पहाड़ों पर बर्फबारी ने बढ़ाई ठिठुरन और गलन, जुबान पर आईं कुछ लोक कहावतें
वहां ऊंचाइयों पर बर्प गिर रही है। यहां उत्तर प्रदेश में शीतलहर बढ़ती जा रही है। ऐसे में लोक कहावतों में वर्णित ठंड की याद और अधिक कंपा देती है। हाड़कंपाऊ ठंड पर कुछ लोक कहावतें सटीक बैठ रहीं हैं।
लखनऊ (जेएनएन)। पर्वतीय इलाकों में बर्फबारी के असर मैदानी से क्षेत्रों में कड़ांके की ठंड है। उत्तर प्रदेश में तो शीतलहर चरम पर है। फिलहाल कुछ दिन ठंड से निजात मिलने वाली भी नहीं है। शासन ने ठंड से बचाव के लिए 28 जिलों को 5.99 करोड़ रुपये की धनराशि जारी की है। ऐसे में लोक कहावतों में वर्णित ठंड की याद और अधिक कंपा देती है। ठंड से हर कोई परेशान है। आज दिन भर शीत लहर चलती रही और सूर्यदेव के दर्शन नहीं हो सके। दिन के समय धुंध भी छाई रही। ठंड से बचने के लिए लोग जगह-जगह अलाव तापते नजर आए। पूरे प्रदेश में प्रमुख बाजारों में लोगों ने अलाव के सहारे दिन बिताया तो सरकारी कार्यालयों में कर्मचारी व अधिकारी हीटर ब्लोअर के सहारे ठंड से बचाव करते दिखे। फैजाबाद नरेंद्रदेव कृषि विश्वविद्यालय के मौसम विज्ञान विभाग के अनुसार अभी ठंड से निजात नहीं मिलेगी। वैज्ञानिकों के मुताबिक पर्वतीय इलाकों में बर्फबारी का सिलसिला जारी है। इसी का असर मैदानी क्षेत्रों में पड़ा है। उस ओर से आ रही हवा वातावरण में गलन व ठिठुरन घोल दे रही है।
जुबान पर मौसम की कहावतें
सर्दी को नजदीक से महसूस करने वालों में क्षेत्रीय भाषा के कवि रमई काका का नाम भी कहीं पीछे नहीं है। हाड़कंपाउ ठंड को किसी ने बिल्कुल सटीक शब्दों में उतारा है।-लरिकन ते हम बोलित नाहीं ज्वान लगैं सग भाई। बुढवन का हम छोडि़त नाहीं चाहे औढै सात रजाई।-इन दिनों शर्दी के चलते आम चन जीवन प्रभावित है। शाम होते ही शहर और गांव कोहरे की चादर से ढके नजर आते है। दूसरे दिन दोपहर तक सूरज के दर्शन मिलना मुश्किल हो जाता है। सुबह रजाई से निकलने की हिम्मत नहीं पड़ती है। रोंगटे खड़े कर देने वाली शीत से मुकाबले के लिए कोई खुद को सक्षम नहीं पा रहा है। रमई काका की कविता में कहे तो -निकसन खन भ्वार रजाई ते कटि परत द्याहं पर पाला अस। बउखा लागति है तीरु आइसि औ रौवांवा एकदम भाला अस।-काफी सटीक बैठती है। सर्दी में रोज स्नान करना भी अच्छी खासी लड़ाई जीतने जैसा है। कुछ लोग तो स्नान से कतरा जाते है तो कुछ कंकड़ी स्नान जैसे फार्मूले अपना कर अपने को संतुष्ट कर रहे हैं। कुछ मंत्रोच्चार कर अपने ऊफर गंगा जल छिड़ककर खुद को पवित्र करने में लगे हैं। कुछ तो इन सबसे निराले मन चंगा तो कठौती मा गंगा कहकर स्नान की जरूरत से ही दूर निकल लेते हैं। रमई काका ने एक बहू का सास के प्रति डर और सुबह नहाने की अनिवार्यता को कविता में कुछ इस तरह देखा-बहुरेवा सासु का डेरु कइके बसि जोर जोर सिसियाइ देहेसि बसि आड़ मा धोती बदलि लेहेसि औ भुँइ मा पानी नाइ देहेसि।। यही हाल हमेशा स्नान के बाद ही ध्यान, पूजन और भोजन आदि करने वालों का है।-जाड़े मा तड़के का नहाउब अब भूलि गई भगति चाची बसि दुइ लोटिया पानी डारैं घर मां घूमैे नची नाची।-वैसे हाल के वर्षों में सर्दी ने 1962 और 2002 में सारे रिकार्ड तोड़ दिए थे लेकिन इस साल हो रही सर्दी भी कुछ कम नहीं है।
वास्तव में सर्दी के लिए लरिकन ते हम बोलित नाहीं कहावत काफी सटीक दिखाई देती है। बच्चों को खेल के आगे सब कुछ पीछे रह जाता है। एक कहावत-कत्थर-गुद्दर ओढ़े मरजादा बैठे रोवाएं-अलग अलग लोगों के लिए सर्दी का मिजाज भी अलग अलग होने की बात कहती है। कुछ लोग जो मिला उसे पहनकर खुश रहते हैं लेकिन कुछ बेहतर परिधानों की उम्मीद में ठिठुरते रहते हैं। वैसे किसी हद तक यह ठीक ही है तभी तो एक कहावत-संगति कुसंगति अक्यालय भला बस्तर कुबस्तर उघारै भला-ऐसे लोगों का समर्थन करती है।
कंबल और अलावा के लिए किसको कितना धन
राहत आयुक्त की ओर से मंगलवार को जारी की गई यह धनराशि असहाय लोगों को कंबल बांटने और अलाव जलवाने के लिए दी गई है। इसे मिलाकर शासन की ओर से ठंड से बचाव के लिए अब तक 28.5 करोड़ रुपये की धनराशि जिलों को भेजी जा चुकी है। इलाहाबाद को भेजी गई धनराशि में पांच लाख रुपये माघ मेला के कारण अतिरिक्त जारी किए गए हैं। मुरादाबाद को 22 लाख, संत कबीर नगर को 16.5 लाख, बदायूं को 7.5 लाख, सिद्धार्थनगर को 22.75 लाख, फर्रुखाबाद को 16.3 लाख, रामपुर को 18 लाख, कन्नौज को 6.95 लाख, कौशांबी को 13.95 लाख, इटावा को 28 लाख, बहराइच को 33 लाख, बस्ती को 22 लाख, आगरा को 31.8 लाख, बलिया को 33 लाख, महराजगंज को 21 लाख, फैजाबाद को 27.5 लाख, भदोही को 16.5 लाख और इलाहाबाद को 49 लाख रुपये दिए गए हैं। अमरोहा को 17.02 लाख, बांदा को 25 लाख, सीतापुर को 35 लाख, हाथरस को 20 लाख, बलरामपुर को 15 लाख, खीरी को 26.41 लाख, आजमगढ़ को 15.16 लाख, गाजीपुर को 35 लाख, फतेहपुर को 15 लाख और शामली को 4.86 लाख रुपये की रकम दी गई है। इसके अलावा शाहजहांपुर को सिर्फ अलाव जलाने के लिए ढाई लाख रुपये की रकम भेजी गई है। इससे पहले शासन ने प्रदेश के हर जिले को प्रत्येक तहसील में कंबल बांटने के लिए पांच लाख रुपये और अलाव जलाने के लिए 50 हजार रुपये की दर से 19 करोड़ की धनराशि जारी की थी। इसके बाद बीती पांच जनवरी को 15 जिलों को 3.27 करोड़ रुपये की रकम जारी की गई थी। राजस्व विभाग ने सभी मंडलायुक्तों और जिलाधिकारियों को निर्देश दिया था कि 11 जनवरी की रात में जिलाधिकारी खुद और जिला स्तरीय अन्य अधिकारियों की टीम गठित कर अलाव जलाने की व्यवस्था का जायजा लेंगे और रैनबसेरों व अस्थायी शेल्टर होम में मूलभूत सुविधाओं का सत्यापन करेंगे। कोई कमी मिलेगी तो उसे दुरुस्त भी करेंगे।