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देश और प्रदेश की सियासत में उबाल लाती थीं मुन्ना बजरंगी की गोलियां

पूर्वांचल की राजनीतिक-आपराधिक गोलबंदी में मुन्ना पहले मोहरा बना और फिर मुख्तार गिरोह का सबसे खूंखार चेहरा हो गया।

By Ashish MishraEdited By: Published: Tue, 10 Jul 2018 08:50 AM (IST)Updated: Sat, 14 Jul 2018 08:44 AM (IST)
देश और प्रदेश की सियासत में उबाल लाती थीं मुन्ना बजरंगी की गोलियां
देश और प्रदेश की सियासत में उबाल लाती थीं मुन्ना बजरंगी की गोलियां

लखनऊ [आनन्द राय] । राजनीति में आपराधिक पैठ की बड़ी मिसाल था मुन्ना बजरंगी। अपराध की दुनिया में कदम रखने के बाद उसकी दहशत दिन-प्रतिदिन बढ़ती गई। पूर्वांचल की राजनीतिक-आपराधिक गोलबंदी में मुन्ना पहले मोहरा बना और फिर मुख्तार गिरोह का सबसे खूंखार चेहरा हो गया। उसके असलहों से निकली गोलियां सियासत में उबाल लाने लगीं। बजरंगी ने खुद और अपनी पत्नी के जरिये सियासत में भी दांव आजमाने की कोशिश की लेकिन, फेल रहा।

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मुन्ना बजरंगी ने रंगदारी, दुश्मनी और वर्चस्व के लिए कई हत्याएं की लेकिन, छात्रसंघ अध्यक्ष, जिला पंचायत सदस्य, ब्लाक प्रमुख, विधानसभा प्रत्याशी और विधायक भी उसकी गोलियों का शिकार हुए। इनमें ज्यादातर भाजपा से जुड़े लोग थे जिनकी हत्याओं ने भूचाल ला दिया। नवंबर 2005 में गाजीपुर में भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या में मुख्य भूमिका बजरंगी ने निभाई थी।

मऊ के विधायक मुख्तार अंसारी समेत राजनीति से जुड़े कई अन्य लोग अभियुक्त बने। कृष्णानंद की हत्या से अंसारी परिवार का राजनीतिक और आपराधिक दबदबा जरूर बढ़ गया लेकिन, भाजपा कार्यकर्ताओं का गुस्सा उबाल पर था। मौजूदा गृहमंत्री राजनाथ सिंह तब सीबीआइ जांच के लिए धरने पर बैठे और भाजपा ने हत्या के एक माह के भीतर ही काशी से लखनऊ तक न्याय यात्रा निकाली। 71 विधानसभा क्षेत्रों से गुजरती हुई यह यात्रा लखनऊ पहुंची थी। तब मुलायम सिंह यादव की सरकार इस मुद्दे पर चौतरफा घिर गई थी।

गुरु के राजनीतिक दुश्मनों पर साधा निशाना

कृष्णानंद की हत्या से पहले मुन्ना जैसे टपोरी के डॉन बनने की कहानी भी सियासी दांव-पेंच से ही जुड़ी है। वाराणसी में तब के डिप्टी मेयर अनिल सिंह का शागिर्द मुन्ना उनके राजनीतिक दुश्मनों को मिटाने में सक्रिय हो गया। वाराणसी में अवधेश राय, काशी विद्यापीठ छात्रसंघ अध्यक्ष रामप्रकाश त्रिपाठी, विधानसभा चुनाव लड़ चुके पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष सुनील राय की हत्या में भी मुन्ना का नाम आया।

सुनील और रामप्रकाश की हत्या के बाद बनारस से शुरू हुआ धरना प्रदर्शन राजधानी तक पहुंच गया। इसके पहले बजरंगी ने 1993 में जौनपुर के लाइन बाजार थाना क्षेत्र में कचहरी रोड पर ब्लाक प्रमुख भाजपा नेता रामचंद्र सिंह, भानुप्रताप सिंह और रामचंद्र के सरकारी गनर आलमगीर की हत्या कर दी और असलहा लूट लिया।

इस घटना के बाद भी भाजपा ने जमकर आंदोलन किया। इसके बाद मुन्ना ने अपने इलाके रामपुर थाना क्षेत्र के जमलापुर में ब्लाक प्रमुख कैलाश दुबे, जिला पंचायत सदस्य व पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष राजकुमार सिंह और एक अमीन की हत्या की। इस हत्या के बाद नेताओं में बजरंगी के नाम की दहशत बढ़ गई। इन दोनों ब्लाक प्रमुखों की हत्या से बजरंगी का आपराधिक वर्चस्व बढ़ा जबकि जौनपुर के उसके एक गुरु जो आजकल भी विधायक हैं, उनकी राजनीतिक हैसियत भी कई गुना बढ़ गई।

बजरंगी से मुकाबिल हुई भाजपा

बजरंगी भले बागपत की जेल में एक अपराधी की गोलियों का शिकार हुआ लेकिन, अपराधियों में इस बात की दहशत है कि भाजपा सरकार में ही उसकी कहानी का 'द एंड हुआ। वैसे भी भाजपा ही उससे सीधे मुकाबिल हुई। ब्लाक प्रमुख कैलाश दुबे के मारे जाने के बाद उनकी पत्नी मालती दुबे ने बजरंगी के खिलाफ मोर्चा खोला और भाजपा ने उनका साथ निभाया। वर्ष 2012 में जब मुन्ना बजरंगी अपना दल का टिकट लेकर मडिय़ाहूं क्षेत्र से विधानसभा का चुनाव लडऩे मैदान में उतरा तो भाजपा ने कैलाश दुबे की पत्नी मालती दुबे को ही अपना उम्मीदवार बनाया।

मुन्ना तीसरे और मालती दुबे चौथे स्थान पर थीं। भाजपा के लिए संतोष यही था कि मालती दुबे को मैदान में लाकर उसने मुन्ना को विधानसभा पहुंचने से रोक लिया। हालांकि सफलता न मिलने से मुन्ना निराश नहीं हुआ। उसने 2017 के विधानसभा चुनाव में अपनी पत्नी सीमा सिंह को मडिय़ाहूं से ही निर्दल मैदान में उतार दिया। सीमा चौथे स्थान पर रहीं।


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