नेपाल से जुड़ती हैं भारत की आध्यात्मिक जड़ें, जगद्गुरु देवाचार्य ने बताई ये बातें ayodhya news
नेपाल के जगद्गुरु मोहनशरण देवाचार्य ने स्कंदपुराण के अप्राप्य खंडों को सहेजने के साथ अतीत के समीकरण को किया परिभाषित।
अयोध्या, (रघुवरशरण)। भारत की आध्यात्मिक जड़ें नेपाल से जुड़ती हैं। यह तथ्य परिभाषित करते हैं, नेपाल के जगद्गुरु मोहनशरण देवाचार्य। उन्होंने सनातन संस्कृति एवं अध्यात्म के प्रतिनिधि ग्रंथ स्कंदपुराण के उन खंडों को संकलित किया है, जिन्हें दुर्लभ माना जाता है। स्कंदपुराण में सात खंड हैं। मोहनशरण ने सात अन्य खंडों का संकलन किया है। तीर्थयात्रा के क्रम में रामनगरी पहुंचे नेपाल के सुनसरि जिला स्थित चतरा धाम प्रमुख जगद्गुरु मोहनशरण देवाचार्य ने जगद्गुरु रामानंदाचार्य एवं स्थानीय हरिधाम पीठ के महंत स्वामी रामदिनेशाचार्य से भेंट की। इस दौरान मोहनशरण ने बताया कि उन्होंने स्कंद पुराण के जिन अप्राप्य खंडों को संकलित किया है, उनमें कश्मीर खंड, जालंधर खंड, केदार खंड, मानस खंड, हिमवत खंड, हिमाद्रि खंड एवं अरुणांचल खंड शामिल हैं।
साधकों के लिए आश्रयस्थली था नेपाल
इसी को आधार बनाकर मोहन शरण याद दिलाते हैं कि शिव एवं पार्वती का हिमालय की गोद में बसे नेपाल से गहन सरोकार था। यह क्षेत्र वैदिक परंपरा के साधकों की प्रमुख आश्रयस्थली रहा है। यवन आक्रमण के चलते सनातन संस्कृति नेपाल स्थित हिमालय की तराई के जंगलों एवं कंदराओं में केंद्रित हुई और शायद यही कारण था कि स्कंदपुराण के अप्राप्य अवशेष भारत के चुनिंदा स्थलों सहित नेपाल में प्राप्त हुए। स्वामी रामदिनेशाचार्य उनके प्रयासों को सराहनीय बताते हुए कहते हैं, हिमालय यदि भारत का मुकुट है, तो नेपाल भारतीय संस्कृति का स्नेहिल आंचल।
पूरे नेपाल की कर चुके हैं पदयात्रा
मोहनशरण देवाचार्य तीन साल तक संपूर्ण नेपाल की पदयात्रा के साथ समुचित साधन से भारत के भी प्राय: सभी तीर्थों का भ्रमण कर चुके हैं। इसी यात्रा के दौरान उन्हें स्कंदपुराण के अप्राप्य खंडों को सहेजने में सहायता मिली।
अतीत के गौरवमय अध्याय से जुड़ेगा सूत्र
पुराणों के मर्मज्ञ एवं प्रतिष्ठित पीठ रामकुंज के महंत रामानंददास के अनुसार स्कंदपुराण के कुछ हिस्से अप्राप्य होने की ङ्क्षचता से वे भी वाकिफ हैं और यदि लुप्तप्राय खंडों का मोहनशरण देवाचार्य ने शोध-संकलन किया है तो उसे प्रामाणिकता भी मिलनी चाहिए। इससे अतीत के अनेक अज्ञात और गौरवमय अध्याय से सूत्र जुड़ेगा।
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