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चुनाव आसन्नः उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा अभी तैयार नहीं

प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर की अगुआई में ही लोकसभा चुनाव लडऩे का संकेत मिलने के बावजूद पार्टी का संगठन का ढांचा अभी तैयार नहीं हो पा रहा है।

By Ashish MishraEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 10:31 AM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 05:37 PM (IST)
चुनाव आसन्नः उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा अभी तैयार नहीं
चुनाव आसन्नः उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा अभी तैयार नहीं

लखनऊ (जेएनएन)। गठबंधन के भरोसे लोकसभा चुनाव में नैया पार लगाने की उम्मीद में बैठी कांग्रेस संगठन को भूले बैठी है। लगभग आठ माह से जिला व शहर अध्यक्षों की नियुक्तियां लटकी हैं। प्रदेश कमेटी का गठन भी नहीं हो पाया है। इसके चलते पार्टी की संगठनात्मक गतिविधियां लगभग ठप है और चुनावी तैयारी भी प्रभावित हो रही है।

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संगठन की चुनाव प्रक्रिया समाप्त होने के आठ महीने बाद भी प्रदेश में कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा तैयार नहीं हो सका है। नई ब्लाक कमेटियों से लेकर जिला व प्रदेश कार्यकारिणी के पदाधिकारियों की घोषणा अब तक नहीं हो सकी है। प्रदेश अध्यक्ष राजबब्बर की अगुआई में ही लोकसभा चुनाव लडऩे का संकेत मिलने के बावजूद पार्टी का संगठन का ढांचा अभी तैयार नहीं हो पा रहा है। इसी कश्मकश में कांग्रेस सहकारी संस्थाओं के चुनाव में सक्रिय भागीदारी नहीं निभा सकी।

सूत्रों के अनुसार पहले चरण में करीब 40 जिला व शहर अध्यक्षों का फैसला किया जाएगा। दिल्ली दफ्तर से संस्तुति मिलने के इंतजार में करीब डेढ़ माह से जिला व शहर कमेटियां घोषित नहीं हो पा रही हैं। दूसरी ओर प्रदेश कमेटी का पुनर्गठन अभी नहीं हो सका जबकि राष्ट्रीय नेतृत्व की ओर से छंटनी करने के निर्देश मिल चुके हैं। प्रदेश कमेटी में अब 60-70 पदाधिकारी ही बनाए जा सकेंगे। खास यह है कि पार्टी मुख्यालय में प्रशासनिक कामकाज को देखने वाली कमेटियां भंग करने के बाद चार सदस्यों की नियुक्ति की गई लेकिन, उनके कामकाज का बंटवारा अभी नहीं हो सका है।

मतदाता सूचियों का काम भी ठंडा : स्थानीय स्तर पर संगठन निष्क्रिय होने का दुष्परिणाम है कि मतदाता सूचियों के पुनरीक्षण का कार्य विधिवत ढंग से नहीं हो पाया। केवल उन्हीं क्षेत्रों में इस पर ध्यान दिया जा रहा है जहां टिकट के दावेदार व्यक्तिगत रुचि ले रहे हैं। दूसरी ओर भाजपा, बसपा व सपा जैसे दलों ने संगठन को मतदाता सूचियां सुधारने व नए वोटर बढ़ाने के काम में लगा रखा है। एक पूर्व विधायक का कहना है कि गठबंधन को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं होने के कारण पार्टी में उत्साह नहीं दिख रहा है। सीटों का बंटवारा स्पष्ट न होने और अपेक्षाकृत कम सीटें मिलने की आशंका भी टिकट के दावेदारों को डरा रही है।

फ्रंटल संगठन भी आधे अधूरे : प्रदेश कांग्रेस का मुख्य संगठन ही नहीं, अन्य कई फ्रंटल संगठन व विभाग भी आधे अधूरे हैं। किसान कांग्रेस का गठन पांच वर्ष से पूरा नहीं सका तो महिला कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष का चयन तीन माह से नहीं हो सका। अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश संयोजक पद से सिराज मेंहदी द्वारा त्यागपत्र देने के बाद नई नियुक्ति नहीं हो सकी है। मीडिया विभाग का विस्तार जिला स्तर पर किए जाने की घोषणा पर भी अमल नहीं हो सका है। 


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