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कांग्रेस के हाथ से फिसलते पीढ़ियों पुराने रिश्ते, जितिन के बाद ललितेशपति के पार्टी छोड़ने से सतह पर आई अंतर्कलह

Laliteshpati Tripathi Quits Congress पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद के बाद चार पीढ़ियों से पार्टी से जुड़े खानदान के नौजवान नेता ललितेशपति त्रिपाठी ने इसी आरोप के साथ कांग्रेस का हाथ झटककर पार्टी में अंतर्कलह और नेतृत्व की बेफिक्री को बेपर्दा कर दिया है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Fri, 24 Sep 2021 07:30 AM (IST)Updated: Fri, 24 Sep 2021 06:07 PM (IST)
कांग्रेस के हाथ से फिसलते पीढ़ियों पुराने रिश्ते, जितिन के बाद ललितेशपति के पार्टी छोड़ने से सतह पर आई अंतर्कलह
पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के प्रपौत्र ललितेशपति त्रिपाठी ने कांग्रेस को अलविदा किया।

लखनऊ [राजीव दीक्षित]। उत्तर प्रदेश में पिछले विधानसभा चुनाव में महज सात सीटों पर सिमटी कांग्रेस इस दफा प्रियंका वाड्रा के भरोसे बहुमत की सरकार बनाने के सपने संजो रही है, लेकिन कड़वी हकीकत आए दिन सामने आ रही है। संगठन की मजबूती के दावे कर रही पार्टी के हाथ से पीढ़ियों पुराने रिश्ते भी फिसलते जा रहे हैं। पुराने कांग्रेसियों की उपेक्षा के आरोप को भले ही पार्टी नेतृत्व खारिज करता रहे, लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद के बाद चार पीढ़ियों से पार्टी से जुड़े खानदान के नौजवान नेता ललितेशपति त्रिपाठी ने इसी आरोप के साथ कांग्रेस का हाथ झटककर अंतर्कलह और नेतृत्व की बेफिक्री को बेपर्दा कर दिया है।

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कभी राजनीति का शक्ति केंद्र रहे वाराणसी के औरंगाबाद हाउस का कांग्रेस से दशकों पुराना नाता टूटा है तो इसकी मुख्य वजह सूबे में पार्टी के भीतर जारी खींचतान और अंतर्कलह है। कांग्रेस के कद्दावर नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलापति त्रिपाठी के प्रपौत्र ललितेशपति त्रिपाठी का कांग्रेस को अलविदा कहना पार्टी को हाल के महीनों में लगा दूसरा झटका है।

पार्टी के प्रमुख ब्राह्मण चेहरों में शामिल रहे जितिन प्रसाद के भाजपा का दामन थामने के बाद अब ललितेशपति के पार्टी छोड़ने पर पार्टी में नए-पुरानों के बीच चल रही उठापटक फिर उजागर हो गई है। वह भी तब चुनाव की दहलीज पर खड़े उत्तर प्रदेश में विभिन्न राजनीतिक दल अपने संगठन को मजबूत करने के साथ ही ब्राह्मणों को साधने के सभी जतन कर रहे हैं।

ललितेशपति पूर्वांचल में कांग्रेस के बड़े ब्राह्मण चेहरों में एक थे। हो सकता है कि मीरजापुर की मड़िहान सीट से 2012 में विधायक चुने जाने के बाद दो लोकसभा और एक विधानसभा चुनाव में मिली पराजय ने राजनीतिक पुनर्वास के लिए उन्हें नया ठीहा तलाशने के लिए मजबूर किया हो, लेकिन उनके इस्तीफे से पार्टी में पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा की टीस साफ सुनी जा सकती है। ललितेशपति ने गुरुवार को कहा भी कि पुराने कांग्रेसियों की उपेक्षा से आहत हैं। कुछ कमियां दिख रही थीं। उन्हें सुधारने के प्रयास सफल न होने पर यह कदम उठाना पड़ा।

कई वजहों से मजबूर हुए ललितेशपति : कांग्रेस महासचिव प्रियंका वाड्रा के प्रदेश प्रभारी बनने के बाद से ही पार्टी में नए बनाम पुराने कार्यकर्ताओं की रस्साकशी शुरू हो गई थी। नए निजाम में पुराने कार्यकर्ता दरकिनार कर दिए गए। सूत्रों के मुताबिक, इसी महीने जब प्रियंका वाड्रा लखनऊ आई थीं तो ललितेशपति ने उनसे मुलाकात करनी चाही थी, लेकिन नेहरू-गांधी कुनबे से अपने परिवार के दशकों पुराने संबंध के बावजूद उन्हें इसमें सफलता नहीं मिल सकी। वह लगातार उपेक्षा से आहत थे। प्रदेश कांग्रेस के उपाध्यक्ष के नाते मीरजापुर समेत पूर्वांचल के सात जिले उनके प्रभार में थे, लेकिन अपने निर्वाचन क्षेत्र मीरजापुर में ही जिलाध्यक्ष उनकी मर्जी के खिलाफ नियुक्त हो गया।

सपा हो सकती है नया ठिकाना : पूर्व सांसद अन्नू टंडन के कांग्रेस छोड़कर सपा में जाने के साथ ही यह कयास लगने लगे थे कि ललितेशपति भी जल्द इसी राह पर चल देंगे। माना जा रहा है कि कांग्रेस छोड़ने के बाद ललितेशपति सपा में शामिल हो सकते हैं। उल्लेखनीय है कि जितिन प्रसाद के पार्टी छोड़ने पर ही 'जागरण' ने स्पष्ट संकेत दे दिया था कि पुराने सियासी खानदान के एक और युवा नेता जल्द कांग्रेस छोड़ सकते हैं। तब पार्टी नेतृत्व बेखबर रहा। फिर पिछले दिनों ललितेशपति ने प्रदेश उपाध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया, लेकिन पार्टी उन्हें मना नहीं सकी और अंतत: उन्होंने पार्टी को अलविदा कह ही दिया।


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