केजीएमयू में नहीं थम रही लापरवाही : ट्रामा से ओपीडी तक दौड़ाते रहे बुखार पीड़ित बच्ची को-मौत
बुखार से पीडि़त बच्ची को सीतापुर से गंभीर हालत में किया गया था रेफर। केजीएमयू में नहीं थम रहा लापरवाही का सिलसिला।
लखनऊ, जेएनएन। केजीएमयू में लापरवाही का सिलसिला जारी है। यहां तेज बुखार से पीडि़त एक बच्ची को डेढ़ घंटे दौड़ाया गया। परिवारजन ट्रॉमा से ओपीडी तक डेढ़ घंटे चक्कर लगाते रहे। गंभीर मरीज को समयगत इलाज नहीं मिल सका, ऐसे में स्ट्रेचर पर ही उसने दम तोड़ दिया। सुनवाई न होने पर परिवारीजन बच्ची का शव लेकर घर चले गए। सीतापुर के कोठार पुरवा निवासी निशा (7) को तीन दिन पहले तेज बुखार आया। पिता अशोक कुमार के मुताबिक, बीच-बीच में उसे झटके आ गए। ऐसे में मंगलवार को मोहम्मदाबाद सीएचसी में निशा को भर्ती कराया गया।
बुधवार को सीएचसी से सीतापुर जिला अस्पताल रेफर किया गया। यहां एंबुलेंस से निशा को ट्रॉमा सेंटर रेफर कर दिया गया। करीब 12 बजे ट्रॉमा सेंटर पहुंचने पर उसे स्कैनिंग सेंटर में भेज दिया गया। जहां से हालत गंभीर होने के बावजूद स्कैनिंग करने वाले डॉक्टर ने उसे ओपीडी भेज दिया। अशोक कुमार के मुताबिक, पर्चा बनवाने के बाद न्यू ओपीडी ब्लॉक के भूतल पर निशा की दोबारा स्कैनिंग की गई। इसके बाद प्रथम तल पर कोरोना क्लीनिक में दिखाने के लिए भेज दिया। यहां तैनात डॉक्टर ने दूर से ही देखकर ट्रॉमा सेंटर भेज दिया। इस दौरान करीब डेढ़ घंटे बीत गए। ट्रॉमा तक पहुंचने से पहले ही बच्ची की मौत हो गई।
गलत स्कैनिंग ने ली बच्ची की जान
केजीएमयू प्रशासन दो माह से स्टाफ के प्रशिक्षण का दावा कर रहा है। वहीं, स्कैनिंग में तैनात कर्मचारी के प्रशिक्षण का स्तर बच्ची की स्कैनिंग में ही उजागर हो गया। गाइडलाइन के मुताबिक हाईफीवर का मरीज संदिग्ध कोरोना की श्रेणी में रखा गया है तो उसे संक्रमण रोग यूनिट की ट्राएज एरिया में भेजना उचित था। यहां मरीज के जांच के बाद अन्य विभाग में रेफर कर दिया जाता है। वहीं, वृद्धावस्था विभाग में खुले स्कैनिंग सेंटर से गंभीर मरीज को ओपीडी में भेज दिया गया। ओपीडी में भी स्कैनिंग होती रही। डेढ़ घंटे समय बीत गया। यही लापरवाही बच्ची के लिए जानलेवा बन गई।
चिकित्सा अधीक्षक ट्रामा सेंटर डॉ. सुरेश कुमार ने कहा, ट्रॉमा सेंटर की इमरजेंसी में वृद्धावस्था में स्कैनिंग के बाद मरीज भर्ती किए जाते हैं। वहां से मरीज ट्रॉमा सेंटर भेजा जाता तो अवश्य भर्ती कर लिया जाता। यदि गंभीर बच्ची थी तो ओपीडी भेजने का फैसला समझ से परे है।