दगी में लेतीं। दिन भर यही क्रम चलता। आखिर में हमने पूछ ही लिया ये पवित्र रिश्ता क्या है? तो महोदया ने बताया पवित्र रिश्ता मतलब सैनिटाइजेशन। सतर्कता के साथ संवेदनशीलता भी जरूरी है। कई बार लोग सैनिटाइजेशन के नाम पर आहत हो जाते हैं। वो सोचते हैं कि उन्हें कोरोना संदिग्ध मानकर व्यवहार हो रहा, तो हमने ये कोड वर्ड बना लिया। सतर्कता के साथ काम भी कर लेते हैं और किसी की भावनाएं भी आहत नहीं होतीं। मैडम की सोच हमें जंच गई। हमने कहा, बना रहे ये पवित्र रिश्ता।


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