खस की खेती से आ रही किसानों के घरों में खुशहाली
सीएसआइआर-सीमैप का एरोमा मिशन, अब बाढ़ डूब क्षेत्र में खस की पैदावार।
लखनऊ (जेएनएन) । बस्ती निवासी प्रेम प्रकाश सिंह का बीस एकड़ खेत सरयू किनारे ऐसी जगह पर था जो हर साल बाढ़ में डूब जाया करता था। मुश्किल यह थी कि परिवार इसी खेत के भरोसे था। दिक्कत केवल यही नहीं थी गेहूं, धान व गन्ना बोते भी तो जानवर चट कर जाते। इसके चलते माली हालत काफी खराब हो चली थी। प्रेम प्रकाश सिंह ने इन मुश्किलों से दो-दो हाथ करने की ठानी। किसी ने सलाह दी कि केंद्रीय औषधीय एवं सगंध पौधा संस्थान (सीमैप) से सलाह लें। सीमैप के वैज्ञानिकों ने उन्हें संस्थान द्वारा विकसित खस की सिम-वृद्धि किस्म को बोने की सलाह दी। वैज्ञानिकों के अनुसार सिम-वृद्धि बाढ़ ग्रस्त इलाके में बहुत अच्छी तरह से उगाई जा सकती है।
पारंपरिक खेती से निराश प्रेम प्रकाश ने खस की खुशबू से जीवन संवारने की ठानी। सीमैप से प्रशिक्षण लेकर आसपास किसानों के करीब 100 एकड़ खेत पर खेती शुरू की। बीते तीन वषों में ही प्रेम प्रकाश उन्नतशील किसानों में शुमार होने लगे और खस की खुशबू से खेत के साथ-साथ घर भी महकने लगा। वह बताते हैं कि अब न तो बाढ़ का डर है और न ही खेत में जानवर आने का। प्रेम प्रकाश बताते हैं कि एक हेक्टेयर से 25 किलो ग्राम तेल का उत्पादन होता है। बीते वर्ष उन्होंने 450 किलो ग्राम तेल का उत्पादन किया। वह बताते हैं कि खस के एक किलो तेल की बाजार में कीमत 22 से 25 हजार रुपये है। इस उपलब्धि को वह साथी किसानों से साझा कर उन्हें भी खस की खेती के लिए प्रेरित कर रहे हैं।
गंगा हरित अभियान के तहत होगी खस की खेती
सीमैप के निदेशक प्रो.ए.के.त्रिपाठी बताते हैं कि संस्थान द्वारा विकसित खस की वैरायटी सिम-वृद्धि बाढ़ ग्रस्त के लिए बहुत अनुकूल है। प्रेम प्रकाश सिंह एरोमा मिशन के लाभार्थी किसान हैं। वह कहते हैं कि खासतौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, महाराष्ट्र सहित अन्य राज्यों में नदियों के किनारे अनुपयोगी पड़े क्षेत्र में इसकी अपार संभावनाएं हैं। उत्तर प्रदेश में गंगा हरित अभियान के तहत वन विभाग के सहयोग से कानपुर व वाराणसी से इसकी शुरुआत की जा रही है।
यह होगा लाभ
सीमैप द्वारा विकसित खस की सिम -वृद्धि किस्म से खेती से किसान एक साल में दो लाख रुपये कमा सकता है।
इंडोनेशिया व हैती से आयात होता है खस
सीमैप के वैज्ञानिक बताते हैं कि वर्तमान में देश में खस के तेल की जरूरत को पूरा करने के लिए इंडोनेशिया व हैती से हर साल 50 टन तेल आयात किया जाता है। लेकिन सीएसआइआर-सीमैप के एरोमा मिशन के तहत जल्द ही देश इसमें आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि निर्यातक बन जाएगा।