पापा, उस लड़की ने सुसाइड कर लिया..मैं खुशकिस्मत हूं कि आप साथ हैं: बेटी की चिट्ठी Lucknow News
12वीं की छात्रा ने साझा की अपने मन की बातें। बोली- हमें अपना दोस्त बना लो पापा।
लखनऊ, जेएनएन। लगातार सामने आ रही सुसाइड की घटनाएं याद हैं न..। कैसे बेहद कम उम्र तक के बच्चे जान देने जैसा घातक कदम उठा रहे हैं। रोंगटे खड़े कर देने वाकयों की कतार लगी है। कह भी सकते हैं, सिलसिला नया नहीं है, मगर हालिया वजह हर किसी सोचने को मजबूर जरूर कर गईं। ऐसे में मन की गहराइयों में झांकने की कोशिश 'दैनिक जागरण' ने बेटी की चिट्ठी सीरीज के जरिए की है। ऐसे में सेंट जोसेफ कॉलेज की 12वीं क्लास की छात्रा सलोनी अग्रवाल ने अपने मन की बाते साझा की हैं, जो हम आपको बता रहे हैं।
छात्रा ने लिखा- ''मेरे पापा, कुछ दिनों से आप थोड़ा दूर हैं इसलिए बहुत याद आ रही थी आपकी। अक्सर ही आती है। कई बार आपसे कहने को बहुत कुछ होता है। सोचती हूं शाम को जब आप घर आएंगे तो आपको इस तरह बताऊंगी, उस तरह सुनाऊंगी। सुनकर आप खुश होंगे, पर आपकी राह देखते-देखते आंखें बोझिल हो जाती हैं। मैं अपने कमरे में लेटे हुए किताब पढ़ते-पढ़ते आपकी प्रतीक्षा करती रहती हूं। आंखें किताब पर होती हैं, लेकिन ध्यान डोरबेल पर लगा रहता है कि अब आप आएंगे और मैं दौड़कर आपके पास पहुंच जाऊंगी.. पर आप नहीं आते और सीने पर किताब रखे हुए ही कब मेरी आंख लग जाती है, मैं खुद नहीं जान पाती। मैं कभी आपसे यह सब नहीं कहती, लेकिन हाल ही में मैं एक ऐसे अनुभव से गुजरी हूं कि मैं चाहती हूं कि आप जानें कि मैं आपको कितना मिस करती हूं। मुझे पता है कि आप हमारे लिए ही इतना काम करते हैं। मुझे इससे शिकायत भी नहीं, पर शायद व्यस्तता के कारण आपका इस ओर ध्यान नहीं जा रहा है कि हम आपका साथ कितना एन्ज्वॉय करते हैं।''
''आप मेरे लिए आदर्श पापा हैं। हमेशा यह प्रार्थना करती हूं कि सबको ऐसे ही मम्मी-पापा मिलें। इसलिए आपसे यह घटना साझा कर रही हूं, जिसे अखबारों में पढ़ा, सोशल मीडिया पर वायरल देखा। मेरी तरह की एक बेटी वो भी थी। मम्मी ने मोबाइल ज्यादा इस्तेमाल करने पर डांटा तो छत से छलांग लगाकर जान दे दी। टीवी पर उसकी मां को रोते हुए मैंने देखा है, उनका चेहरा अभी तक मैं भूल नहीं सकी हूं। किस मनोदशा से गुजर रही होगी वो लड़की। उसके मम्मी-पापा दोनों काम करते हैं। हो सकता है कि आपकी तरह वे भी उसे समय अधिक न दे पाते हों। वह खुद को अर्से से अकेला महसूस कर रही हो। जीवन में चल रही परेशानियां वह किसी से कह न सकी हो। इस एक डांट के पीछे अकेलेपन की कई कडिय़ां जुड़ी हों और उसी का गुबार उस एक पल में फट पड़ा हो जिसके बाद उसने जान देने का फैसला कर लिया।''
पापा, आप मेरे दोस्त क्यों नहीं बन सकते?
छात्रा ने आगे लिखा- ''पापा, हम बच्चों को इस उम्र में एक भरोसेमंद दोस्त की जरूरत होती है। चीजें हमारे लिए बदल रही हैं। भावनाओं के नए रंगों से परिचय हो रहा है। ये बदलाव इस तेजी से हमारी ओर आते हैं कि हमारे लिए उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में हमें आपके साथ की जरूरत है। आपमें मुझे एक दोस्त चाहिए। मुझे पता है कि अगर मैं अपनी दिक्कतें आपसे कहूंगी तो आप मेरा साथ देंगे, पर उसके लिए आप मेरे पास मौजूद तो हों। कई बार आप खाली होते भी हैं तो काम की थकान मिटाने आप अपने दोस्तों से मिलने चले जाते हैं। पापा, आप मेरे दोस्त क्यों नहीं बन सकते। अगर आप शाम को घर जल्दी आ जाने का वादा करें तो मैं भी आपसे फिर कोई डिमांड नहीं करूंगी। यह वादा रहा..। मुझे आपके साथ खेलना है। मुङो आपके साथ होमवर्क करना है। आपकी डांट खानी है। बस आप घर जल्दी आ जाया करो पापा। आपको याद है पिछली बार हम सब कब फिल्म देखने गए थे?''
आजादी भी मुझे अखरती है
''मुझपर आपको पूरा भरोसा है, इसलिए आपने कभी मेरा मोबाइल चेक नहीं किया, मेरा फेसबुक अकाउंट नहीं देखना चाहा। आपको यकीन है कि मैं कुछ गलत काम नहीं करूंगी, लेकिन कभी-कभी ये आजादी भी मुझे अखरती है। हो सकता है कि आपकी निगरानी से मेरी प्राइवेसी में होने वाले दखल से मुझे बुरा लगता, पर इस बात की खुशी भी होती कि आप मेरी फिक्र करते हैं। पापा, मैं जानती हूं कि मैं आप मुझसे बहुत प्यार करते हैं, पर शायद आप ये सोचते हों कि अब मैं बड़ी हो गई हूं तो मुझे आपके साथ की जरूरत नहीं। मुझे है। बहुत है। आप फिर से मेरे पास आ जाइए। मेरे दोस्त बन जाइए।''