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...तो सपा-रालोद के साथ आएगी कांग्रेस, बसपा से अलग विपक्षी एकजुटता की कोशिशें शुरू

करीब साढे पांच माह ही चला सपा और बसपा का गठबंधन टूटने के बाद हमलावर हुईं मायावती के आरोपों पर अखिलेश यादव की खामोशी के कई मायने निकाले जा रहे हैं।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Thu, 27 Jun 2019 11:19 AM (IST)Updated: Thu, 27 Jun 2019 11:19 AM (IST)
...तो सपा-रालोद के साथ आएगी कांग्रेस, बसपा से अलग विपक्षी एकजुटता की कोशिशें शुरू
...तो सपा-रालोद के साथ आएगी कांग्रेस, बसपा से अलग विपक्षी एकजुटता की कोशिशें शुरू

लखनऊ, जेएनएन। उत्तर प्रदेश में बसपा को अलग करके विपक्षी दलों में एकता की कोशिशों को गति देने का काम शुरू हो गया है। लोकसभा चुनाव में भाजपा से मात और बहुजन समाज पार्टी से झटका खा चुकी पार्टियों में एक प्लेटफार्म पर आने की आवाज उठने लगी है, जो प्रदेश में बड़े सियासी बदलाव की आहट है।

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करीब साढे पांच माह ही चला सपा और बसपा का गठबंधन टूटने के बाद हमलावर हुईं मायावती के आरोपों पर अखिलेश यादव की खामोशी के कई मायने निकाले जा रहे हैं। माना जा रहा है कि सपा की चुप्पी रणनीतिक फैसला है, ताकि जल्दबाजी कोई बड़ी गलती न हो जाए। एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि बसपा द्वारा दिए झटके का जवाब भी उतनी ही मजबूती से दिया जाएगा। इसके लिए अन्य विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की दिशा में काम हो रहा है। भले ही यह प्लान उपचुनाव तक कारगर न हो सके परंतु 2022 तक इस पर अमल की भरपूर संभावना है।

सपा-रालोद गठबंधन कायम

बसपा ने भले ही गठबंधन से किनारा किया हो परंतु समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय लोकदल की दोस्ती अभी तक बरकरार है। रालोद नेतृत्व की ओर से उपचुनाव में भी गठबंधन कायम रखने का दावा किया है। संकेत दिया कि प्रदेश में विपक्षी राजनीति में बड़े बदलाव की उम्मीद है। विपक्षी एकजुटता में कांग्रेस के शामिल होने की संभावनाएं भी है। रालोद और कांग्रेस में अघोषित गठबंधन लोकसभा चुनाव में भी रहा। कांग्रेस ने रालोद सुप्रीमो अजित सिंह और उपाध्यक्ष जयंत चौधरी के विरुद्ध अपने उम्मीदवार नहीं उतारे। राजस्थान में दोनों ने मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा और गहलौत सरकार में रालोद का इकलौता विधायक मंत्री भी है।

रालोद हो सकता है सूत्रधार

सपा और कांग्रेस में नजदीकी बनाने का काम रालोद कर सकता है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी के नजदीकी रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं। वहीं, जयंत व अखिलेश की मित्रता भी जगजाहिर है। लोकसभा चुनाव में बसपा प्रमुख के एतराज के बावजूद अखिलेश ने अपने कोटे की तीन सीटें रालोद के लिए छोड़कर दोस्ती को साबित किया था। सूत्रों का कहना है कि भाजपा की केंद्र में जोरदार वापसी और बसपा की बेरुखी सपा कांग्रेस व रालोद को एक मंच पर ला सकती है।

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